"बड़ा फक्र होता हैं मुझे कभी की , भावनाओ को शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर लेता हूँ !
किसी भी विषय पर थोड़ा बहुत लिख सकता हूँ !!
मगर एक विषय पर कुछ लिखने से पहले उलझ जाता हूँ, "राजनीति
" और "राजनेता"
शब्द से आगे नहीं बढ़ पाता हूँ !
अदभुत विषय हैं और बढ़ा कठिन हैं इस पर लिखना , शब्द भी उलझ जाते हैं !!
जो शब्द किसी और विषय की शोभा बढ़ाते हैं , इस विषय पर कुछ और हो जाते हैं !
शब्दों का मकड़जाल कुछ ऐसा बनता हैं , कहना कुछ और होता हैं मगर शब्द कुछ और ही बयां कर जाते हैं !!
नेता जी की झक सफ़ेद कुर्ते पायजामे के अंदर ना जाने कितने पैबंद हैं !
हाथ जोड़े हथेली के अंदर न जाने कितना बड़ा खंजर हैं !!
इस विषय को शब्दों से बयां करना , जैसे सूरज को आइना दिखाना हैं !
नेता जी को समझना जैसे हिंदी भाषी को जर्मन समझना हैं !!
उसूल , नियम , नैतिकता , मानवता , सुशासन , प्रगति, रिश्ते-नाते - ये सब इस विषय में जनता को लुभाने के शब्द हैं !
अराजकता
, प्रलोभन , भ्रस्टाचार , भड़काऊ भाषण - ये सब इस विषय के चहेते शब्द हैं !!
कुर्सी के लिए यह दौड़ अदभुत हैं , जिसको मिल गयी वो छोड़ने को तैयार नहीं हैं !
जिसको नहीं मिली हैं , वो दूसरे की कुर्सी पर घुन बनकर कुतरने की तैयारी में हैं !!
दोस्ती और दुश्मनी की इनकी कहानी बड़ी बेमिसाल हैं , जनता के सामने लडना और रात को गलबहियां जारी हैं !
कोई न समझ सका इन राजनेताओ को और राजनीती को , कब -कहा - कैसे - क्यों -क्या हो जाये कहना भारी हैं !!"
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