कुछ दिन एकांत में बिताने का मौका मिला , अपने शहर से बहुत दूर !
कुछ क्षण अपने को फिर से समझने का मौका मिला , आदी हो चुके अपने माहौल से बहुत दूर !!
अपने को प्रकृति के बहुत करीब पाया , ठंडी हवाओ को अपने गाल सहलाते फिर से महसूस किया !
बदन में हुई थिरकन को बरसो बाद फिर महसूस किया , चिड़ियों की चहचाहट का संगीत सुना !!
बनावटी कोलाहल से दूर - प्रकृति के संगीत का आनंद लिया , मन जैसे फिर से रम गया !
कंक्रीट के महलो के सभ्य इंसानो से इस छोटी सी जगह के इंसानो को जीवन जीते जीते देखा !!
सच में कितनी मशीनी और व्यवसायिक हो गयी हैं ज़िन्दगी हमारी , थोड़ा सुकून जब मिला तब सोचा !
कहता तो हूँ सब अपने लिए ही तो कर रहा हूँ , वो “अपने लिए वाला समय “ कब मिलेगा कभी नहीं सोचा !!
टटोला दिल को अपने कुछ फुर्सत के क्षणों में , बहुत कुछ बीत जाने और खो जाने का एहसास हुआ !
फिर भी ढाँढ़स इस बात का बँधा की ,
वक्त ने फिर मुझे समझने का मौका दिया !!
उसी पुराने "आनन्द
" से फिर अपना परिचय हुआ ! खो गया था भीड़ में कही , अपने को भूल गया था !!
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में मैं कितना उलझ गया था ! यकीनन वो भी बहुत जरुरी था !!
मगर अपने वजूद को भूल जाना कहा तक सही था , जारी हैं मेरा ये कारवां !
जीवन को समझने का दौर कभी तो विराम लेगा !!
No comments:
Post a Comment