दीवार पर टंगा २०१७ का कैलेंडर ,
अब फड़फड़ा रहा है।
जल्दी है उसको जगह खाली करने की ,
नए कलेवर में २०१८ आ रहा है।
वक्त के आगे वो भी मजबूर है ,
यादो की पोटली बाँधे , अब उतर रहा है।
उस कील को धन्यवाद कहिये ,
जो संभाले रखी थी इसको ,
अब उसी पर नए साल का ,
ये कैलेंडर चढ़ना है।
आगे , बढिये - हर रोज़ ये कैलेंडर कहता है ,
खुद से काटकर एक नया दिन हमें देता है ,
यही नियति है शायद ,
वक्त यहाँ सबका बदलता है।
बहुत खूब दाज्यू
ReplyDeleteउस कील को धन्यवाद कहिये ,
ReplyDeleteजो संभाले रखी थी इसको ,
अब उसी पर नए साल का ,
ये कैलेंडर चढ़ना है।
इन पंक्तियों का बहुत गूढ़ अर्थ है।