जनवरी आता है , नयी उम्मीदों को पंख लगाता है,
फरवरी फर्र फर्र न जाने कब बीत जाता है ,
मार्च सुहाना मौसम लेकर आता है,
उम्मीदों को परवाज देते देते पहला तिमाही गुजर जाता है।
अप्रैल में चहुँओर फूल खिल जाते है ,
मई में सूरज देवता आग बरसाते है ,
जून का महीना पसीना पोछने में बीत जाता है,
आधा साल यूँ ही रीत जाता है।
जुलाई में रिमझिम मानसून बरसता है ,
अगस्त में नदी - नालो में उफान होता है ,
सितम्बर नयी अंगड़ाई लाता है ,
साल के नौ महीने बीत गए - धीरे से कहता है।
अक्टूबर में पेड़ो के पत्ते साख से झड़ जाते है ,
नवंबर में त्यौहार शुरू हो जाते है ,
दिसम्बर फिर सर्द हो जाता है ,
एक साल यूँ ही बीत जाता है।
हर साल कुछ दे जाता है ,
हर साल कुछ ले जाता है ,
समय का चक्र है ,
वक्त का पहिया चलता जाता है।
हिंदी साहित्य को उसका आधुनिक सितारा मिल गया है। लिखते रहो सर , आप साधारण से शब्दों में भी अद्भुत जान डाल देते हो।
ReplyDeleteआप अदभुद है। आपकी सोच तो लोगों की सोच से बहुत परे है। आप की भावनाएं बहुत शक्तिशाली है।आपको अपने दोस्त के रूप में पाकर हम अपने आप को धन्ये समझते है।लिखते रहिये, मेहरा साब। छा जाओ।
ReplyDeleteNice composition 💐💐
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