घोषणा तो होती है ,
जनता की सरकार बनेगी ,
मगर ,
बनने के बाद ,
जनता से ,
सरकार से क्यों अलग हो जाती है ?
कुछ तो झोल है ,
उस कुर्सी में ,
बैठते ही ,
नीयत क्यों बदल जाती है ?
वो वादे ,
वो इरादे ,
न जाने कहाँ काफूर हो जाते है ,
जनता की सरकार ,
फिर जनता को ही क्यों गरियाते है ?
कुछ तो खामी है ,
लोकतंत्र में ,
जरूर कही कोई छुपा मंत्र है ,
चोर दरवाजे से ,
इतने सारे गिरगिट कैसे घुस जाते है ?
हम अपना देखते है ,
तुम अपना देख लो ,
इस देखा देखि में ,
पांच साल निकल जाते है।
कुछ तो खामी है ,
ReplyDeleteलोकतंत्र में ,
जरूर कही कोई छुपा मंत्र है ,
चोर दरवाजे से ,
इतने सारे गिरगिट कैसे घुस जाते है ?
Bitter Truth