Wednesday, October 3, 2018

इश्क का चक्रव्यूह (हास्य )



किसी को देखने की चाहत दिल में मचलने लगे , 
यूँ ही अचानक से मुस्कराहट होंठो पर तैरने लगे , 
आँखे उनके दीदार को तरसने लगे , 
इश्क चक्रव्यूह के पहले द्वार पर आप दस्तक देने लगे।  

उनसे मिलने को जब दिल करने लगे , 
बातें उनकी जब मीठी लगे , 
आँखों में अब उनकी तस्वीर दिखने लगे , 
चक्रव्यूह के दूसरे दरवाजे तक आप पहुँचने लगे ।  

दिल में जब हरारत होने लगे , 
बिना बात किये दिल न भरे , 
रात को नींद कम , सपने ज्यादा आने लगे ,
इश्क चक्रव्यूह का तीसरा दरवाजा भी आप भेद गए।  

हर पल उनका साथ जब भाने लगे , 
उनके बगैर अब ज़िन्दगी बेमानी लगे , 
राते खयालो में गुजरने लगे  , 
चौथा दरवाजा भी इश्क का आप तोड़ चले।  

न दिन को सुकून , न रात को चैन मिले ,
हर वक्त उनका ही ख्याल रहे , 
भीड़ में भी उनका ही चेहरा ढूंढने लगे , 
पाँचवा दरवाजा खुद ब खुद खुलने लगे ।  

उनका हर सपना जब अपना लगे , 
प्यार भरे नग्मे अब खुद की कहानी कहने लगे , 
उनके आंसुओ से खुद की आँखों की कोरे गीली होने लगे ,
समझिये , इश्क के अंतिम पायदान पर आप पहुँच गए।  

जब ज़िन्दगी में उनके बिना कुछ भी न भाने लगे , 
उनकी हर ज़िद्द जब आपको अच्छी लगने लगे , 
तमाम और रिश्ते जब आपको दोयम लगने लगे , 
बधाई हो , इश्क चक्रव्यूह के "केंद्र " में पहुँच गए ।

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