Friday, October 12, 2018

कश्मकश


गुजर रही थी ज़िन्दगी सुकून से, 
ख्वाईशो ने लफड़े कर दिए , 
उम्र गुजरती रही , 
और ये बढ़ते रहे।  

न मिला फिर चैन-ओ -सुकून ,
बस भागते रहे , 
इस भागमभाग में , 
दिन बीतते रहे।  

दिल ने कई बार टोका , 
दिमाग ने हामी न भरी , 
दोनों की कश्मकश में , 
हम पीसते रह गए।  

कुछ अदद जरूरते ही तो थी हमारी , 
उनसे ऊपर ऐशो आराम जुटाने में लग गए ,
लगी ऐसी लत की , 
ऐश और आराम दोनों भूल गए।  

ज़िन्दगी गाहे बगाहे चेताती रही ,
हम अनुसना कर आगे बढ़ते रहे , 
अच्छे "कल " के इन्तजार में , 
हम "आज " को खोते रहे।  

सुकून की तलाश में शुरू किया था जो सफर , 
तनाव में हर वक्त रहने लगे , 
एक किनारे से चले थे हम , 
दूसरे किनारे पर न जाने कैसे पहुँच गए।  

4 comments: