सूक्ष्म से विशाल तक ,
न्यून से अथाह तक ,
पातल से अंतरिक्ष तक ,
मुझ से हम तक ,
आकार से निराकार तक
सर्वव्याप्त , सर्वत्र, स्वच्छंद
तेरा कैसे गुणगान करू ,
कैसे तेरा एहतेराम करू ,
इक इक साँस में समाया,
कैसे तेरा धन्यवाद करूँ।
रोम रोम में तेरी कृपा ,
भ्रम में जीता हूँ कि ,
अपने बलबूते जिंदगी जीता हूँ ,
कठपुतली तेरे हाथ की ,
जैसे तू नचाता , नाचता हूँ।
जीवन के इस रंगमंच पर ,
किरदार तू हमसे निभवा रहा ,
श्रेष्ठ निर्देशक बन ,
नित नए दृश्य गढ़ रहा ,
आदि और अंत तू ही जानता है ,
हम तो निमित किरदार है तेरे नाटक के ,
जीवन हर पल तू रच रहा।
जीवन तेरी थाती है,
तेरा ही अधिकार है ,
क्या अतिकार और क्या प्रतिकार ,
तेरे इशारो पर नाच रहा ये सारा संसार ,
मैं मनुज तुच्छ सा ,
झूठा मेरा अहंकार ,
"मैं " के वहम को ,
तू पल में कर सकता है संहार ,
नियति तेरे हाथो में ,
कर्मो पर बस मेरा अधिकार ,
नतमस्तक हूँ , शीश झुकाता हूँ ,
हतप्रभ हूँ देखकर ,
हर पल तेरे नए चमत्कार।
तुझ पर आस है ,
तू ही विश्वास है ,
जीवन नैया का ,
तू ही खेवनहार है ,
किरदार जो तूने दिया ,
सब उसे निभा रहे ,
जीवन के इस रंगमंच में ,
तमाशे रोज़ तेरे इशारे पर हो रहे ,
जीवन तुझसे , तुझपर ही ख़त्म ,
"सत्य" एक तू , बाकि सब भ्रम ,
तेरी बनायीं "माया " में सब उलझ रहे ,
रोज़ ज़िन्दगी के नए मायने गढ़ रहे ,
हुकूमत तेरी , सत्ता तेरी
बिना तेरी मर्ज़ी पत्ता तक न हिले।
शीश झुका , मन में स्मरण
हे ! जगत के स्वामी
तुझे कोटि कोटि नमन ,
भटके कभी कर्मपथ पर अगर ,
राह फिर सही दिखाना भगवन।
Superb...👌👌👌
ReplyDeleteGreat Dadda???
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteComplete devotion
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