Friday, October 5, 2018

नमन


सूक्ष्म से विशाल तक ,
न्यून से अथाह तक ,
पातल  से अंतरिक्ष तक ,
मुझ से हम तक , 
आकार से निराकार तक 
सर्वव्याप्त , सर्वत्र, स्वच्छंद
तेरा कैसे गुणगान करू ,
कैसे तेरा एहतेराम करू ,
इक इक साँस में समाया, 
कैसे तेरा धन्यवाद करूँ।  
रोम रोम में तेरी कृपा , 
भ्रम में जीता हूँ कि ,
अपने बलबूते जिंदगी जीता हूँ ,
कठपुतली तेरे हाथ की , 
जैसे तू नचाता , नाचता हूँ।  

जीवन के इस रंगमंच पर , 
किरदार तू हमसे निभवा रहा , 
श्रेष्ठ निर्देशक बन ,
नित नए दृश्य गढ़ रहा , 
आदि और अंत तू ही जानता है , 
हम तो निमित किरदार है तेरे नाटक के , 
जीवन हर पल तू रच रहा।  

जीवन तेरी थाती है, 
तेरा ही अधिकार है ,
क्या अतिकार और क्या प्रतिकार , 
तेरे इशारो पर नाच रहा ये सारा संसार , 
मैं मनुज तुच्छ सा , 
झूठा मेरा अहंकार , 
"मैं " के वहम को , 
तू पल में कर सकता है संहार ,
नियति तेरे हाथो में , 
कर्मो पर बस मेरा अधिकार ,
नतमस्तक हूँ , शीश झुकाता हूँ ,
हतप्रभ हूँ देखकर ,
हर पल तेरे नए चमत्कार।  

तुझ पर आस है , 
तू ही विश्वास है , 
जीवन नैया का , 
तू ही खेवनहार है ,
किरदार जो तूने दिया ,
सब उसे निभा रहे , 
जीवन के इस रंगमंच में ,
तमाशे रोज़ तेरे इशारे पर हो रहे , 
जीवन तुझसे , तुझपर ही ख़त्म ,
"सत्य" एक तू , बाकि सब भ्रम ,
तेरी बनायीं "माया " में सब उलझ रहे ,
रोज़ ज़िन्दगी के नए मायने गढ़ रहे ,
हुकूमत तेरी , सत्ता तेरी 
बिना तेरी मर्ज़ी पत्ता तक न हिले।

शीश झुका , मन में स्मरण 
हे ! जगत के स्वामी 
तुझे कोटि कोटि नमन ,
भटके कभी कर्मपथ पर अगर ,
राह फिर सही दिखाना भगवन।  

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