जकड़न सिर्फ दिमाग में होती है ,
वर्ना इंसान के वश की
क्या चीज नहीं ,
जो भी हुआ है अभी तक
संसार में ,
किया तो है किसी इंसान
ने ही।
हमने खुद जकड़ा है सीमाओं
में ,
कुव्वत की कोई थाह नहीं
,
धैर्य तो रखना ही होता
है ,
"उस पर " भरोसे
से बड़ा कोई भरोसा नहीं।
सीमाओं से परे जिसने
भी सोचा ,
वह शिलालेखों में अमिट
हो गया ,
जो फैला न सका पँख अपने
,
वो न जाने कहाँ ग़ुम हो गया।
परिस्थितियों का तो सिर्फ
बहाना है ,
बस जागने की ही तो बात
है ,
लपक लिये जिसने अवसर
समय पर ,
शिखर उसके लिए कोई मुश्किल
नहीं।
बाधाएँ सिर्फ दिमाग में
है ,
वक्त कभी भी किसी के
लिये गुजरा नहीं ,
चलना चाहे अगर कोई ,कभी
भी ,
वक्त कहता है तू चल
, देर कभी नहीं।
इक "ज़िन्दगी
" मिली है आनन्द ,
इससे बढ़कर शायद कोई सौगात
नहीं ,
यूँ ही काट दी गर तो
,
इससे बड़ा अन्याय कोई नहीं।
No comments:
Post a Comment