Monday, January 6, 2025

जकड़न

 जकड़न सिर्फ दिमाग में होती है ,

वर्ना इंसान के वश की क्या चीज नहीं  ,

जो भी हुआ है अभी तक संसार में ,

किया तो है किसी इंसान ने ही। 

 

हमने खुद जकड़ा है सीमाओं में  ,

कुव्वत की कोई थाह नहीं ,

धैर्य तो रखना ही होता है ,

"उस पर " भरोसे से बड़ा कोई भरोसा नहीं। 

 

सीमाओं से परे जिसने भी सोचा ,

वह शिलालेखों में अमिट हो गया ,

जो फैला न सका पँख अपने ,

वो न जाने कहाँ ग़ुम  हो गया। 

 

परिस्थितियों का तो सिर्फ बहाना है ,

बस जागने की ही तो बात है ,

लपक लिये जिसने अवसर समय पर ,

शिखर उसके लिए कोई मुश्किल नहीं। 

 

बाधाएँ सिर्फ दिमाग में है ,

वक्त कभी भी किसी के लिये गुजरा नहीं ,

चलना चाहे अगर कोई ,कभी भी ,

वक्त कहता है तू चल , देर कभी नहीं।

 

इक "ज़िन्दगी " मिली है आनन्द ,

इससे बढ़कर शायद कोई सौगात नहीं ,

यूँ ही काट दी गर तो ,

इससे बड़ा अन्याय कोई नहीं। 

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