मैं भी वो शिरा ढूंढ रहा है ,
जिससे पकड़कर ,
मैं भी चढ़ सकूँ ,
सफलता की ऊँचाइयाँ ,
मैं भी चख सकूँ ,
कामयाबी का स्वाद ,
न जाने क्यों ,
नहीं मिल रहा मुझे वो शिरा ,
कोशिश तो मैं भी कर रहा ,
रात -दिन , हर पल ,
जोश भी नित भर रहा ,
मेहनत से भी नहीं डर रहा ,
फिर क्या कारण हो सकता है ,
जो मुझे नहीं मिल रहा वो उपाय ,
जिससे मैं भी चढ़ सकूँ ,
वो सीढ़ियाँ , जिसे देख ,
दुनिया कहती है ,
हाँ , देखो , वह सफल हुआ।
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