जब तक माँ थी ,
मेरा भी एक घर था ,
जब तक माँ थी ,
मेरे ऊपर आसमां था ,
जब तक माँ थी ,
पैरों तले मेरी भी जमीं थी ,
जब तक माँ थी ,
मैं बहुत लायक था ,
अब माँ नहीं है ,
मैं एक मकान में रहता हूँ ,
आसमां में कई सुराख़ है ,
गिरता पड़ता रहता हूँ ,
बहुत उबड़ खाबड़ जमीं पर,
और दुनिया ने मुझपर ,
नालायक का ठप्पा लगा दिया,
मेरा आधा शायद ,
माँ के साथ ही चला गया।
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