Sunday, January 19, 2025

घर और माँ


 जब तक माँ थी , 

मेरा भी एक घर था , 

जब तक माँ थी , 

मेरे ऊपर आसमां था ,

जब तक माँ थी , 

पैरों तले मेरी भी जमीं थी , 

जब तक माँ थी , 

मैं बहुत लायक था , 

अब माँ नहीं है , 

मैं एक मकान में रहता हूँ ,

आसमां में कई सुराख़ है ,

गिरता पड़ता रहता हूँ , 

बहुत उबड़ खाबड़ जमीं पर,

और दुनिया ने मुझपर , 

नालायक का ठप्पा लगा दिया,

मेरा आधा शायद , 

माँ के साथ ही चला गया। 

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