संदेशा पहुँचा राज दरबार ,
मिलना चाहती है राधा अंतिम बार ,
द्वारकादीश भागे छोड़ सब काम ,
पहुँचे जहाँ राधा कर रही थी अंतिम विश्राम ,
"बजा दो कान्हा , फिर वही धुन ,
अब गहरी नींद सोना चाहती हूँ ,
विरह में बीती सारी ज़िन्दगी ,
वो धुन फिर सुनना चाहती हूँ। "
राधा रानी के अंतिम शब्द ,
सुन कृष्ण मुस्कराये ,
पकड़ी फिर से बाँसुरी ,
जिसे त्याग आये थे वृंदावन धाम ,
अंतिम बार अधरों से ,
बाँसुरी से धुन छेड़ी ,
राधा पहुँच गयी कानन में ,
हौले से मुस्कराई ,
कुँज की गलियों में भागी ,
गोपियों संग अठखेली,
कान्हा को देख सुधबुध खोई ,
दी माखन की डली ,
धीरे -धीरे आँखे बंद हुई ,
दिव्य तेज शरीर से निकला ,
उर में समा गई बाँसुरी बजैया,
तोड़ दी बाँसुरी ,
अंतिम बार निहारा ,
राधे अमर रहेगा प्रेम तुम्हारा ,
कैसा आलौकिक प्रेम
था ये ,
राधे -राधे हुआ जग सारा।

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