Thursday, August 28, 2025

सफ़र के नुक्ते

 

कब , कहाँ , किसको , किसकी पड़ी है ,

तन कहीं , मन कहीं, दिमाग की बत्ती बुझी पड़ी है ,

कहने को अकेले का ही सफर है "आनन्द"  यहाँ ,

नन्ही सी गाड़ी में न जाने कितने सवारियों की जिम्मेदारी है।

 

जिम्मेदारी तक तो ठीक ,

उम्मीदों का बोझ भारी है ,

मन गिरवी चंद पैसों खातिर ,

दिमाग में ख्याली पुलाव है ,

तन तरसता थोड़ा सुस्ताने को ,

पिछड़ने का डर लाज़मी है ,

अपने दुःख तो सहे जाते है ,

दूसरों के सुःख का दुःख ज्यादा हावी हैं।

 

जरूरतें तो कम ही है ,

इच्छाओं का ही कोई अंत नहीं है ,

जब तक अप्राप्य है , तभी तक धुन है ,

मिल गया तो फिर वह तुच्छ समान है ,

स्वर्ग की तलाश में भटक रहे सब ,

हर कोई परेशान और खुद हैरान है , 

संतोष किस चिड़िया का नाम है " आनन्द ",

भागते रहना ही तो जिंदगी का दूसरा नाम हैं।

2 comments:

  1. भागना नहीं, कर्म करते करना यही जिंदगी है और गीता का ज्ञान भी।

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