Sunday, December 15, 2013

मैं और मेरी ज़िन्दगी .......

बहुत कुछ कर गुजरने कि तमन्ना ,
जीने नहीं देती हैं  ,
कुछ न हो पाने कि बेचैनी ,
सोने नहीं देती हैं ,

कश्मकश हर रोज़ चलती हैं ज़िन्दगी और मेरी ,
कभी उसका पलड़ा भारी तो कभी मेरा हाथ ऊपर होता है ,
हम दोनों कभी एक दूसरे को उकसाते हैं ,
तो कभी शांत रहने कि सलाह देते हैं ,

ज़िन्दगी हर रोज़ सवाल करती हैं ,
मेरे बीते दिन का हिसाब पूछती हैं ,
आगे के प्लान के बारे में पूछती हैं ,
कभी मैं हँस के जवाब देता हूँ ,
तो कभी चुप रहने को भी बोलता हूँ ,

जदोजहद चलती रहती है हर रोज़ हमारी ,
शायद इसलिए मै भी लाइन पर रहता हूँ ,
उसके  सवालो से कुड़ता भी हूँ ,
तो मन ही मन उसका शुक्रिया भी अदा  करता हूँ ,
क्यूंकि मेरी ज़िन्दगी मेरा आइना ही तो हैं ,
जिसमे मैं हर रोज़ अपना अक्श टटोलता हूँ .

मैं सिर्फ मैं तक सीमित हूँ
मगर मेरी ज़िन्दगी मेरा व्यक्तिव बनाती हैं ,
हर अच्छे बुरे वक्त में मेरा साथ निभाती हैं ,
बहकता भी हूँ कभी हवा के झोंके में तो ,
मुझे फिर से लाइन पर लाती हैं . 

Sunday, November 24, 2013

इंसानी सोच और दिमाग का कारवां...

अदभुत क्षमता हैं इंसान में ,
बस अपनी पहचान करने कि जरुरत हैं ,

राईट बंधुओ ने पक्षियों को देख कर हवाई जहाज कि कल्पना साकार कर ली ,
नील आर्मस्ट्रांग ने धरती के आकाश से निकल कर एक दूसरे आकाश कि यात्रा की,

एडिसन ने बल्ब देकर अपने नन्हे सूरज से अँधियारो में रौशनी भर दी ,
बेयर्ड ने टी वी बनाकर दुनिया एक बॉक्स में सिमटा दी ,

इंसान कि क्षमताओ से कंप्यूटर ने हमारी ज़िन्दगी बदल ली ,
इंटरनेट ने एक क्लिक पर सारी दुनिया आपकी मुट्ठी में लाकर रख दी ,

किसी ने टायर बनाकर जगहो  कि दूरियां मिटा दी ,
किसी ने रोगो से लड़ने कि दवा बना दी ,

इंसानी क्षमता और दिमाग को शत शत नमन ,
उन लोगो को नमन जिन्होंने हमारे लिए दुनिया इतनी आसान कर दी ,

अद्धितीय हैं इंसान कि क्षमता ,
सीमाओ से परे ,
सागर से गहरी ,
पर्वतो से पार ,

एक नन्ही सी सोच क्रांति ला देती हैं ,
एक नन्हा सा कदम इतिहास बना देता हैं .

क्या इंसान के दिमाग कि कोई थाह हैं ?
मुझे समझ नहीं आता ,
हर बार लगता हैं शायद इसके बाद अब कुछ नहीं ,
अगले पल , वो और आगे चला जाता हैं ......

शायद ये इंसानी सोच और दिमाग का कारवां हैं ,
कहाँ थमेगा कोई नहीं जानता .............

Sunday, November 17, 2013

शुक्रिया सचिन !

आयेंगे और भी सचिन मगर सचिन तेंदुलकर एक ही रहेगा ,
क्रिकेट के आकाश में ध्रुव तारे कि तरह चमकता रहेगा ,
क्रिकेट का पर्याय बन कर अलविदा कह गया उसका एक पूजारी ,
बाइस गज कि पिच से अलविदा हो गया उसका एक महान खिलाडी ,
क्रिकेट के लिए तो तुम याद रखे ही जाओगो ,
उससे ऊपर हमें इस खेल का  आदी बनाने के लिए याद आओगे ,
क्रिकेट हम अब भी देखेंगे , हर जीत पर जश्न और हर हार पर गम मनाएंगे ,
मगर पिच पर तुम्हारे आने से जो एक भरोसा जगता था ,
शायद अब वो न कर पाएंगे ,

शुक्रिया सचिन ! ज़िन्दगी कि इस आपाधापी में कुछ ख़ुशी के पल देने के लिए ,
शुक्रिया सचिन ! एक शिखर पर पहुँच कर भी शालीनता का सबक सिखाने के लिए ,
शुक्रिया सचिन ! क्रिकेट के इस खेल को धर्म बनाने के लिए ,
शुक्रिया सचिन ! एक मानव कैसा महामानव बनता हैं दिखाने के लिए .
शुक्रिया सचिन ! हमें अपने में विश्वास सीखाने के लिए .

क्रिकेट कि जब जब बात होगी , हमारी पीढ़ी तुम्हे जरुर याद रखेगी .
हा ! हमने सचिन को खेलते देखा हैं का गुमान करेगी . 

Thursday, October 24, 2013

आगे बढ़ते रहना होगा ......


कदम बढाएंगे तो ही आगे बढ़ेंगे ,
जडवत होकर तो एक ही जगह ठहर जायेंगे ,

पकडे रखो एक छोर ज़िन्दगी का ,
कहीं न कही तो पहुँच ही जायेंगे ,

कैसा ही समय हो - भला या बुरा ,
"सदा " नहीं रहता हैं ,
बेफिक्र अपने लक्ष्य को बढ़ते चलो ,
कही पर फूल , कही कांटे आते रहेंगे ,
कही पर जाने पहचाने रास्ते और ,
कही पर अनजाने रास्ते भी आयेंगे

किसी मोड़ पर बहुत साथ देने वाले मिलेंगे
तो अगले मोड़ पर अकेले भी रास्ते तय करने होंगे ,

कही पर प्यार तो कही पर दुत्कार भी मिलेगी ,
चलते रहने का नाम ही तो ज़िन्दगी हैं .

आशा और निराशा आती रहेंगी ,
धूप  छाँव भी आँखमिचोली खेलेगी ,
राह दिखने वाले भी मिलेंगे तो ,
राह भटकाने वाले भी रास्ता देखेंगे ,

ठोकरे भी लगेंगी तो कही सहलाव भी मिलेगा ,
कही पर पहाड़ सरीखे रास्ते भी मिलेंगे ,
तो कही ढलान भी मिलेगा ,

कही पर अपना विश्वास भी डोलेगा ,
तो अगले पल प्रेरणा भी मिलेगी ,

इस सफ़र में ये सब चलता रहेगा ,
मगर आगे बढ़ते रहना होगा . 

Tuesday, October 8, 2013

समय…….

समय की शक्ति और सामर्थ्य के आगे सब नतमस्तक ,
समय से बड़ा गुरु और मार्गदर्शक और कोई नहीं ,
जिसने इसकी शक्ति को समझा और जाना ,
उससे बढ़ा इस दुनिया में कोई ज्ञानी नहीं ,

समय ही रंक को कभी राजा तो कभी राजा को रंक बनाता हैं ,
न ये किसी के रोके रुकता हैं और न इसे खरीदा जा सकता हैं ,
ये अटल सत्य है जो अनवरत चलता  जाता हैं ,

न तो यह किसी के लिए कोई भेद करता हैं ,
न किसी को कुछ ज्यादा या कम देता हैं ,
अपने में समेटे हुए कितने दुःख और सुख के पल ,
ये बस बीतता चला जाता हैं ,

बीते हुए समय को हम यादे बना लेते हैं ,
अभी जो समय चल रहा हैं उसे जीते हैं ,
आने वाले समय के लिए ना जाने क्या क्या सपने संजोये रखते हैं ,

हम ताउम्र इसके  साथ तालमेल बैठाने का प्रयत्न करते है ,
मगर इसकी बेवफाई का आलम ये होता हैं ,
जिस पल को हम सबसे ज्यादा जीना चाहते हैं ,
उसी में ये सरपट भागता हैं और जो पल हम जल्दी बिताना चाहते हैं ,
उसी में इसकी रफ़्तार सबसे सुस्त पाते हैं .

हर पल ये छलावा करता रहता हैं ,
अगर अभी सही हैं तो न जाने आने वाले पल में क्या छुपाये बैठा हैं ,
इसलिए न इसकी दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी ,
बस इसको अपनी गति से चलते जाने दो ,
हो सके तो इसके हर पल को जीना सीख लो . 

Thursday, September 26, 2013

शिखर...........

शिखर को देख कर हमें भी उसके जैसा होने की लालसा होती हैं ,
उसकी उच्चाई हमें उसके बहुत बढे होने का एहसास कराती हैं ,
हम भी झटपट उस शिखर के बराबार होने चाहते हैं ,
मगर , उस शिखर को शिखर बनने की उसकी कवायद को हम भूल जाते हैं ,

कैसे उसने अपना सफ़र तय किया होगा ,
कितने थपेड़ो  को उसने झेला होगा,
हर मौसम की मार उसने सही होगी ,
कितनी जानी अनजानी रूकावटो से वह लड़ा होगा,

कितने अवरोधों से लड़कर वह आगे बढता रहा होगा ,
ना जाने क्या क्या सहकर वह आज इस मुकाम पर पहुंचा होगा ,
अपने न हारने के जज्बे को उसने कितनी बार समेटा होगा ,
अपने कितने अपनों को उसने इस यात्रा में छोड़ा होगा ,

हमें भी उसके जैसा बनना हैं तो बहुत कुछ छोड़ना होगा ,
लक्ष्य एक बनाकर उसके पीछे भागना होगा ,
रास्ते के ठोकरों को फूल समझकर  पार पाना होगा ,
अपनी हिम्मत और जिद्द को अपना हथियार बनाना होगा .

माना की कठिन हैं राह - मगर हौंसला  तो दिखाना होगा ,
कदम एक तो उठाना होगा ,
खोने के लिए तो कुछ नहीं हमारे पास , जो मिलेगा वो तो पाना ही होगा ,
गर जिगर में आग लग जाए तो फिर उसे बुझाना तो होगा . 

Saturday, August 17, 2013

मेरा देश , मेरा गर्व

क्यों न गर्व करू मैं  अपने देश पर ,
मेरा देश मेरा गौरव हैं ,
इसकी मिटटी से ही तो बना हूँ मैं ,
इसी धरती पर तो रहता हूँ मैं ,
इसकी हवा से सांसे चलती हैं मेरी ,
इसी की मिटटी से उपजा अन्न खाता हूँ मैं ,

माना की समस्याये बहुत हैं मगर ,
इसी की आजाद धरती पर बेपरवाह घूमता हूँ मैं,
ये बुरा हैं , ये अच्छा हैं कहने की ताकत तो रखता हूँ मैं ,
कभी अपनी सरकार को , कभी अपने सिस्टम को ,
कोसने का अधिकार तो रखता हूँ मैं ,

जो हैं  , जैसा चल रहा हैं उसका सीधा भागीदार हूँ मैं,
सरकार भी चुनता हूँ मैं ,
सिस्टम भी बनाता बिगाड़ता हूँ मैं ,
अपने हित के लिए प्रक्रति से खिलवाड़ भी करता हूँ मैं ,
अन्याय का विरोध भी पुरजोर आवाज से नहीं करता मैं ,

फिर मैं देश पर गर्व क्यों न करू ,
इतना कुछ होने के बाद इसी की आगोश में बेफिक्री की नींद सोता हूँ मैं ,
इसी की रोटी , इसी का पानी , इसी की हवा  में जीता हूँ मैं ,
फिर देश को बुरा क्यों कहूँ मैं ,
गर्व करने के हजारो कारण हैं मेरे पास ,
न करने के कुछ गिने चुने ,
मेरा देश तो सबसे महान हैं ,
सारी दुनिया का ताज हैं .........

Monday, August 5, 2013

अजीब कशमकश .....

मै अपनी  बिटिया के साथ जा रहा था
रास्ते में एक भिखारी मिला
वो  मुझसे  कुछ   रुपये मांग रहा था
मै  कई जगह ऐसे भिखारियों से टकराता  हूँ
उसको "  बाबा हमें माफ़  करो , आगे बढ़ो
कहता हुआ निकला  जा रहा था
चंद  कदम आगे भी बढ़ा था,
मेरी चार साल की बिटिया ने  मुझे पीछे खीचा और कहा ,
" पापा ,  आपने उन बूढ़े अंकल को पैसे  क्यूँ  नहीं दिए
वो अपने खाने के  लिए ही तो   पैसे मांग रहे थे
 उनके  पास पैसे नहीं होंगे , आप दे देते
चलो , उनको कुछ  पैसे दो
मैंने कहा ," बेटा , मेरे पास पैसे नहीं हैं
तो वह तपाक से बोली, " पापा, झूठ नहीं बोलते , आपके पर्स में पैसे तो हैं
मैंने कहा , " बेटे , पैसे तो हैं मगर खुले पैसे नहीं हैं बाबा को देने के लिये
तो वह बोली ," तो खुले करवा लो फिर दे दो
मैं उसको अनसुना करके आगे बढ़ना लगा,
वो रोने लगी , " पापा , आपने अंकल को पैसे क्यूँ नहीं दिए
अब वो क्या खायेंगे , कहाँ जायेंगे ?"
मैंने बिटिया की आँखों से बहता पानी देखा और 
पर्स निकाल कर दस रुपये का नोट निकाल कर बाबा को आवाज देकर बुलाया ,
बाबा को पैसे देकर थोडा आगे बढ़ा  तो बिटिया को फिर से बढ़ा खुश पाया
अब वो उस घटना को भूल चुकी थी
मगर मेरे सामने सबको और इंसानियत के कई सवाल छोड़ गयी थी , 
मैंने उसे गोद में उठाया और इधर उधर की बातो में फंसाया
वो भोला सा मन फिर से चहकने लगा
और मै घबरा रहा था अब कही और कोई मांगने वाला मिल जाये

जिससे मेरी बेटी फिर मेरे पीछे पड़ जाये 

Friday, July 19, 2013

जीवन कारवाँ

कभी कभार जब अपने जीवन  कारवाँ को पीछे  पलट के  देखता हूँ,
तो अपने पीछे  अनगिनत लोगो का हुजूम  पाता हूँ , 
वो पापा का किसी बात पर डाँटना और अगले  ही पल  दुलारना , 
वो मम्मी का हर बात पर  फिक्र करना , 
वो बचपन का मेरा दोस्त जिसके कंधो पर मैं हाथ डालकर  स्कूल जाता  था
वो मेरे  मास्टर जी जिनकी बेतों की मार खाकर मै उनको हिटलर  कहता था
वो दादी माँ जिनको मैं शैतानी का बाप लगता था
वो  दादा जी जिनके कंधो पर बैठकर  उनके बाल खीचता था
वो स्कूल के प्रिंसिपल जिनके जैसा मै बनना चाहता था
वो मेरा भाई जिसे अपने से ज्यादा  भरोसा मुझ पर था
वो मेरी  बहन जिसे  दुनिया में मुझसे  बेहतर कोई  नहीं दिखता था
वो मेरे कॉलेज के दोस्त जिनके साथ भविष्य की हर रोज़ नयी कल्पना करता था, 
वो मेरी  बीवी जिसने  मुझे  अपना जीवन समर्पित किया , 
वो मेरी बेटी जिसने मुझे फिर से  मुझे  बचपन   को याद दिलाया ,
वो मेरे  ऑफिस के दोस्त  जिन्होंने मुझे  काम करना सिखाया , 
और भी न जाने कितने लोगों ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया, 
मैंने तो  शायद ही  इनके  लिए कुछ किया हो , मगर इन सब ने मुझे बनाया,
अपने जीवन के कारवां को  कभी कभी याद  कीजिये , 
बढ़ा  सुकून मिलता हैं और " मैं , सिर्फ मैं " का भ्रम दूर  होता हैं , 
अभी तो कारवां ने कुछ ही मीलो का सफ़र तय किया हैं , 
बहुत दूर और जाना हैं , 
न जाने कितने लोग और जुडेगे मेरे जीवन कारवां में , 
क्यूंकि मेरे जीवन का कारवां जारी हैं  ........... 

Wednesday, July 17, 2013

कलम और शब्दों की जंग

आजकल चीजो और हालातो को देख परख रहा हूँ 
की किसी विषय पर कुछ पंक्तिया लिखू , 
विषयो का भटकाव  इतना ज्यादा हो गया हैं शायद , 
या मै ही एक विषय चुनने में असमर्थ हो रहा हूँ,
जिधर नजर दौड़ाता हूँ , विषय बहुत मिल जाते हैं , 
दो चार शब्दों को पिरोने का प्रयास भी करता हूँ , 
मगर चंद पंक्तियों के बाद दिमाग बोझिल सा हो जाता हैं , 
सोचता हैं हजारो पंक्तियों के विषय को तू , क्यूँ कुछ पंक्तियों में कैद करना चाहता हैं , 
बस असमंजस और कशमकश जारी हैं , 
मेरे और विषयो के बीच , 
यकीन हैं किसी न किसी दिन फिर से लेकर बैठूँगा , 
अपने दिमाग और कलम के बीच की जंग को , 
मै ही शांत करूँगा ............और तब शायद कुछ सार्थक लिखूंगा , 
अपने दिमाग और विषयो की अभिव्यक्ति को अपने शब्दों का जामा पहनाऊंगा ......

Monday, June 24, 2013

पहाड़ रो रहे हैं .............( पहाड़ो की कहानी , उन्ही की जुबानी )


मैं पहाड़ हूँ , प्रकृति  की खूबसूरती में चार चाँद लगाता हूँ ,
शांत , अटल ,अडिग होकर सब कुछ झेलता हूँ , 
मैं इंसानों की आवश्यकता के लिए सब कुछ देता हूँ, 
फल , लकड़ी , नदियाँ ,  झरने और भी न जाने कितना कुछ देता हूँ , 
यह सब ठीक था , जब तक इंसान लालची न था, 
जितना उसको चाहिए था मुझसे लेता था , 
बदले में उसको कुछ न कहता था , 
हर मौसम की मार खुद ही सहकर यूँ ही खड़ा रहता था ,
मगर अब सब कुछ बदल गया हैं , 
इंसान स्वार्थी हो गया हैं , 
उसने हमारे साथ खिलवाड़ कर दिया हैं , 
हमारे  वस्त्र रुपी पेड़ काट काट कर हमें नंगा कर दिया हैं , 
हमारी धमनियो - नदियों को जहाँ तहां बांध बना कर रोक दिया हैं , 
सीने पर हमारे कंक्रीट के जंगल बना दिया , 
कब तक सहन करता मैं , एक दिन तो सब्र का बाँध मेरा भी टूटना ही था, 
ये तो सिर्फ चेतावनी हैं , इतने से ही इंसान को चेतना हैं , 
अन्यथा एक दिन ऐसा आएगा , 
मैं भी भरभराकर कर गिर जाऊंगा , 
प्रलय आएगी उस दिन सब जल मग्न हो जायेगा , 
फिर मुझे दोष मत देना क्यूंकि मैं तो हर बार इंसान को चेताती हूँ , 
तेरे जरुरत को तो मैं पूरा कर सकती हूँ मगर लालच के आगे तो मैं भी बेबश हूँ ....
तुझे तय करना हैं की तुझे क्या चाहिए ? 
हमारा साथ या फिर हर बार का हाहाकार ........
मैं उजड़ कर फिर आबाद हो जाऊंगी , 
मगर तेरे वजूद के क्या होगा , सोच कर घबराती हूँ . 

( यह महज कविता नहीं हैं , यह सच्चाई हैं जिसका परिणाम हम अभी पहाड़ो में आये जल सुनामी के रूप में देख चुके हैं ..  हम इंसान अगर अब भी यूँ ही खिलवाड़ करते रहे तो आगे भविष्य क्या होगा ? कल्पना करने से ही रूह काँप उठती हैं ) 

Monday, March 11, 2013

कारवां चलना चाहिए ........

हुंकार से पर्वतो को कंपा दे, 
अपने हाथो से नदियों का रुख मोड़ दे , 
गर्जना से जो बादलो को हटा दे , 
धधकती आग को जो पल भर में बुझा दे , 
पलक झपकते जो पहाड़ो को नाप दे , 
हालातो को जो अपने लिए मोड़ दे , 

अन्याय के लिए जो खुद को कुर्बान करने से न डरे , 
वो युवा अब हमें चाहिए और एक नहीं हजारो चाहिए , 
देश को सँभालने के लिए अब युवा चाहिए , 
बहुत हो चूका अब सब्र , 
देश हमारा हैं और हमें इसको सवारना हैं , 
एक नहीं पूरा रेला चाहिए , 

नौजवानों को अब हुंकार भरनी चाहिए , 
हर हालत में अब ये तस्वीर बदलनी चाहिए।
देश की तकदीर का  फैसला हमें ही करना हैं , 
क्यूंकि इसका भविष्य हमें ही तय करना हैं , 
अतीत से सबक लेकर वर्तमान हमसे ही बनना हैं , 
भविष्य रहे सुरक्षित हाथो में आज ही हमें तय करना हैं। 

जो जहां हैं,  जैसा हैं - मुमकिन कोशिश होनी चाहिए , 
कल कभी आता नहीं , अभी और इसी पल से शुरुवात होनी चाहिए , 
जो गलत हैं वो गलत हैं - कहने का साहस होना चाहिए , 
अन्याय और अत्याचार के खिलाफ जंग मुखर होनी चाहिए . 
ये धरती हमारी हैं और इस पर हमारा हक़ होना चाहिए . 

कारवां ये परिवर्तन का अब चलना चाहिए , 
राह कठिन भले ही हो , बढते चलना चाहिए , 
एक लक्ष्य के लिए सब युवा अब चलने चाहिए . 

Friday, February 22, 2013

एक अधूरी कविता ..........

बहुत दिनों से कोई कविता नहीं लिखी, 
आज सुबह से ही सोच रहा था , 
आज किसी न किसी विषय पर कविता लिखूंगा , 
सुबह घर से चला तो सोचा , 
ऑफिस पहुचने से पहले कोई न कोई विषय पर ध्यान केन्द्रित कर ही लूँगा , 
बस में चल दिया और अगले एक घंटे  में दिमाग को खूब दौड़ाया , 
किसी विषय पर तो अपने शब्दों का जाल से बुनू 
किसी एक विषय में दो चार पंकित्यो  से आगे नहीं सोच पा रहा था,  
घर परिवार से दुनियादारी तक ,  अपने देश से लेकर दुनिया तक, 
कल्पनाओ से लेकर यथार्थ तक , 
चाँद तारो से लेकर सागर के तल तक , 
सब सोच रहा था, 
ऑफिस पंहुचा तो ऐसा उलझा  की , 
अपनी ज़िन्दगी ही कविता लग रही थी , 
सोचा अभी थोडा काम निपटा लेता हूँ , 
अब लौटते हुए दिमाग लगाऊंगा , 
लेकिन लौटते हुए दिमाग की हालत ऐसी हो गयी थी, 
बस में जाते ही सो गया , 
मेरे घर के स्टैंड पर कंडक्टर ने आवाज देकर उतारा था, 
घर पहुच कर टीवी और बीवी बच्चो की दुनिया में खो गया , 
खाना खाया और कुछ इधर उधर की बाते की , 
रजाई तान के सो गया . 
एक कविता रचने की जो सुबह से सोच रहा था , 
अब शायद मेरे सोने के बाद , 
मेरे खर्राठे से रोशन हो रही थी। 

Tuesday, January 22, 2013

दुनिया बदल गयी हैं...


लोग कहते हैं दुनिया बदल गयी हैंमगर मैं जब सोचता हूँ
लगता हैं दुनिया तो जस की तस हैं
हमने अपने जीने के अंदाज को बदल लिया हैं
सूरज आज भी पूरब से ही निकलता है
पानी का स्वाद और रंग आज भी वैसा ही हैं
हवा आज भी दिखाई नहीं देती , 
पेड़ आज भी छाया और फल देते हैं
पत्थर आज भी चुपचाप पड़े रहते हैं
इंसान आज भी अमर नहीं हैं
फिर बदला क्या.........?
हमने अपनी ज़िन्दगी को सरल बना लिया हैं 
पैदल की जगह गाड़ियाप्लेन या रेल बना लिए हैं 
सन्देश भेजने के लिए कबूतरों से इन्टरनेट पर  गए हैं .
सोने के लिए डनलप के गद्दे बिछा तो लिए, आँखों से नींद गायब हो गयी हैं.
कल तक दादी अम्मा की कहानी सुनते थे, अब टीवी , फिल्मो से काम चला लेते हैं ,
बीमारी जो कल तक इक्का दुक्का थी, अब हजार कर दी हैं .
खाना बनाने के लिए चूल्हे से ओवेन बना लिए हैं 
दीये को अब हमने अलविदा कह बल्ब में  गए
ऐसा नहीं हैं की सबकी ज़िन्दगी बदल गयी
आज भी कुछ लोग पुरातन जीवन जी कर भी खुश हैं
हम सब कुछ हासिल करने के बावजूद भी दुखी
बदली दुनिया नहीं हैंबदले हैं हम....
जहाँ जीते थे १०० साल अब उम्र अपनी ६० कर ली हैं 
तो जीवन तो हर जगह तेज कर लियामगर अपने दिन भी तो उसी हिसाब से कम कर लिए हैं
अब इसी को दुनिया बदलना कहते हैं , तो शायद दुनिया बदल बहुत  गयी हैं ...