"उठो , जागो लंका के वीर ,
आपदा आयी है ,
दो मनुज संग वानरों की सेना ,
लंका पर चढ़ आयी हैं।"
सुन रावण की आवाज ,
कुम्भ घोर निद्रा से जागा ,
आयी है कोई घनघोर विपदा लंकेश पर ,
मन ही मन विचारा।
" हे , लंका के वीर शिरोमणि ,
इस निद्रा
को त्याग अब चिरनिद्रा की बारी है ,
एक एक कर मारे
गए सब कुल के वीर ,
अब तुम्हारी
बारी हैं। "
कुम्भकरण मुस्कराया ,
खूब अपने लिए खाना मँगवाया ,
छक कर खा पीकर बोला ,
" तुम शिवभक्त , परमज्ञानी भ्राता ,
बताओ
, कहाँ युद्ध के लिए जाना हैं। "
रावण ने सारी कथा बताई ,
सुनकर कुम्भकरण
बोला ,
" घोर अपराध किया तुमने भाई ,
किसी स्त्री का अपरहण,
बिलकुल भी क्षमायोग्य नहीं हैं ,
इसे बड़ा अपराध दुनिया में कोई नहीं हैं ,
इसलिए शायद अब ,
रावण कुल के विनाश की नौबत आयी हैं।
हे रावण , स्त्री इस जगत का आधार है ,
उसका एक एक आँसू प्रलय समान हैं। "
रावण बोला ,
" जानता हूँ भाई , अपराध मैंने किया हैं ,
जगत माता सीता
का हरण किया है ,
राक्षसों के
पाप बढ़ गए थे ,
सत्ता और शक्ति
के मद में चूर हो गए थे ,
अब राक्षस
कुल का विनाश जरुरी हैं ,
राम राज्य
स्थापना के लिए हमारा जाना भी जरुरी हैं।
स्त्री का
जब जब भी अपमान होगा ,
रावण का संहार
जरुरी होगा। "