मानव अपनी इच्छाशक्ति से ,
पहाड़ भी डिगा सकता हैं ,
रसातल समंदर के जाकर ,
मोती भी पा सकता हैं।
गर ठान ने इक बार मन में ,
सभी चुनौतियाँ छोटी हैं ,
गर कदम उठा ले एक बार ,
सात लोक भी नाकाफी हैं।
पहचान खुद को ,
अपनी राह बना ,
चलचलाचल फिर ,
कर्मो से खुद को ' महा मानव बना'।
कह गए 'दिनकर ' बार बार ये ,
दीप्तिमान , हो प्रज्वल्लित ,
जीवन एक आहुति है ,
प्राणो में अपने तू ज्योत जगा।
(हिंदी कविता के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर जी के जन्मदिन - २३ सितम्बर पर श्रदांजलि स्वरुप लिखी चंद पंक्तियाँ)
really it's an amazing creativity.. I enjoyed to my utmost level ....kindly do continue so .
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