Thursday, September 21, 2017

कनखेधार

बैठा था उतुंग शिखर " कनखेधार  " पर इक दिन , 
सामने हिमालय का दृश्य था , 
मनोरम , अति मनभावन , 
स्वर्ग सरीखा लग रहा था।  

कल कल करती कोसी नदी , 
सर्पीली होकर मद हरण करती अटल अडिग पहाड़ो का , 
अपने लय में शोर करती , 
शिवालय के जैसे पग पखार रही थी।  

रवि की आभा से हिमालय नए नए रंग बिखेरता , 
चीड़ के पेड़ो से लदे जंगल , 
छोटे छोटे सीढ़ीनुमा खेतो पर  किसान , 
एक जोड़ी बैलो को लेकर अपना पसीना बहा रहा था।  

दूर एक सड़क पर कुछ पो -पो की आवाज़ , 
इस शांत माहौल में जैसे खलल डाल रही थी , 
छितरे छितरे से गाँव , 
हर गाँव के जंगल में मंदिर, 
जैसे हर गाँव का अपना अपना भगवान लग रहा था।  

सांझ हुई , उतरा नीचे 
हिमालय भी अब सोने लगा था , 
अजीब अजीब छायाचित्रों से , 
अब जंगल भयावह लग रहा था।  

टिमटिमाते तारे संगी , 
चंद्र किरणे राह दिखा रही थी, 
नीचे जाकर फिर देखा " कनखेधार " को , 
वो जैसे मुस्करा रहा था।  

आओ कभी , बैठेंगे फिर " कनखेधार " 
जीवन का कुछ मर्म समझेंगे , 
जीवन की रफ़्तार के बीच , 
कुछ पल हम सिर्फ प्रकृति के साथ रहेंगे।  

( कनखेधार मेरे गाँव - कोटुली , जिला - अल्मोड़ा , उत्तराखंड का एक पहाड़ हैं जिससे हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता हैं , वास्तविक अनुभव को शब्दों में ढालने का प्रयास किया हैं। )  


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