बड़प्पन का लबादा ओढ़े बहुत दिन हो गए ,
चलो थोड़ा बचपना करते है।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से उकता गए हैं ,
थोड़ा आवारागर्दी का लुफ्त उठाते हैं।
सोचने का काम दुसरो को देकर ,
चलो , बिना बात के खिलखिलाते हैं।
मन जरा हल्का करते हैं ,
चलो थोड़ा बच्चा बनते हैं ।
है ज़िन्दगी में कई समस्याएं ,
है होगी कल की फिक्र ,
है जिम्मेदारियों का बोझ बहुत ,
कभी कभी इनको थोड़ा अनदेखा करते है ,
चलो , थोड़ी देर ज़िन्दगी से कुछ पल चुराते हैं ,
आओ की , थोड़ा बचपना फिर जीते है।
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