धीरे धीरे ही सही ,
आगे बढ़ रहा हूँ।
रुक रुक कर ही सही ,
पैरो को अपने साध रहा हूँ। .
आते हैं अवरोध ,
मगर उद्देश्य को हमेशा याद रखता हूँ ।
सुनाने वाले बहुत हैं ,
मगर हर बात को दिल पर नहीं लेता हूँ।
मुझे अपने पर यकीन हैं ,
ईश्वर को हमेशा साथ रखता हूँ।
शुभचिंतको की दुआएँ बहुत हैं ,
इसलिए हर बार गिरकर उठता हूँ।
देर होगी मगर अंधेर नहीं ,
हर निराशा का अंत करता हूँ।
थोड़ा पीछे रह भी गया अभी तो क्या ,
दौड़ के अंत में अपनी विजय देखता हूँ।
No comments:
Post a Comment