बहुत कुछ कहना था उस मुलाकात में ,
जिसे हम अंतिम मुलाकात कह रहे थे ,
अगले दिन से हमने अलग -अलग रास्ते चुन लिए थे ,
मर्ज़ी से , न उसे कोई शिकायत थी , न मुझे कोई गिला ,
हमें पता था यही तक का सफर है हमारा ,
उसे आगे बढ़ जाना था और मेरा सफ़र भी जुदा था ,
दोनों के बीच कोई कड़ुवाहट नहीं थी ,
थे तो वो पुराने बेहतरीन दिन , जो हमने बिताये थे ,
हमारे बीच उस दिन ख़ामोशी ज्यादा थी ,
शायद अल्फाज कम पड़ रहे थे ,
मुस्कराहट के साथ हमने इक दूसरे को अलविदा कहा ,
और अपने -अपने रास्ते चल दिये ,
मुड़ -मुड़कर देखते रहे जब तक ओझल न हो गये
एक ख़ालीपन सा जीकर उस रात ,
हमारे रास्ते अलग -अलग हो गये ,
इस आस फिर भी बनी रही ,
वो हमारी "अंतिम मुलाकात " साबित न हो।