Monday, July 28, 2025

सावन

उमड़ घुमड़ मेघों का आच्छादन, 

नीले अम्बर पर जैसे श्वेतावरण , 

अठखेलियाँ खेलते संग समीरण , 

कोहरे से धुऑं -धुआँ वातावरण।  


कोई श्वेत वर्ण, कोई श्यामवर्ण , 

करते जोर -शोर से गर्जन ,

तरुवर सब निहारे नभ को , 

बूँदो से फिर दृश्य धरा विहँगम।  


रोम - रोम पुलकित धरा का , 

हरा -भरा चहुँओर आवरण , 

पपीहे -मयूरा सब नाचे पँख फैला , 

झूम -झूम बरसे जब सावन।  


पुलकित रज का कण -कण  , 

बूँदो की छुअन अप्रतिम , 

खिले हुए से तन -मन सारे , 

बरसे जब भी पीयूष सावन।  

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