Wednesday, September 10, 2025

उद्देश्य

 न जाने कहाँ से लुढ़कते लुढ़कते ,

किनारे लगा था वो बड़ा सा पत्थर ,

किसी रोज़ जब नदी में बाढ़ आयी थी ,

बहुत कोशिशों से कोई न हटा पाया था ,

उस पत्थर ने एक तरफ नदी की धार रोक दी थी ,

सब की उलाहना सहते सहते वो भी तंग था ,

"मेरी फूटी किस्मत " रोज़ रोता था ,

फिर आदत हो गयी उसे किनारे पर रहते रहते ,

नदी ने जमा कर दी थी गाद चारों ओर उसके ,

बच्चे आते थे , चढ़कर उसपर नदी में छलाँग मारते थे ,

वो रोज़ नदी को बहते देखता और ,

पुराने दिनों की यादों में खो जाता ,

फिर एक चौमास घनघोर बारिश हुई ,

नदी ने विकराल रूप धारण किया ,

जो मिला रास्ते में , सब निगल लिया ,

जब टकरायी उस शिला से,

बहुत वेग लगाया , खूब जोर लगाया ,

एक बार पत्थर का भी जी ललचाया ,

वो तो बहने के इन्तजार में ही पड़ा था,

मगर अचानक से उसे ख्याल आया ,

उसे सहारा मान नदी के उस किनारे ,

लहलहा रही थी फसलें ,

कुछ मकान बन चुके थे ,

सोचकर उसने अपना इरादा बदल लिया ,

नदी जितना वेग लगाती उसे उखाड़ने को ,

वो उतना ही धँसता गढ़ता चला जाता,

नदी ने समझाया , बुझाया उसको ,

साथ बहने की हिदायत दी ,

मगर टस से मस न हुआ वो हठी ,

अड़ा रहा और सारा पानी उतर गया ,

बच्चे -बड़े सब कहने लगे ,

इस "शिला" ने सबको बचा लिया,

शिला को अपना ठहरने का उद्देश्य समझ आ गया ,

दुत्कारें सब दुआओं में बदल गयी ,

शिला की तबसे पूजा होने लगी ,

कुछ भी बिना उद्देश्य के नहीं है जगत में ,

सबका इक प्रारब्ध है ,

वक्त का बस इन्तजार रहता है ,

अकारण  इस जगत में कुछ भी नहीं।     

 

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