वक्त को भी ,
वक्त चाहिए होता है ,
आपके मनमुताबिक होने के लिये ,
उसको भी हिसाब लगाना पड़ता है ,
किसके हिस्से से दे आपको ,
किसके हिस्से से काम करे , '
या किसके हिस्से ज्यादा है ,
तसल्ली हो जाने के बाद ,
वो वापस लौटता है ,
मगर कुदरत का रँग देखो ,
किसी के लिए बहुत देर हो चुकी होती है ,
कोई इन्तजार को तैयार नहीं होता ,
और जो विश्वास के साथ डटा रहता है ,
वक्त फिर उसके साथ हो लेता है,
कर्म कीजिये और
इन्तजार कीजिये,
वक्त आपका भी आयेगा ,
बस वक्त को भी थोड़ा वक्त दीजिये।
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