Thursday, October 9, 2025

जीवन नाव

 

हो जायेंगे मसले हल ,

चिंता से क्या होगा ,

जो करना है वो कर ,

हल कुछ निकल आयेगा। 

 

कमियाँ किसके अंदर नहीं यहाँ ,

कोई भी तो पूर्ण नहीं है ,

जो प्राप्त है , पर्याप्त है ,

प्राप्य के लिये प्रयत्न कर। 

 

आनन्द बाहर नहीं मिलेगा ,

वो तो मन के भीतर है ,

फँसा हुआ मन बाहर ,

बाहर हर जगह कोलाहल है। 

 

कर्म बहुत जरुरी है ,

उसके बिना गति नहीं है ,

कर्मफ़ल में जो मिले ,

स्वीकार कर और आगे बढ़। 

 

जीवन सागर में उतरी नाव है ,

पतवार तेरी ख़ुद के हाथ है ,

कब लगेगी पार " आनन्द "

ये बस ईश्वर के हाथ हैं।  

 

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