पुरुष दंभ भरते है ,
वो रोते नहीं है ,
उनकी आँखों से ,
आँसू टपकते नहीं है ,
सच है -बिल्कुल सच ,
वो अक्सर दिल के ,
अंदर ही अंदर रोते है ,
और शायद ,
इसीलिये पुरुष अक्सर ,
हृदयघात से ज्यादा मरते हैं।
पुरुष रो ले अगर ,
शायद ये दुनिया बहुत बेहतर हो जायेगी ,
आँसुओ से उनके शिलायें पिघल जायेगी ,
मसले बहुत आँसुओ में बह जाते ,
दिल के अवरोध सब निकल जाते ,
मगर बहुत मुश्किल से झरते है ,
आँखों से आँसू पुरुषों के ,
गर होता इतना आसान ये ,
धरती शायद स्वर्ग से कम न होती,
और पुरुष वाकई कोमल हो जाते,
और रोने से पुरुषत्व
और पुरुषार्थ ,
दोनों में कोई कमी नहीं आती।
simply great and true
ReplyDeleteWonderful
ReplyDelete