Friday, December 20, 2024

मेरी कवितायेँ

 

कहीं भावनाओ का आवेश है ,

कुछ शब्दों  में आक्रोश है ,

कुछ पंक्तियाँ मरहम सी लगाती ,

कुछ भावनाओं का आवेग है। 

 

कुछ शब्द जोश बढ़ाते ,

कुछ पंक्तियाँ जीवन दर्शन कहती ,

कही कुंठाओं का शोर गूँजता ,

किन्ही पंक्तियों से  मुस्कान तैरती।  

 

न रेल जैसा थरथराता हूँ ,

न ट्रक जैसा शोर करता हूँ ,

न कार जैसा आरामदायक ,

न प्लेन जैसा आसमां चीरता हूँ ।

 

कही उम्मीद की लौ ,

कही अवसाद चीरता हूँ ,

जीवन मर्मों को समझने के क्रम में ,

रोज़ कुछ लिखता और मिटाता हूँ। 

 

"शब्द " तीर है और "कलम " धनुष ,

भावनाओं का तूणीर संग रखता हूँ ,

"जीवन " का समर क्षेत्र है ,

अपने "कारवाँ " को रोज़ ज़िंदा रखता हूँ। 

Sunday, November 17, 2024

सारांश

 

सारांश


क्या सफलता,क्या असफलता ,

जीवन रोज़ इक नई समर कथा,

नायक भी हम , खलनायक भी ,

बस इतनी सी है जीवन व्यथा।

 

अ-अबोधता से शुरू ,

ज्ञ -ज्ञानी पर ख़त्म ,

ज्ञान कौन सा ?

सबका जुदा-जुदा।

 

दौड़ मंजिल की तरफ ,

कोई पहुँचा , कोई भटका ,

अंत में सब "सिफ़र " ,

बस "सफ़र" नाम रहा।

 

कभी जीत , कभी हार ,

सुःख दुःख का क्रम चलता रहा ,

जीने का "अनुभव " ,

न खरीदा गया , न बेचा गया।

 

क्या सफलता,क्या असफलता ,

जीवन रोज़ इक नई समर कथा,

नायक भी हम , खलनायक भी ,

बस इतनी सी है जीवन व्यथा।

Tuesday, November 12, 2024

तूणीर के तीर

 

विकल्प तलाशते रहिये , 

तूणीर के तीर आजमाते रहिये , 

बड़ी तेजी से बदल रही दुनिया , 

जूतों के फीते कसे रखिये। १। 


उसूल ,वसूली न बन जाये , 

वक्त के साथ चलिये , 

फ़ायदे का धंधा है हुजूर , 

भरोसा सिर्फ खुद पर रखिये।२।   


चकाचौध बहुत बड़ा छलावा है, 

हकीकत पर नजर रखिये , 

क्षमतायें भी एक चीज होती है "आनन्द ", 

चढ़ाने से किसी के झाड़ पर मत चढ़िये।३।


ज़िन्दगी इक बार मिली है गुरु , 

न कोई पिछला जन्म था , न कोई अगला है , 

कहने दीजिये -कहने वालों को ,

जब भी मौका मिले , भरपूर जी लीजिये।४।


न किसी से गिला रखिये , न शिकवा कीजिये , 

जलने वालों को बत्तीसी से चमकाते रहिये , 

सबकी ज़िन्दगी में स्यापे भरे पड़े है , 

अपना बी पी नियंत्रण में रखिये ।५।    

Friday, November 8, 2024

उद्देख


 


घर के आँगन में बैठी वो बूढ़ी अम्मा ,

एक नजर घर पर , एक आँगन पर ,

धुँधली आँखों से निहार रही ,

दो बूँदे आँखों की झुर्रियों से रिसाती हुई ,

अतीत और वर्तमान के बीच में झूलती सी ,

अचानक से ठिठक सी गयी ,

जब उसने दिखा ,

एक टूटा हुआ आँगन में बिछा पत्थर ,

बुढ़ाते गले से रुँधाती सी आवाज में ,

अपने पोते को पुकारा ,

पोता आवाज सुनकर दौड़ा ,

अम्मा के पास पहुँचा ,

अम्मा ने उससे जरा लाल मिटटी और गोबर मँगवाया ,

करीने से लीप दिया वो टूटा पत्थर ,

जैसे उसने भर दिया ,

अपनी उदासी और उद्देख के सब  कारण।

 

कुमाउनी शब्द

उद्देख - निराशा और हताशा

 




Saturday, October 5, 2024

असमंजस्य

 

असमंजस्य चहुँओर है ,

क्या गलत ,क्या सही - सब झोल है ,

उसकी सुनु ,  किसकी सुनु ,

श्रोता बेचारा बेहोश है ,

प्रलापों का शोर भयंकर ,

मति पर बहुत जोर है ,

अहम पर वहम भारी ,

मन व्यग्र और बैचैन है ,

देख कर दुनिया की हालत ,

मन कहता है - मौन ठीक है ,

दिमाग हर बार फिरकी लेता है ,

झमेले में फँसने की पुरानी आदत है ,

उठापटक के इस दौर में ,

पता नहीं - कौन दारा , कौन किंगकॉन्ग है ,

मध्यम मार्ग में खतरा बहुत है ,

अकेले रह जाने का डर है ,

मत उलझा करो सड़क पर ,

न जाने कौन क्या तुर्रम खान है ,

चलानी है तो खुद पर चलाओ ,

अब सुनने को कौन तैयार है ,

नया जमाना है ,नए मर्ज़ है,

सोशल मीडिया -नया मंच तैयार है ,

ज्ञान खोजने की जरुरत क्या है ,

गूगल बाबा तैयार है,

मत पेला करो जबरदस्ती का ज्ञान ,

यहाँ सब अब होशियार है। 

 

Saturday, September 21, 2024

तकनीक

 

जकड़ रही तकनीक हमें ,

दिमाग कुंद कर रही ,

मकड़जाल फ़ैल रहा ऐसा ,

हर इंसान अदृश्य कैद में जी रहा। 

 

बेशक तकनीक जीवन आसान कर रही ,

स्थापित मानव मूल्यों से समझौता कर रही ,

संवेदनायें धीरे धीरे ख़त्म कर रही ,

आभासी दुनिया,असल दुनिया को कुतर रही। 

 

शिकायत तकनीक से नहीं है ,

तकनीक पर निर्भरता से है ,

आदी बना रही शनैः -शनैः ,

वरदान से अभिशाप न बने शनैः -शनैः। 

 

इंटरनेट ने जोड़ दिया सब ,

इंटरनेट ही तोड़ रहा सब ,

नीयत का सब खेल तकनीक ,

इस युग में देव- दानव बनायेगी तकनीक। 

 

Saturday, August 31, 2024

क्या लिखूँ ?

 

 

शब्दों में "बेचैनी" है ,

भावनाओं में "उबाल",

कागज़ "मलिन " हो गया ,

कलम कहाँ करे "गुहार " ।

 

अनर्गल "प्रलाप " चहुँओर है ,

वर्चुअल दुनियाँ में भयंकर "शोर" है ,

सब्र , संयम अब "बीती" बात है ,

"विरोध" का ही जोर है। 

 

अहं का "वहम " जारी है ,

"गुरु " पर गूगल भारी है ,

"भूख" रोटी तक सीमित नहीं अब ,

इतनी "भागदौड़" -जेब खाली है। 

 

"शॉर्टकट" सब ढूँढ रहे ,

मेहनत में "मगज़मारी" है ,

"दिखावटी" बाज़ार अटा पड़ा है ,

"शोशेबाज़ी"- हर जगह जारी है। 

 

हुक्मरान "स्वार्थी" हो चुके ,

जनता -जनार्दन के हाल "बेहाल",

"विश्वास" तीतर हो चुका है ,

लिखे कलम क्या - "ए आई" नया बवाल। 

 


Tuesday, August 27, 2024

समय के बीज

 


 

समय के धरातल पर ,

जो बीज बोये जाते है ,

भविष्य में फिर वही ,

पेड़ बनकर समय की ,

छाती में उग आते है ,

बीज क्या बोया गया था ,

इसी बात पर पेड़ निर्भर है ,

फलदार होगा या कँटीला ,

ये बीज पर निर्भर है ,

समय अपने पास किसी का ,

कुछ बकाया नहीं रखता ,

वो देर -सवेर सब वापस कर देता है ,

वापस किसको ,कब करना है ,

ये समय का अपना निर्णय होता है ,

बीज को पनपने और पेड़ बनने में ,

समय भी तो अपना समय देता है,

और इस नाते इतना हक़ तो ,

समय का भी बनता है।

Monday, August 5, 2024

शांति

 


 इंसान बमुश्किल शांति से रह सकता है ,

उसे शांति हजम नहीं होती ,

वो खुद को उलझा के रखना चाहता है ,

कभी युद्ध में , कभी विवादों में ,

कभी बेफिजूल बातों में ,

फिर भी वह शांति से जीना चाहता है ,

अपने स्वभाव के विपरीत ,

मगर जानते है कुछ लोग ,

उसके अंदर का यह सच ,

वो उठाते है इसका फायदा ,

अपने स्वार्थो के लिए ,

उलझाकर रखना चाहते है सबको ,

ताकि वो साबित कर सके खुद को ,

सबसे बड़ा हितैषी इंसानो का ,

और भोग सके वो तमाम सुख ,

जो पैदा हुए है शांति की राख पर। 

Thursday, July 18, 2024

तृष्णा

 

किसी ने पूछा ," क्या उपलब्धियाँ पायी ?"

मैंने भी जम कर सुना दी उपलब्धियाँ ,

यहाँ तीर मारा , वो सफलता पायी ,

घर जोड़ लिया और जोड़ लिया चार पहिया सवारी ,

थोड़ा बहुत बैंक बैलेंस भी बना लिया ,

और क्या चाहिये भाई ?

 

मुस्कराते हुए उसने कहा ,

" ये सब तो बढ़िया है दोस्त ,

ये तो सब करते है ,

तूने अतिरिक्त क्या किया ?

उसका बखान कर भाई ,

सच -सच बता , क्या तू ज़िन्दगी से खुश है भाई ?"

 

अचानक से दिमाग सुन्न ,

दिल परेशान हो गया ,

ये तो मैं भूल ही गया था ,

इस चक्कर में आधी उम्र खप गयी भाई ,

यकीनन ये सब निहायत जरुरी है ,

मगर इस सबका मजा लेने के लिये ,

वक्त कहाँ है तेरे पास भाई ,

 

जो हासिल किया , उसका लुफ्त लिया कहाँ ,

रोज़ फिर नई ख्वाईश के लिये दौड़ रहा ,

इकठ्ठा कर लेगा तू इक दिन बहुत कुछ ,

दौड़ता रहा यूँ ही तू हरदम ,

तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी,

धरा रहेगा सब कुछ ,

दौड़ कभी पूर्ण न होगी।

Wednesday, June 26, 2024

पड़ाव

 


 अक्सर एक उम्र के पड़ाव पर ,

बच्चों को लगने लगता है ,

उनके माता -पिता ने ,

उनके लिये किया ही क्या है ?

फिर एक पड़ाव उन्हें ,

बार -बार  याद दिलाता है ,

जब उनके बच्चे हो जाते है ,

याद आता है अक्सर फिर ,

उनके माता -पिता ने बहुत त्याग किया है।

 

मगर इन दो पड़ावों के,

बीच का फ़ासला ,

कई बार बहुत लंबा हो जाता है ,

जीवन की आपाधापी में ,

वक्त निकलता जाता है ,

एक टीस सी फिर दिल को कचोटती है ,

अक्सर "धन्यवाद " कहने से पहले ,

माता -पिता का समय गुजर जाता है।