Tuesday, January 28, 2025

महाकुंभ

 



आस्था और विश्वास का इक ज्वार है ,

कुंभ परम्पराओं  का स्वर्ग द्वार है ,

डुबकी सिर्फ मोक्ष के लिए नहीं है ,

वैतरणी पहुँचने का इक मार्ग है।

 

सकल सनातन का मूल है ,

कुंभ समागम सम्पूर्ण है ,

स्वंय के लिये इक पुण्य है ,

जगत कल्याण ही मूल्य है।

 

कुंभ आस्था का सैलाब है ,

कुंभ सनातन का सार है ,

कुंभ परम्पराओं का नाद है ,

कुंभ ही विश्वास का नाम हैं।

 

नक्षत्रों का अद्धभुत खेल है ,

संगम पर अध्यात्म का मेल है ,

दिव्य,आलौकिक त्रिवेणी संगम तट,

रज -रज पुण्य धाम है।

 



Sunday, January 19, 2025

घर और माँ


 जब तक माँ थी , 

मेरा भी एक घर था , 

जब तक माँ थी , 

मेरे ऊपर आसमां था ,

जब तक माँ थी , 

पैरों तले मेरी भी जमीं थी , 

जब तक माँ थी , 

मैं बहुत लायक था , 

अब माँ नहीं है , 

मैं एक मकान में रहता हूँ ,

आसमां में कई सुराख़ है ,

गिरता पड़ता रहता हूँ , 

बहुत उबड़ खाबड़ जमीं पर,

और दुनिया ने मुझपर , 

नालायक का ठप्पा लगा दिया,

मेरा आधा शायद , 

माँ के साथ ही चला गया। 

Saturday, January 18, 2025

शिरा

मैं भी वो शिरा ढूंढ रहा है , 

जिससे पकड़कर , 

मैं भी चढ़ सकूँ , 

सफलता की ऊँचाइयाँ , 

मैं भी चख सकूँ ,

कामयाबी का स्वाद , 

न जाने क्यों , 

नहीं मिल रहा मुझे वो शिरा , 

कोशिश तो मैं भी कर रहा , 

रात -दिन , हर पल , 

जोश भी नित भर रहा , 

मेहनत से भी नहीं डर रहा , 

फिर क्या कारण हो सकता है , 

जो मुझे नहीं मिल रहा वो उपाय , 

जिससे मैं भी चढ़ सकूँ , 

वो सीढ़ियाँ , जिसे देख , 

दुनिया कहती है , 

हाँ , देखो , वह सफल हुआ।   

Wednesday, January 15, 2025

मध्यम वर्ग

 

ई एम आई की चिंता ,

बच्चों की पढ़ाई ,

सिर के ऊपर एक छत ,

एक चार पहिया गाड़ी ,

पूरी ज़िन्दगी गुजर जाती है ,

कुछ की पूरी हो पाती है ,

कुछ की ताउम्र अधूरी। 

Saturday, January 11, 2025

विजेता

जो प्रत्यक्ष है , वही यथार्थ है , 

बीता इतिहास , आगे कल्पना है , 

कर्मों का एक स्पष्ट विधान है , 

जो है , कर्मों का ही परिणाम हैं।  


आशा और निराशा के बीच , 

हालातों का इक वर्तमान है , 

दशा और दिशा जीवन की , 

हमारी सोच का अल्प विराम हैं।  


ज़िन्दगी बहीखाता नहीं है , 

खोना -पाना तो हिस्सा है , 

कोशिशों का इक सफर है , 

हौंसलो से तय करना हैं।  


समय ही सबसे कीमती है , 

बढ़ता नहीं , बस घटता ही है , 

जो जीना सीख गया हर पल , 

वही जीवन का असली विजेता है।  

Monday, January 6, 2025

जकड़न

 जकड़न सिर्फ दिमाग में होती है ,

वर्ना इंसान के वश की क्या चीज नहीं  ,

जो भी हुआ है अभी तक संसार में ,

किया तो है किसी इंसान ने ही। 

 

हमने खुद जकड़ा है सीमाओं में  ,

कुव्वत की कोई थाह नहीं ,

धैर्य तो रखना ही होता है ,

"उस पर " भरोसे से बड़ा कोई भरोसा नहीं। 

 

सीमाओं से परे जिसने भी सोचा ,

वह शिलालेखों में अमिट हो गया ,

जो फैला न सका पँख अपने ,

वो न जाने कहाँ ग़ुम  हो गया। 

 

परिस्थितियों का तो सिर्फ बहाना है ,

बस जागने की ही तो बात है ,

लपक लिये जिसने अवसर समय पर ,

शिखर उसके लिए कोई मुश्किल नहीं। 

 

बाधाएँ सिर्फ दिमाग में है ,

वक्त कभी भी किसी के लिये गुजरा नहीं ,

चलना चाहे अगर कोई ,कभी भी ,

वक्त कहता है तू चल , देर कभी नहीं।

 

इक "ज़िन्दगी " मिली है आनन्द ,

इससे बढ़कर शायद कोई सौगात नहीं ,

यूँ ही काट दी गर तो ,

इससे बड़ा अन्याय कोई नहीं। 

Friday, December 20, 2024

मेरी कवितायेँ

 

कहीं भावनाओ का आवेश है ,

कुछ शब्दों  में आक्रोश है ,

कुछ पंक्तियाँ मरहम सी लगाती ,

कुछ भावनाओं का आवेग है। 

 

कुछ शब्द जोश बढ़ाते ,

कुछ पंक्तियाँ जीवन दर्शन कहती ,

कही कुंठाओं का शोर गूँजता ,

किन्ही पंक्तियों से  मुस्कान तैरती।  

 

न रेल जैसा थरथराता हूँ ,

न ट्रक जैसा शोर करता हूँ ,

न कार जैसा आरामदायक ,

न प्लेन जैसा आसमां चीरता हूँ ।

 

कही उम्मीद की लौ ,

कही अवसाद चीरता हूँ ,

जीवन मर्मों को समझने के क्रम में ,

रोज़ कुछ लिखता और मिटाता हूँ। 

 

"शब्द " तीर है और "कलम " धनुष ,

भावनाओं का तूणीर संग रखता हूँ ,

"जीवन " का समर क्षेत्र है ,

अपने "कारवाँ " को रोज़ ज़िंदा रखता हूँ। 

Sunday, November 17, 2024

सारांश

 

सारांश


क्या सफलता,क्या असफलता ,

जीवन रोज़ इक नई समर कथा,

नायक भी हम , खलनायक भी ,

बस इतनी सी है जीवन व्यथा।

 

अ-अबोधता से शुरू ,

ज्ञ -ज्ञानी पर ख़त्म ,

ज्ञान कौन सा ?

सबका जुदा-जुदा।

 

दौड़ मंजिल की तरफ ,

कोई पहुँचा , कोई भटका ,

अंत में सब "सिफ़र " ,

बस "सफ़र" नाम रहा।

 

कभी जीत , कभी हार ,

सुःख दुःख का क्रम चलता रहा ,

जीने का "अनुभव " ,

न खरीदा गया , न बेचा गया।

 

क्या सफलता,क्या असफलता ,

जीवन रोज़ इक नई समर कथा,

नायक भी हम , खलनायक भी ,

बस इतनी सी है जीवन व्यथा।

Tuesday, November 12, 2024

तूणीर के तीर

 

विकल्प तलाशते रहिये , 

तूणीर के तीर आजमाते रहिये , 

बड़ी तेजी से बदल रही दुनिया , 

जूतों के फीते कसे रखिये। १। 


उसूल ,वसूली न बन जाये , 

वक्त के साथ चलिये , 

फ़ायदे का धंधा है हुजूर , 

भरोसा सिर्फ खुद पर रखिये।२।   


चकाचौध बहुत बड़ा छलावा है, 

हकीकत पर नजर रखिये , 

क्षमतायें भी एक चीज होती है "आनन्द ", 

चढ़ाने से किसी के झाड़ पर मत चढ़िये।३।


ज़िन्दगी इक बार मिली है गुरु , 

न कोई पिछला जन्म था , न कोई अगला है , 

कहने दीजिये -कहने वालों को ,

जब भी मौका मिले , भरपूर जी लीजिये।४।


न किसी से गिला रखिये , न शिकवा कीजिये , 

जलने वालों को बत्तीसी से चमकाते रहिये , 

सबकी ज़िन्दगी में स्यापे भरे पड़े है , 

अपना बी पी नियंत्रण में रखिये ।५।    

Friday, November 8, 2024

उद्देख


 


घर के आँगन में बैठी वो बूढ़ी अम्मा ,

एक नजर घर पर , एक आँगन पर ,

धुँधली आँखों से निहार रही ,

दो बूँदे आँखों की झुर्रियों से रिसाती हुई ,

अतीत और वर्तमान के बीच में झूलती सी ,

अचानक से ठिठक सी गयी ,

जब उसने दिखा ,

एक टूटा हुआ आँगन में बिछा पत्थर ,

बुढ़ाते गले से रुँधाती सी आवाज में ,

अपने पोते को पुकारा ,

पोता आवाज सुनकर दौड़ा ,

अम्मा के पास पहुँचा ,

अम्मा ने उससे जरा लाल मिटटी और गोबर मँगवाया ,

करीने से लीप दिया वो टूटा पत्थर ,

जैसे उसने भर दिया ,

अपनी उदासी और उद्देख के सब  कारण।

 

कुमाउनी शब्द

उद्देख - निराशा और हताशा

 




Saturday, October 5, 2024

असमंजस्य

 

असमंजस्य चहुँओर है ,

क्या गलत ,क्या सही - सब झोल है ,

उसकी सुनु ,  किसकी सुनु ,

श्रोता बेचारा बेहोश है ,

प्रलापों का शोर भयंकर ,

मति पर बहुत जोर है ,

अहम पर वहम भारी ,

मन व्यग्र और बैचैन है ,

देख कर दुनिया की हालत ,

मन कहता है - मौन ठीक है ,

दिमाग हर बार फिरकी लेता है ,

झमेले में फँसने की पुरानी आदत है ,

उठापटक के इस दौर में ,

पता नहीं - कौन दारा , कौन किंगकॉन्ग है ,

मध्यम मार्ग में खतरा बहुत है ,

अकेले रह जाने का डर है ,

मत उलझा करो सड़क पर ,

न जाने कौन क्या तुर्रम खान है ,

चलानी है तो खुद पर चलाओ ,

अब सुनने को कौन तैयार है ,

नया जमाना है ,नए मर्ज़ है,

सोशल मीडिया -नया मंच तैयार है ,

ज्ञान खोजने की जरुरत क्या है ,

गूगल बाबा तैयार है,

मत पेला करो जबरदस्ती का ज्ञान ,

यहाँ सब अब होशियार है। 

 

Saturday, September 21, 2024

तकनीक

 

जकड़ रही तकनीक हमें ,

दिमाग कुंद कर रही ,

मकड़जाल फ़ैल रहा ऐसा ,

हर इंसान अदृश्य कैद में जी रहा। 

 

बेशक तकनीक जीवन आसान कर रही ,

स्थापित मानव मूल्यों से समझौता कर रही ,

संवेदनायें धीरे धीरे ख़त्म कर रही ,

आभासी दुनिया,असल दुनिया को कुतर रही। 

 

शिकायत तकनीक से नहीं है ,

तकनीक पर निर्भरता से है ,

आदी बना रही शनैः -शनैः ,

वरदान से अभिशाप न बने शनैः -शनैः। 

 

इंटरनेट ने जोड़ दिया सब ,

इंटरनेट ही तोड़ रहा सब ,

नीयत का सब खेल तकनीक ,

इस युग में देव- दानव बनायेगी तकनीक। 

 

Saturday, August 31, 2024

क्या लिखूँ ?

 

 

शब्दों में "बेचैनी" है ,

भावनाओं में "उबाल",

कागज़ "मलिन " हो गया ,

कलम कहाँ करे "गुहार " ।

 

अनर्गल "प्रलाप " चहुँओर है ,

वर्चुअल दुनियाँ में भयंकर "शोर" है ,

सब्र , संयम अब "बीती" बात है ,

"विरोध" का ही जोर है। 

 

अहं का "वहम " जारी है ,

"गुरु " पर गूगल भारी है ,

"भूख" रोटी तक सीमित नहीं अब ,

इतनी "भागदौड़" -जेब खाली है। 

 

"शॉर्टकट" सब ढूँढ रहे ,

मेहनत में "मगज़मारी" है ,

"दिखावटी" बाज़ार अटा पड़ा है ,

"शोशेबाज़ी"- हर जगह जारी है। 

 

हुक्मरान "स्वार्थी" हो चुके ,

जनता -जनार्दन के हाल "बेहाल",

"विश्वास" तीतर हो चुका है ,

लिखे कलम क्या - "ए आई" नया बवाल। 

 


Tuesday, August 27, 2024

समय के बीज

 


 

समय के धरातल पर ,

जो बीज बोये जाते है ,

भविष्य में फिर वही ,

पेड़ बनकर समय की ,

छाती में उग आते है ,

बीज क्या बोया गया था ,

इसी बात पर पेड़ निर्भर है ,

फलदार होगा या कँटीला ,

ये बीज पर निर्भर है ,

समय अपने पास किसी का ,

कुछ बकाया नहीं रखता ,

वो देर -सवेर सब वापस कर देता है ,

वापस किसको ,कब करना है ,

ये समय का अपना निर्णय होता है ,

बीज को पनपने और पेड़ बनने में ,

समय भी तो अपना समय देता है,

और इस नाते इतना हक़ तो ,

समय का भी बनता है।