Saturday, March 1, 2025

प्रवाही जीवन

 

सरल , सहज और प्रवाही जीवन ,

कठिन ,उलझा और रुका हुआ मन ,

इच्छाएँ अनेक  , साधन सीमित ,

जग बौराया ,  चिंताएँ अनंत।

 

ऊबड़खाबड़ रास्ते , दौड़ अंधाधुंध ,

साँसो की नाजुक डोर पर टिका नन्हा तन ,

किस्मत और कर्मों की जोर आजमाइश ,

कुछ पल सुकून को तरसता जीवन।

 

उपाय क्या है जिससे आसान बने जीवन ,

कर्म किये जा , न कर फल की चिंता ,

भरोसा रख , उम्मीद जगा , कम कर ईच्छा ,

वक्त को इज्ज़त बख्श , हर हाल मुस्करा।

 

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है , नसीब जगा ,

धीरे -धीरे ही सही , मंजिल की तरफ कदम बढ़ा ,

बहुत उलझनों में खुद को न उलझा ,

एक राह पकड़ बस , उसी पर चलते जा।

Thursday, February 27, 2025

गंगा जी

 



 

गंगा तट पर बैठ समझ रहा जीवन सार ,

नन्ही धार बन नदिया , पहुंचे सागर द्वार ,

बहने के सफ़र में करती सबका कल्याण ,

"गंगा " से "गंगा जी " बनने का यही विस्तार। 

 

निकली छल-छल, कल-कल हिमालय से ,

करती पुनीत पावन पहुँचती हरिद्वार ,

गति मंद स्थिर बहकर कानपूर से ,

मिलती यमुना से प्रयागराज त्रिवेणी घाट। 

 

2525 किलोमीटर का सफर ,

न जाने कितने गाँव , कितने शहर ,

सदियों से बह रही है "गंगा" ,

इतिहास की इक अमूल्य धरोहर। 

 

सबको मिलाती , अपने में घुलाती ,

बह रहा अविरल प्रवाह निरंतर,

जल ही जीवन , जल ही अमृत  ,

"माँ गंगे " बहती रहो युग पर्यन्त।

Thursday, February 20, 2025

आपाधापी

 

जीवन की आपाधापी में ,

सब कुछ जैसे छूट रहा है ,

ज्यूँ - ज्यूँ आगे बढ़ना है ,

त्यूँ - त्यूँ कुछ छूट जाना है।

 

रोज़ नई मशक्कत जीवन की ,

कुछ पाना कुछ खोना है ,

अधरों में मुस्कान लिये मुसाफिर ,

रोज थोड़ा हँसना , थोड़ा रोना हैं।

 

वक्त कहाँ थोड़ा सुकून के लिये ,

ये भी करना है , वो भी भरना है ,

कस्तूरी मृग सा , मृगतृष्णा सी  ,

कभी यहाँ , कभी वहाँ भटकना है।

 

दौड़ लगी हैं बड़ी भयंकर,

सब कुछ समेट लेना है ,

भोग्य को भोग सके तक,

खुद भोग हो जाना है।

Monday, February 3, 2025

जीवन मूल्य

 

गुजर रहे है हम उस दौर से ,

सब कुछ धीरे -धीरे बदल रहा ,

नए मानक स्थापित हो रहे है,

पीछे बहुत कुछ छूट रहा।

 

पीछे जो छूट रहा है ,

उसमे कुछ सँभालने लायक भी है ,

मगर दौड़ इतनी भयंकर ,

सँभालने का वक्त किसको मिल रहा।

 

परिवार दरक रहा ,विश्वास हिल रहा ,

धैर्य हिचकोलों में फँसा हुआ ,

आस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह है,

ये कौन दिशा और दशा तय कर रहा।

 

प्रेम -स्वार्थ की बलि चढ़ रहा ,

अहं सिर चढ़ बोल रहा ,

बेवजह चिंताएं शरीर नाश कर रही ,

जो है हाथ में , वो भी खो रहा।

 

बेशक नए मूल्य गढ़ने चाहिये ,

परिवर्तन समय की दरकार भी है ,

मगर जिन मूल्यों पर खड़ा है जीवन , 

उनको सहेजना भी जरुरी है।

Tuesday, January 28, 2025

महाकुंभ

 



आस्था और विश्वास का इक ज्वार है ,

कुंभ परम्पराओं  का स्वर्ग द्वार है ,

डुबकी सिर्फ मोक्ष के लिए नहीं है ,

वैतरणी पहुँचने का इक मार्ग है।

 

सकल सनातन का मूल है ,

कुंभ समागम सम्पूर्ण है ,

स्वंय के लिये इक पुण्य है ,

जगत कल्याण ही मूल्य है।

 

कुंभ आस्था का सैलाब है ,

कुंभ सनातन का सार है ,

कुंभ परम्पराओं का नाद है ,

कुंभ ही विश्वास का नाम हैं।

 

नक्षत्रों का अद्धभुत खेल है ,

संगम पर अध्यात्म का मेल है ,

दिव्य,आलौकिक त्रिवेणी संगम तट,

रज -रज पुण्य धाम है।

 



Sunday, January 19, 2025

घर और माँ


 जब तक माँ थी , 

मेरा भी एक घर था , 

जब तक माँ थी , 

मेरे ऊपर आसमां था ,

जब तक माँ थी , 

पैरों तले मेरी भी जमीं थी , 

जब तक माँ थी , 

मैं बहुत लायक था , 

अब माँ नहीं है , 

मैं एक मकान में रहता हूँ ,

आसमां में कई सुराख़ है ,

गिरता पड़ता रहता हूँ , 

बहुत उबड़ खाबड़ जमीं पर,

और दुनिया ने मुझपर , 

नालायक का ठप्पा लगा दिया,

मेरा आधा शायद , 

माँ के साथ ही चला गया। 

Saturday, January 18, 2025

शिरा

मैं भी वो शिरा ढूंढ रहा है , 

जिससे पकड़कर , 

मैं भी चढ़ सकूँ , 

सफलता की ऊँचाइयाँ , 

मैं भी चख सकूँ ,

कामयाबी का स्वाद , 

न जाने क्यों , 

नहीं मिल रहा मुझे वो शिरा , 

कोशिश तो मैं भी कर रहा , 

रात -दिन , हर पल , 

जोश भी नित भर रहा , 

मेहनत से भी नहीं डर रहा , 

फिर क्या कारण हो सकता है , 

जो मुझे नहीं मिल रहा वो उपाय , 

जिससे मैं भी चढ़ सकूँ , 

वो सीढ़ियाँ , जिसे देख , 

दुनिया कहती है , 

हाँ , देखो , वह सफल हुआ।   

Wednesday, January 15, 2025

मध्यम वर्ग

 

ई एम आई की चिंता ,

बच्चों की पढ़ाई ,

सिर के ऊपर एक छत ,

एक चार पहिया गाड़ी ,

पूरी ज़िन्दगी गुजर जाती है ,

कुछ की पूरी हो पाती है ,

कुछ की ताउम्र अधूरी। 

Saturday, January 11, 2025

विजेता

जो प्रत्यक्ष है , वही यथार्थ है , 

बीता इतिहास , आगे कल्पना है , 

कर्मों का एक स्पष्ट विधान है , 

जो है , कर्मों का ही परिणाम हैं।  


आशा और निराशा के बीच , 

हालातों का इक वर्तमान है , 

दशा और दिशा जीवन की , 

हमारी सोच का अल्प विराम हैं।  


ज़िन्दगी बहीखाता नहीं है , 

खोना -पाना तो हिस्सा है , 

कोशिशों का इक सफर है , 

हौंसलो से तय करना हैं।  


समय ही सबसे कीमती है , 

बढ़ता नहीं , बस घटता ही है , 

जो जीना सीख गया हर पल , 

वही जीवन का असली विजेता है।  

Monday, January 6, 2025

जकड़न

 जकड़न सिर्फ दिमाग में होती है ,

वर्ना इंसान के वश की क्या चीज नहीं  ,

जो भी हुआ है अभी तक संसार में ,

किया तो है किसी इंसान ने ही। 

 

हमने खुद जकड़ा है सीमाओं में  ,

कुव्वत की कोई थाह नहीं ,

धैर्य तो रखना ही होता है ,

"उस पर " भरोसे से बड़ा कोई भरोसा नहीं। 

 

सीमाओं से परे जिसने भी सोचा ,

वह शिलालेखों में अमिट हो गया ,

जो फैला न सका पँख अपने ,

वो न जाने कहाँ ग़ुम  हो गया। 

 

परिस्थितियों का तो सिर्फ बहाना है ,

बस जागने की ही तो बात है ,

लपक लिये जिसने अवसर समय पर ,

शिखर उसके लिए कोई मुश्किल नहीं। 

 

बाधाएँ सिर्फ दिमाग में है ,

वक्त कभी भी किसी के लिये गुजरा नहीं ,

चलना चाहे अगर कोई ,कभी भी ,

वक्त कहता है तू चल , देर कभी नहीं।

 

इक "ज़िन्दगी " मिली है आनन्द ,

इससे बढ़कर शायद कोई सौगात नहीं ,

यूँ ही काट दी गर तो ,

इससे बड़ा अन्याय कोई नहीं। 

Friday, December 20, 2024

मेरी कवितायेँ

 

कहीं भावनाओ का आवेश है ,

कुछ शब्दों  में आक्रोश है ,

कुछ पंक्तियाँ मरहम सी लगाती ,

कुछ भावनाओं का आवेग है। 

 

कुछ शब्द जोश बढ़ाते ,

कुछ पंक्तियाँ जीवन दर्शन कहती ,

कही कुंठाओं का शोर गूँजता ,

किन्ही पंक्तियों से  मुस्कान तैरती।  

 

न रेल जैसा थरथराता हूँ ,

न ट्रक जैसा शोर करता हूँ ,

न कार जैसा आरामदायक ,

न प्लेन जैसा आसमां चीरता हूँ ।

 

कही उम्मीद की लौ ,

कही अवसाद चीरता हूँ ,

जीवन मर्मों को समझने के क्रम में ,

रोज़ कुछ लिखता और मिटाता हूँ। 

 

"शब्द " तीर है और "कलम " धनुष ,

भावनाओं का तूणीर संग रखता हूँ ,

"जीवन " का समर क्षेत्र है ,

अपने "कारवाँ " को रोज़ ज़िंदा रखता हूँ।