Thursday, December 4, 2025

दिसंबर

 

सर्द शुरुआत हुई थी ,

सर्द ही अब समाप्त होगा ,

आलम - - दिसंबर ये है ,

जनवरी का लिया हुआ इक ,

अधूरा प्रण बरबस दिल पर ,

नोक की तरह चुभ रहा है। 

 

समझा रहा हूँ बार -बार ,

नये साल पर फिर दोहराऊँगा ,

यह साल तो बीत गया अब ,

कोशिश करूँगा अगले साल ,

प्रण को हरगिज निभाऊँगा ,

दिमाग हँस रहा है , कह रहा ,

मत करना कोई प्रण नये साल। 

Wednesday, November 26, 2025

पैसा

 

पैसा बहुत जरुरी है ,

नितांत जरुरी है ,

जो कहते है - मोहमाया है ,

ये कहने के लिये भी ,

पल्ले में पैसा जरुरी है। 

 

जो कहते है ,

पैसा सब कुछ नहीं है ,

कपट झूठ बोलते है ,

ऐसा कहने के लिये ,

वो भी पैसा लेते है।

 

अर्थ के बिना ,

जीवन जीना अनर्थ है ,

हाँ , इक बार पैसा आ जाये ,

फिर ज्ञान देने का ,

अलग अर्थ है।  

 

पैसा भले ही शांति ,

सुकून की गारंटी न दे ,

मगर वो सब कुछ दे सकता है ,

जो आज के लिए जरुरी है,

जरुरत पूरी करने के लिये ,

पैसा कमाना मजबूरी हैं। 

Sunday, November 23, 2025

जेन ज़ी कविता

 

बातों ही बातों में कल मेरी बेटी बोली ,

पापा अब नई कवितायें लिखनी होगी ,

वैसे भी हमारी जेनेरशन कवितायें पढ़नी भूल रही ,

उनके हिसाब से अब लिखनी होंगी।

 

मन विचलित, मस्तिष्क परेशान ,

कहाँ से लाऊँ अब ये ज्ञान ,

मगर अब जुड़ना होगा तो ,

इस दौर की कवितायें लिखनी ही होंगी।

 

लगे हाथ उसने दे दिया एक सुझाव ,

आई का इस्तेमाल करो ,

प्रोम्प्ट देकर उससे अब ,

अपनी कवितायें रचने को कहो।

 

अब कवितायें भी आई लिख देगा ,

कवियों अब तुम्हारा क्या होगा ,

मानवीय संवेदनाओ को अब ,

आई अपने कृत्रिम भावों से सीचेंगा।

 

एक ही प्रोम्प्ट पर अलग -अलग रस की ,

वो झटपट नौ कवितायें रच  देगा ,

" आनन्द " तुम खेती करना सीखो अब ,

कवितायें तो तुमसे बेहतर आई लिख देगा।

Saturday, November 15, 2025

बूढ़ी अम्मा

 

पहाड़ सी ज़िन्दगी हो गयी ,

सब कुछ होते हुए भी कुछ न था ,

सब छोड़कर अकेले उसे ,

पहाड़ ही कर गए थे। 

 

जिद्दी अम्मा भी थी ,

कितना समझाया था उसे ,

चली जा तू भी वही ,

न जाने क्यों पहाड़ों से इतना लगाव था। 

 

हिस्से उसके संघर्ष के क्या आया था ,

रोज़ पहाड़ जैसी मुसीबतें ,

उकाव -हुलार चढ़ते -उतरते ,

हाथों से लकीरें भी गायब थी। 

 

अम्मा रोज़ डूबते सूरज को ,

हुक्का पीते हुए निहारती थी ,

आज रात ही निकल जाये प्राण ,

अगले दिन खेतों में मिलती थी। 

 

अपने बाड़ -खुड़ों से उसे अथाह प्रेम था ,

किसी में पालक , किसी में प्याज ,

नन्ही -नहीं क्यारियों में कपोल फूटती थी ,

अम्मा मन ही मन संतुष्ट होती थी। 

 

लौकी और गद्दुऐ सूखा रखे थे घर की छत पर,

 पीली ककड़ियों  की बड़िया बनाती थी ,

खुद का कल का पता नहीं था ,

पूरे ह्यून बिताने का इंतजाम करती थी। 

 

एक दिन सच में रात को सोई ,

सुबह उठी ही नहीं ,

बड़िया छत में ओंस में भीग गयी ,

और पालक तुश्यार से मुरझा गयी। 

 

अम्मा चुपचाप चली गयी ,

और सब कुछ छोड़ गयी ,

बच्चे भी अम्मा की चिंता से फरांग हो गये ,

गाँव वालों ने कहा - बुढ़िया तर गयी। 

 

Friday, November 14, 2025

लोकतंत्र में चुनाव


प्रतिनिधि चुनना है , 

जो काम आये लोगों के ,

जो सरकार से बात करे , 

सरकार में शामिल होकर , 

जो जान सके दुःख दर्द , 

जो नब्ज पकड़ सके वक्त -बेवक्त , 

वही जीतना चाहिये , 

उसी को जीताना चाहिए , 

यही है लोकतंत्र का , 

सबसे बड़ा मूलमंत्र , 

अब चुनाव में , 

कौन जीतता है ? 

कौन हारता है ? 

इसके बहुत से है कारक , 

जनता तो उसे ही चुनेगी , 

जिससे लगेगा , 

वक्त पर सुनेगा बात , 

वर्ना जनता तो अपना दुखड़ा , 

रो ही रही है सालों से , 

सुनता कौन है ? 

एक बार चुनाव जीतकर , 

मगर लोकतंत्र की तो आत्मा बसी है चुनावों पर , 

होते रहेंगे जनता से , जनता के लिये , जनता द्वारा , 

जायेंगे सरकार में चुने हुए उम्मीदवार , 

अब उनपर निर्भर , 

कितना अनसुना करेंगे , कितना सुनेंगे , 

आयेंगे फिर लौट कर, 

फिर कहाँ जायेंगे बचकर।  

Saturday, November 1, 2025

संघर्ष

 

यकीन जानिये ,

संघर्ष सबकी ज़िन्दगी में है ,

वो बात अलग है ,

सबके संघर्ष का स्तर अलग -अलग है। 

 

कोई संघर्ष से निखरता है ,

कोई संघर्ष से बिखरता है ,

कोई टूट जाता है ,

कोई नई परिपाटी गढ़ जाता हैं। 

 

बिना संघर्ष के जो पाता है ,

उसे क्या पता स्वाद संघर्ष का ,

भुरभुरा सा ज़िन्दगी भर ,

इक नन्ही ठोकर से बिखर जाता हैं। 

 

जो खड़ा रहता है संघर्षो में सीना तान ,

फिर उसके लिए क्या आँधी -तूफ़ान ,

तैयार हर परिस्थिति के लिये ,

शून्य से फिर खड़ा कर देता है मुकाम। 

 

जो बाधाओं से लड़ता है ,

जो संघर्षो में तपता है ,

वही निखर कर इक दिन ,

जग में "हीरे" सा दमकता हैं। 

 

डटा रहा अंतिम समय तक ,

वक्त तेरे लिये फिर थम जायेगा ,

तेरे जूनून की जिद्द में ,

जमीन क्या आसमां भी झुक जायेगा।

Tuesday, October 28, 2025

आँसू

 

जब हम सबसे ज्यादा उदास होते है ,

हमें हमारे सबसे अच्छे दिन याद आते है ,

आँखों की कोरे गीली हो जाती है ,

और यादें आँसू रूप में ढल कर ,

हमारे गालों से लुढ़ककर ,

जमीन को स्पर्श करते है ,

हम गलती करते है ,

अपने हाथों से उनको पोछने लगते है ,

बहने दीजिये उन आँसुओं को ,

मिलने दीजिये जमीन से ,

ये जमीन उन आँसुओं को ,

बीज रूप में ग्रहण करती है ,

और आपके अवसादों को ,

उदासियों को सोखकर ,

आपके लिये आशाओं का ,

उम्मीदों की एक नई पौध जनती  है ,

और आपके एक एक आँसुओ को ,

फूल बनाकर आपके जीवन में बिखेरती है। 

Monday, October 27, 2025

क्षण

  

ज़िन्दगी का सफ़र उदासीन ही होता है ,

कुछ क्षण इस सफ़र को बेहतरीन बनाते है ,

वो क्षण कभी खुशियों के होते है ,

कुछ क्षण दुःख के होते है ,

कुछ क्षण सफलताओं के होते है ,

कुछ क्षण हारो के होते है ,

कभी उन क्षणों की याद में ,

कभी उन क्षणों के इन्तजार में ,

ये उदासीन सफर कटता चला जाता है,

सत्य यही है कि यही क्षण ,

इस सफर के मील के पत्थर होते है।   

Friday, October 24, 2025

सफ़र

 

सफर तो अकेले का ही है ,

अकेले ही तय करना है ,

मिलते -बिछुड़ते रहेंगे हर मोड़ पर ,

मंज़िल तक पहुँचना अकेले ही है। 

 

मायने बस यह रखता है ,

मिलने -बिछुड़ने वालों से ,

क्या आपने सीखा ,क्या सिखाया ,

क्या यादें दी , क्या यादों का जखीरा बनाया।

Wednesday, October 22, 2025

वक़्त

 

वक्त को भी ,

वक्त चाहिए होता है ,

आपके मनमुताबिक होने के लिये ,

उसको भी हिसाब लगाना पड़ता है ,

किसके हिस्से से दे आपको ,

किसके हिस्से से काम करे , '

या किसके हिस्से ज्यादा है ,

तसल्ली हो जाने के बाद ,

वो वापस लौटता है ,

मगर कुदरत का रँग देखो ,

किसी के लिए बहुत देर हो चुकी होती है ,

कोई इन्तजार को तैयार नहीं होता ,

और जो विश्वास के साथ डटा रहता है ,

वक्त फिर उसके साथ हो लेता है,

कर्म कीजिये  और इन्तजार कीजिये,

वक्त आपका भी आयेगा ,

बस वक्त को भी थोड़ा वक्त दीजिये।    

Sunday, October 12, 2025

रोते पुरुष

पुरुष दंभ भरते है ,

वो रोते नहीं है ,

उनकी आँखों से ,

आँसू टपकते नहीं है ,

सच है -बिल्कुल सच ,

वो अक्सर दिल के ,

अंदर ही अंदर रोते है ,

और शायद ,

इसीलिये पुरुष अक्सर ,

हृदयघात से ज्यादा मरते हैं।

 

पुरुष रो ले अगर ,

शायद ये दुनिया बहुत बेहतर हो जायेगी ,

आँसुओ से उनके शिलायें पिघल जायेगी ,

मसले बहुत आँसुओ में बह जाते ,

दिल के अवरोध सब निकल जाते ,

मगर बहुत मुश्किल से झरते है ,

आँखों से आँसू पुरुषों के ,

गर होता इतना आसान ये ,

धरती शायद स्वर्ग से कम न होती,

और पुरुष वाकई कोमल हो जाते,

और रोने से  पुरुषत्व और पुरुषार्थ ,

दोनों में कोई कमी नहीं आती।    


Thursday, October 9, 2025

जीवन नाव

 

हो जायेंगे मसले हल ,

चिंता से क्या होगा ,

जो करना है वो कर ,

हल कुछ निकल आयेगा। 

 

कमियाँ किसके अंदर नहीं यहाँ ,

कोई भी तो पूर्ण नहीं है ,

जो प्राप्त है , पर्याप्त है ,

प्राप्य के लिये प्रयत्न कर। 

 

आनन्द बाहर नहीं मिलेगा ,

वो तो मन के भीतर है ,

फँसा हुआ मन बाहर ,

बाहर हर जगह कोलाहल है। 

 

कर्म बहुत जरुरी है ,

उसके बिना गति नहीं है ,

कर्मफ़ल में जो मिले ,

स्वीकार कर और आगे बढ़। 

 

जीवन सागर में उतरी नाव है ,

पतवार तेरी ख़ुद के हाथ है ,

कब लगेगी पार " आनन्द "

ये बस ईश्वर के हाथ हैं।  

 

Sunday, October 5, 2025

हार

 

हार तभी ,

जब तुम मानोगे ,

हार तभी,

जब प्रयास छोड़ोगे ,

हार तभी

जब मौका दुबारा न हो ,

हार तभी

जब तुम मानोगे,

 

तब तक ,

हार, इक सीख है ,

हार ,जीत के लिए सबक है ,

हार , जीत के लिए ललक है ,

हार , एक कसक है , 

हार , जीत का आधार है ,

हार , जीवन का पाठ है। 

Friday, October 3, 2025

जीवन संसार

  

आशा और निराशा के मध्य ,

झूलता रहता है इक मन ,

होनी -अनहोनी की आशंकाएँ ,

चिंतित रहता है  मन ,

समय की मंथर गति में ,

छुपे न जाने कितने राज ,

राजा बने रंक-रंक बने महाराज ,

मन की बेचैनियाँ बहुत ,

इच्छाओं का है अम्बार ,

जिम्मेदारियाँ रीढ़ झुकाये ,

जीवन देखता बस गुबार ,

सुकून को तरसता मन ,

मस्तिष्क करे हुँकार ,

लाभ -हानि के चक्कर में ,

फँसा हुआ जीवन संसार। 

 

पार कैसे लगे ?

बहुत टेड़ा है ये सवाल ,

सबके अपने अपने लक्ष्य ,

सुकून के सबके अपने द्वार ,

समर पल रहा सबके भीतर ,

किसी की जीत , किसी की हार ,

दौड़ में  शामिल सभी,

सबका अपना अपना भाग्य ,

पल -पल जीता जो ,

परवाह नहीं -जीत हो या हार ,

स्वीकार कर हर परिणाम को ,

राग द्वेष सब दरकिनार ,

रिश्ते नातों को देता एक आकार ,

जीवन उसी का समझो - साकार।