Tuesday, September 12, 2017

खिलने दो , महकने दो

खिलने दो , महकने दो ,
हमको भी जीने दो ,
खुदा ने भेजा हैं हमको ,
बड़ी रहमतो और मुद्दत के बाद ,
हमको भी जीने दो।

कलियाँ हैं हम , 
हमें भी फूल बनने दो , 
यूँ बेरहमी से मत कुचलो , 
कुछ तो उस खुदा से डरो।  

डरा डरा सा बचपन बीत रहा , 
क्यों हर जगह इंसान रुपी जानवर दिख रहा ?
क्या कसूर हैं हमारा  ?
कोई हमें नहीं बतला रहा।  

सब कहते हैं हम देश का भविष्य हैं , 
क्यों फिर भविष्य इतना डर में पल रहा ?
महफूज नहीं जगह कोई , 
क्यों हर जगह अंधकार पसर रहा।  

खिलने दो , महकने दो 
हमें भी सपने पूरे करने दो , 
हमें भी पूरा जीवन जीना हैं , 
इतना तो रहम करो।  

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