Thursday, November 2, 2017

एक पत्र - - पिता का पुत्र के नाम


प्रिय पुत्र , चिरंजीवी रहो,  
सदा खुश और आबाद रहो । 
आज तुम्हारी याद आयी,
आँखे मेरी भर आयी ।। 

जब तू छोटा था , खूब रोता था ,  
बात बात पर जिद्द करता था।
माँ का तुझपर बड़ा लाड़ था,
तेरी जिद्द पूरी हो , दो - दो जगह नौकरी करता था ।

तू हमारी आँखों का तारा था , सपनो का सितारा था। 
हमारे जीने का तू ही सहारा था।। 
तेरे सपनो के आगे, हम भी झुक गए। 
तुझे विदेश जाने की अनुमति देकर, हम आधे उसी दिन मर गए।।

तेरी माँ तेरे इन्तजार में खप गयी ,
मेरी ज़िन्दगी उजाड़ हो गयी। 
तू अपनी दुनिया में रम गया ,
मैं बुढ़ापे में अनाथ हो गया।।

तेरी बहन आ जाती है कभी कभार,
" पापा , आप हमारे साथ रहो " कहती है हर बार ।
उसको मैं हर बार समझाता हूँ, 
तेरी माँ और तुम्हारी यादो का खजाना हैं इस घर में मेरे साथ।

बहुत खाली सा महसूस होता है जीवन ,
इसका भार अब नहीं उठता। 
वसीयत तेरे नाम लिख दी है ,
अपना हक़ समझकर रख लेना ।।

अपने बच्चो का खूब ख्याल रखना , 
अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना ।
कभी आये याद मेरी तो ,
फोन जरूर करना। 

आशीष बना रहे तुझपर , तू खूब तरक्की करें। 
जहाँ भी रहें , खुश रहे।।

4 comments:

  1. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति और आधुनिक जीवन की सच्चाई को दर्शाते भाव। अद्भुत।

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  2. it has amazing explaination of what a family is.

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  3. Very emotional but bitter truth of our society. Very nicely written.

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