Wednesday, December 26, 2012

अलविदा 2012 ....


फिर एक नए साल की स्वागत को पलके बिछाए खड़े हम
2012 को अलविदा कहने को कितने उतावले हम
कितनी खट्टी मीठी यादे पीछे छोड़
लो आने वाला हैं एक नया साल आपके सामने
सपनो को फिर पंख लगे गए
नए साल के लिए अरमान फिर हरे हो गए
जनवरी से शुरू होता हर साल , दिसंबर में आकर रुक जाता हैं
फिर कैलेंडर हमारा नया जाता हैं
हर गुजरता साल हमारे जीवन का एक कम हो जाता हैं
हम अपनी उम्र में एक साल और जोड़कर
फिर आगे बढ जाते हैं
हर साल हमारा यूँ ही गुजर जाता हैं
चलो ! 2012 का अध्याय ख़त्म कर आगे बड़ते हैं
2013 का तहेदिल से स्वागत करते हैं
लगायेंगे हिसाब किताब कभी इन बीते सालो का
जब कभी फुर्सत के कुछ पल हमारे पास होंगे
अभी तो भागमभाग की इस ज़िन्दगी में
बस कैलेंडर को बदल लेते हैं
आओ ! फिर से एक नए साल में प्रवेश करते हैं

नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाये

Thursday, December 13, 2012

खुद की , खुद से ........

क्या हैं हम में वो जुनून और वो जज्बा की , 
हम खुद से मुकाबला करे , 
रोज़ अपने लिए कुछ पैमाने तय करे और, 
और उन पर खरा  उतरे , 
अपने लिए खुद नियम बनाये और 
उन पर अमल करे , 
क्यूंकि हमें दुसरो की नक़ल नहीं करनी , 
हमारा तो खुद से मुकाबला हैं , 
अपने को बेहतर से और बेहतर करने की जंग , 
हमारे ही भीतर तो हैं। 
हमें हमारी सोच बदलनी होगी , 
अपने पंखो को परवाज देनी होगी , 
खुला आसमान हैं ये जहाँ , 
क्षितिज की तलाश हमें खुद करनी होगी , 
न रुकना होगा , न झुकना होगा 
अपने लक्ष्यों तक अपने जूनून से पहुचना होगा , 
लगेगी थोडा देर भले ही , हार ने मानने का जज्बा रखना होगा, 
हिम्मत  रखनी पड़ेगी दुनिया बदलने की , 
हर हालात में मुस्कराये ये कलेजा रखना होगा। 
दुनिया हमें पागल कहे तो भी अपना रास्ता खुद चुनना होगा, 
सफलता और असफलता को बिना ध्यान में रखे , 
हमें  अविरल बहना होगा .  
भेडचाल में चल के बहुत देख लिया अब, 
अपने लिए खुद का  मुकम्मल जहाँ बनाना होगा , 
अपने ज़िन्दगी कारवां को हमें , 
और बेहतर बनाना होगा .

Monday, December 10, 2012

बस यूँ ही ख्याल आया .....

बुरी बात हर एक के लिए अलग अलग हो सकती हैं , 
मगर अच्छी बात  सबके लिए ये हैं की हम जिंदा हैं , 
और कही न कही उपर वाले की दी हुई इस ज़िन्दगी को जी रहे हैं।  
जो बात मेरे लिए अच्छी हैं वो हो सकता हैं आपके लिए बुरी हो, 
और जो आपके लिए अच्छी हो वो किसी और के लिए बुरी, 
ये सब ज़िन्दगी जब तक हैं तब तक चलता रहेगा , 
मगर हम सांस ले रहे हैं इससे अच्छा और क्या हो सकता हैं? 
गिले शिकवे , ख़ुशी गम , सफलता - असफलता , अमीरी गरीबी , 
ये सब जीवन का हिस्सा हैं , 
कुछ भी  स्थायी नहीं हैं , आज जो हैं कल नहीं रहेगा , 
फिर क्यूँ मन को अपने व्यथित किया जाये , 
पल जो हैं हाथ में हमारे  उसको क्यों न जीया जाये , 
अगर ख़ुशी हैं तो इसे भरपूर जिया जाये ,
और अगर कही थोडा दुःख हैं तो इसको भी जीया जाये , 
कल क्या होगा कुछ भी यकीन नहीं हैं , 
कम से कम अपनी जिंदगानी की पोटली को भरा जाये। 

Monday, November 19, 2012

माँ आज भी कहती हैं ,

माँ  आज भी कहती हैं , 
" पैसे के पीछे ही मत भाग, अपनी सेहत का ख्याल पहले रख, 
  नहीं चाहिए तेरे पैसे जो तू अपनी सेहत बिगाड़ कर कमाए, 
  जितने मिले उतने से ही काम चला , 
  अगर मन नहीं लग रहा तो घर आ जा .
  मेरी आँखों के सामने  रहेगा और मुझे कुछ नहीं चाहिए 
  माना की तू दुनिया की नजर में बड़ा आदमी हैं 
  मगर मेरे लिए तो तू आज भी बच्चा हैं 
  जो हर बात पर मम्मी मम्मी करता हैं   " 
नमन हैं हर माँ को  जिसका कलेजा हर वक़्त अपने बच्चो के लिए धडकता हैं। 
वो धरती पर इश्वर का रूप हैं , खुदा तो हर वक्त साथ नहीं रह सकता , 
मगर हर माँ को अपने रूप में भेजता हैं . 
माँ के गुणगान करने के लिए शब्द नहीं मिलते , 
वर्ना मैं सबसे लम्बी किताब लिख लेता , 
" माँ " शब्द ही इतना व्यापक हैं , 
कहाँ से शुरू करे और कहाँ ख़त्म - समझ नहीं आता। 

Friday, November 9, 2012

चलो , इस दिवाली कुछ नया करते हैं ..


जलते दीये को देखकर हर बार ख्याल आता हैं , 
क्यूँ ये दीया अपने आप को जलाता हैं , 
फिर दिमाग झकझोरता हैं , 
अगर दीया अपने आप को जलाएगा नहीं तो , 
अंधेरे से मुकाबला कैसे करेगा , 
वो तो जन्मा ही इसी लिए हैं ,
उसको उस जलन में भी इस बात का संतोष रहता होगा, 
की वो जिस काम के लिए जन्मा हैं उसको कितने अच्छे तरीके से कर रहा है,
अपने को जला कर दुसरो को रौशनी दिखाता हैं, 
चलो इस दिवाली हम भी इससे कुछ सीखते हैं , 
किसी को अपने प्रकाश से हम भी रोशन करते हैं ,
किसी की चेहरे पर ख़ुशी आये , कुछ काम करते हैं
हर रोज़ अपने लिए जीते हैं , कुछ पल दुसरो के लिए भी जीते हैं 
खुशियों में तो शरीक होते ही है , किसी के गम को साझा करते हैं 
चलो , इस दिवाली कुछ तो नया करते हैं। 

Tuesday, November 6, 2012

वक़्त .........

हालात कितने ही बद्तर क्यों न हो , 
उन्हें सुधरना ही हैं , 
हालात कितने ही अच्छे क्यूँ न हो, 
उनको भी बदलना ही हैं . 
वक़्त का मरहम हैं ही कुछ ऐसा , 
की सब कुछ एक सा कभी नहीं रहता, 
राजा को रंक और रंक को राजा , 
कब होना हैं सब इसी की गर्त में हैं , 
इसकी गति स्थिर हैं न ये तेज होती हैं न मंद , 
परेशानी में हमें लगता हैं कितनी सुस्त रफ़्तार हैं इसकी , 
ख़ुशी के पलो में सरपट भागने की आदत हैं इसकी , 
जो इसको समझ गया , 
वो जिंदगी जी जाता हैं और जो इसकी चाल न समझ पाया , 
वो ज़िन्दगी भर उलझा रहता हैं . 
न ये खरीदा जा सकता हैं और न ये इकठ्ठा किया जा सकता हैं , 
न कोई इसको रोक सकता हैं , 
ये तो मस्तमौला हैं बिना किसी की परवाह किये बस फिसलता जाता हैं। 

Friday, October 26, 2012

राम ने रावण को क्यों मारा .......

मेरी चार साल की बिटिया दशहरे के दिन रावण को जलता देख  कहती हैं ,
" पापा , आपको पता हैं हैं राम जी ने रावण को क्यों मारा ?"
मैंने कहा , " नहीं बेटा, आप बताओ - राम जी ने रावण को क्यों मारा ?" 
उसने बड़ी मासूमियत से उतर दिया , " रावण गन्दा बच्चा था, उसने राम जी को खूब तंग किया था. 
इसलिए राम जी ने बो और एरो से उसको मार दिया.  
जो भी किसी को तंग करेगा , राम जी इसको मार देते हैं." 
मैं अवाक् था, मेरी चार साल की बेटी को पता था राम और रावण में क्या फर्क था, 
पूछने पर उसने बताया उसको स्कूल में उसकी मैडम ने बताया था. 
मैं खुश था उसको अच्छे बुरे की थोडा बहुत पहचान हो गयी हैं. 
मगर मैं सोच में पढ़ गया , 
आज के समय में इतने राम कहाँ से आयेंगे और कहाँ कहाँ जायेंगे ,
हर तरफ तो रावण ही रावण हैं , 
अपने बो और एरो से वो क्या कर पाएंगे , 
रावनो ने बहुत तरक्की कर ली हैं और जरुरत से ज्यादा हाई टेक हो गए हैं. 
राम को पता भी ने लगने देंगे और रावण उनकी नाक के नीचे अपना काम कर जायेंगे. 
बिटिया मेरी अभी असलियत की ज़िन्दगी से कोसो दूर हैं , 
उसको हर बुरा काम करने वाला रावण नजर आता हैं , और अच्छा काम करने वाला राम. 
भगवान् उसे यही सोच दे की वो ये भेद हमेशा कर सके और रावनो से हमेशा बची रह सके.   

Tuesday, October 16, 2012

क्या लिखूं .....कब लिखूं ........

हर रोज़ सोचता हूँ आज कुछ न कुछ जरुर लिखूंगा, 
मगर सोचता हूँ टाइम कहाँ हैं कुछ सोचने का , 
सोचूंगा नहीं तो क्या लिखूंगा ? 
हफ्ते के सात दिन , छ दिन ऑफिस में व्यस्त , 
रविवार को घर वालो को टाइम देने का वक्त. 
ऑफिस में किसको फुर्सत हैं जी हजूरी करने से, 
शाम को बीवी बच्चो की शिकायतों से पस्त. 
सोचा आज ऑफिस आते जाते कुछ सोचूंगा , 
क्यूंकि यही वक्त हैं मेरे पास दिमाग दौडाने का , 
मगर मेट्रो में जैसे ही कुछ सोचने लगता हूँ, 
अगला स्टेशन आ जाता हैं , 
कुछ अन्दर चडते हैं और कुछ बाहर का रास्ता पकड़ते हैं , 
अन्दर और बाहर होने वाले लोग आपको सरका जाते हैं, 
विचारो का एक फ्लो जो थोडा बनता हैं , 
उसको बिगाड़ जाते हैं. 
हर रोज़ यही चलता रहता हैं , 
कविताये जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ देती हैं, 
ज़िन्दगी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से कुछ ऊपर सोचने ही नहीं देती हैं. 
चलो ! इस उम्मीद में हैं एक दिन आएगा जब हम भी फुर्सत में होंगे, 
दूर किसी पहाड़ो में झरने के नीचे एकांत में कविताये लिखेंगे , 
तब तक... गाहे बगाहे कुछ होगा तो जल्दी में लिख डालेंगे , 
तुकबंदी न भी बन पड़े , भावनाओ के शब्दों का जामा पहनते रहेंगे. 

Sunday, September 30, 2012

जिन्हें जल्दी थी , वो चले गए

सुबह स्टैंड पर बस के लिए खड़ा था, 
एक ट्रक गुजरा और उसके पीछे लिखा था, 
" जिन्हें जल्दी थी , वो चले गए.
बार बार होर्न दे कर वक्त जाया न कीजिये ."  
बस आने में थोडा समय था , 
मैं उस विचार में खो गया, 
कितना अच्छा विचार था वो , 
लाख टके की बात थी उसमे , 
ज़िन्दगी के लिए एक नया सबक दे रहा था , 
" जिन्हें ज़ल्दी थी , वो चले गए " 
हम आराम से हैं , शायद इसलिए इन्तजार कर रहे थे. 
कभी कभी कुछ अच्छा पड़ने के लिए किताबो के सहारे की ही जरुरत नहीं पड़ती , 
अपने दिलो-दिमाग को खुला रखिये , 
हर जगह ज्ञान की दूकान खुली पड़ी हैं. 
बस याद रखिये , " जिन्हें जल्दी होती हैं , वो चले जाते हैं . 
सुकून से जीने वाले ही जीवन का लुफ्त उठाते हैं."  

Wednesday, September 26, 2012

एक सेल्समेन की कहानी, मेरी जुबानी .........

बॉस ने बुलाया उसको और कहा, 
" तुम्हारा ध्यान नहीं हैं काम पर आजकल , 
सब टार्गेट फेल हो रहे हैं . 
नए कस्टमर तुम जोड़ नहीं रहे हो, 
पुराने तुम्हारे से माल खरीद नहीं रहे हैं, 
तुम कर क्या रहो हो आजकल " 
उसने जवाब दिया , 
" पुराने कस्टमर तो इसलिए आर्डर नहीं दे रहे हैं क्यूंकि , 
पहले तो हम उनको टाइम पर माल नहीं देते 
और देते हैं तो क्वालिटी का हमारे कोई भरोसा नहीं होता , 
रही बात नए कस्टमर की, रोज़ नए नए कस्टमर के पास जाता हूँ, 
अपनी कंपनी का नाम लेता हूँ तो वो भड़क जाते हैं , 
स्कीमे चलाते हो - अपने प्रोडक्ट के साथ टेडी बीयर देते हो. 
रही बात टार्गेट की , आपने पूरी टीम का टार्गेट मेरे ऊपर लाद दिया हैं , 
पूरा हो गया तो आपकी जय जय कार होती हैं , 
इन्क्रीमेंट आपका बढ़िया होता हैं और मैं सिर्फ ताकता रहता हूँ. 
रही बात ध्यान की, वो मैं भी लगाना चाहता हूँ. 
मगर न आप लगाने देते हो और न घर वाले , 
आप एक काम को पूरा करने नहीं देते हो की , 
अगला पकड़ा देते हो , 
घर वाले कहते हैं नौकरी बदल ले , 
इतना काम के बदले तुझे देते क्या हैं  ? 
तेरे दोस्त तुझसे ज्यादा कमाते हैं ." 
रूआंसा सा होकर वो केबिन से निकला , 
थोडा संतोष था की जो बात इतने दिलो से कह नहीं पा रहा था, 
आज कम से कम बॉस को बता तो दी, 
पता हैं होना कुछ भी नहीं हैं , 
मगर अपने दिलोदिमाग से थोडा बोझ शिफ्ट तो हुआ. 
उधर बॉस भी सोच रहा था , 
कितनी सही बात कह गया वो, 
मेरी तो हालात उससे  बदतर हैं ,
वह अपनी भड़ास मुझ पे निकाल गया , 
अब मैं किस पे  निकालू , सोच रहा था.  

Monday, September 24, 2012

ज़िन्दगी और मैं ....

सन्डे को थोडा फुर्सत थी, तो थोडा अलसा रहा था. 
पता नहीं कहाँ से ये ख्याल आया , 
जैसे मेरी ज़िन्दगी मेरे सामने आ गयी हो , 
और पूछ रही हो ," बता, मेरा हिसाब किताब ,
इतने साल जो तुने मेरे गवां दिए हैं , 
क्या क्या किया बता तू आज." 
शरीर में सिहरन सी मच गयी , 
और बोला, " सन्डे हैं आज , 
थोडा सुस्ता लूं मैं , 
कल करेंगे बात " 
ज़िन्दगी बोली , " बाकी दिन तो बहुत बहाने है तेरे पास, 
कभी इसका टेंसन और कभी गिनाएगा और बहुत सारे कारण, 
फिर कह देगा बहुत सारे काम हैं मेरे पास आज " 
मैं सन्डे को जाया नहीं करना चाहता था, और मुझे लगा आज तो छोड़ेंगी नहीं , 
और उपर  से हकीकत तो ये , " उसको बताने के लिए कुछ नहीं हैं मेरे पास" 
आधी उम्र तो काट दी हैं मैंने इसकी , अब आधी के लिए भी कोई ऐसा योजना नहीं हैं मेरे पास. 
सोचा इससे कट ही लेता हूँ ,  आवाज लगायी अपनी बिटिया को . 
और उसके साथ यूँ ही खेलने लग गया. 
ज़िन्दगी बेचारी मुझे घूरते हुए " फिर आउंगी " कहते हुए ओझल हो गयी. 

Monday, September 3, 2012

मेट्रो ....हर रोज़ की जंग


ऑफिस से निकला और नॉएडा सिटी सेंटर पहुंचा , 
देखा चेकिंग के लिए ही लम्बी लाइन लगी थी, 
१५ मिनट में चेकिंग के बाद प्लेटफोर्म पर पहुंचा , 
लम्बी लम्बी लाइन देख कर साँसे फूल रही थी, 
मेट्रो अभी आई भी नहीं थी, लोगो में लाइन में आगे लगने की होड़ सी लगी थी, 
जैसे ही मेट्रो आई , लोगो को एक दुसरे को धक्का मार सीट घेर की प्रतियोगिता चल गयी थी, 
जिन्हें सीट मिल गयी उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी , 
और जो खड़े रह गए , वो हाथ मल रह थे. 
मन ही मन बैठे हुए लोगो से जल रहे थे, 
ये हाल पहले स्टेशन का था, जहाँ से मेट्रो चली थी. 
धीरे धीरे मेट्रो आगे सरकती गयी और लोगो को अब सीट तो छोड़ खड़े रहने की जगह नहीं बची थी. 
फिर आया राजीव चौक , मेट्रो के सबसे संघर्ष वाली जगह. 
आधे उतरे और जो नहीं उतर पाया, चड़ने वालो ने उसे फिर से अन्दर कर दिया. 
वो चिल्लाता रहा , मगर किसी को परवाह कहाँ. 
इतने मैं एक सज्जन का पांव दुसरे के पाँव के ऊपर चढ़ गया, 
गाली गलौज का जो दौर शुरू हुआ, 
वो एक के स्टेशन आने पर ही रुका. 
जैसे तैसे मैं अपने स्टेशन कीर्ति नगर उतरा. 
लगा जैसे आज मैंने कितना संघर्ष किया. 
खुद को फिर तैयार किया , क्यूंकि अब दूसरी मेट्रो कीर्ति नगर से मुंडका पकड़नी थी, 
जंग वही फिर से लड़नी थी.  

Saturday, September 1, 2012

नन्ही सी एक बूँद ............


बादलो के अपने मखमली घर को छोड़ , 
जब वो अपने दुसरे घर जमीन को चली , 
तो उससे बहुत समझाया गया , 
तू छोड़ के चली जाएगी तो तेरा सुकून चला जायेगा, 
इतना आराम जो यहाँ हैं सब ख़त्म हो जायेगा. 
तू मिटटी में मिल जाएगी और तेरा वजूद मिट जायेगा. 
नन्ही बूँद ने उत्तर दिया , 
" मैं तो जन्मी ही धरती की प्यास बुझाने हूँ, 
मुझे रोकने से क्या फायदा , 
अंतत : मुझे एक दिन ये सुकून भरा घर छोड़ना ही हैं, 
फिर मैं उस समय की धरती के क्यूँ काम न आऊँ , 
जब उसको मेरी सबसे बड़ी जरुरत हैं. 
उसकी प्यास भी बुझ जाएगी और मेरा जीवन भी काम आ जायेगा. 
वर्ना किसी दिन जब उससे जरुरत ही नहीं होगी , 
मैं बाड़ के पानी का हिस्सा बन जाउंगी और फिर से किसी नदी नाले में मिलकर , 
फिर यही जीवन पाऊंगी. 
आज धरती सूखी हैं, मुझे न रोको , 
मिटटी में मिलकर तर जाउंगी , 
किसी फूल के पौंधे की प्यास बुझा कर, 
फूलो की तरह महक नया जीवन पा जाउंगी " 
अचानक बादलो में गर्जना हुई और वो नन्ही सी बूँद, 
ऊपर बादलो के घर को छोड़ , हवायो के रथ पर सवार होकर, 
धरती में समां गयी ,
जिस जगह वो बिखर कर चूर हुई, वही एक झुलसा हुआ गुलाब के पौंधा था, 
कुछ समय बाद वही एक गुलाब का फूल खिल रहा था. 
 

Wednesday, August 22, 2012

यादो के गलियारों में गोते .......

कभी यूँ ही यादो के गलियारों में घूमना अच्छा लगता हैं, 
वो छोटी छोटी बाते यादे करना अच्छा लगता हैं, 
वो बचपन के अल्हड और मौजमस्ती के दिन याद करना ,
दिमाग को कितना ताजा कर जाता हैं, 
वो स्लेट पर कलम से अ , आ सीखना , 
वो पहाड़े रट रट के सुनाना, गलती होने पर मास्टर जी के बेत खाना, 
वो अकेला स्कूल जाना और आना , 
आते समय दोस्तों से किसी बात पर शर्त लगा कर झगड़ना , 
कभी भी स्कूल बंक करके दुसरे दिन उलजलूल बहाने बनाना , 
दिन भर क्रिकेट खेलने के चक्कर में खाना पीना सब भूलना, 
रात को माता जी से फिर लेक्चर सुनना , 
वो टीचरों का अलग अलग नामकरण करना ,
बरसातो में खुद को भिगोना , 
वो नए नए सपने देखना , दुनिया को अपनी मुट्ठी में समझना , 
पापा मम्मी से किसी न किसी बहाने से पॉकेट मनी मांगना , 
कोई सामान मंगाए तो उसमे से चुंगी मारना, 
सच में यादो के पिटारे में कितना कुछ भरा पड़ा है हमारे , 
कभी फुर्सत में सोच के देखना , 
चेहरे पर एक लालिमा से आएगी और दिल बड़ा हल्का से लगेगा , 
इस भागम भाग ज़िन्दगी में "वो पल" ठंडी हवा का झोंका सा अहसास हैं, 
आप तरोताजा हो जायेंगे और यादो की गठरी भी फिर से रवां हो जाएगी .