Tuesday, October 31, 2017

दम


हौंसला और उम्मीद




हौंसला और उम्मीद रखिये , 
पत्थरो में भी फूल खिला करते है।  

हैं अगर ज़िद्द मन में तो , 
जीवन के रास्ते खुद -ब -खुद खुलते है।  

कौन रोक  सकता है फिर उन हवाओ को , 
जो अपने अंदर तूफ़ान रखते है।  

जिजीविषा जीवन की अदभुत है ,
कांटो से घिरकर ही गुलाब खिलते है।  

Monday, October 30, 2017

समाधान



कर वही , 
जो लगे सही , 
दिल की सुन 
दिमाग की नहीं। 

दिमाग 
हिसाब किताब 
करता है , 
और 
दिल , 
ज़िन्दगी के लिए , 
वजह , 
ढूंढता है।  

Thursday, October 26, 2017

दुनिया के उसूल

बदल लिए है दुनिया ने उसूल , 
आप भी बदल लीजिये ,
सच्चाई और ईमानदारी के झोले में , 
थोड़ा झूठ और थोड़ा बेईमानी भर लीजिये।  

लद गए वो दिन जब सच्चे और ईमानदारों की , 
क़द्र और तरक्की होती थी , 
देख लीजिये अपने इर्द गिर्द , 
सबसे पहले इन्ही की बेइज़्ज़ती होती है।  

नहीं रहा वो दौर अब , 
जमाना बदल गया है , 
होते थे पहले भी पाखंडी , 
मगर अलग से पहचाने जाते थे , 
अब दौर अलग है , 
कौन , कहाँ , किस मोड़ पर , 
टकरा जाये - पहचानना असंभव है।  

अब कर्मो के फल की चिंता नहीं होती , 
भले - बुरे की श्रेणी अलग नहीं होती , 
अपने फायदे के लिए सब जायज़ लगता है , 
हर रिश्ता अब स्वार्थ से गढ़ता है।  

इंसानियत अब जैसे किताबो तक ही सिमट गयी है , 
शरीफो  की बेइज्जती सरेआम हो रही है , 
बुजुर्गो के आत्मसात कायदे कानूनों की , 
आधुनिकता के नाम पर बलि चढ़ रही है।  

बदल लिए है दुनिया ने उसूल , 
आप भी बदल लीजिये ,
सच्चाई और ईमानदारी के झोले में , 
थोड़ा झूठ और थोड़ा बेईमानी भर लीजिये। 

नहीं बदल सकते अपने उसूल , 
तो आइये स्वागत हैं मेरे स्कूल , 
कठिन डगर है मगर , 
दिल को मिलता है बड़ा सुकून।  

पग -पग में रोड़े होंगे , 
कुंठा के घेरे होंगे , 
नाते रिश्तेदार सब मुहँ मोड़ेंगे , 
लेकिन हम चैन की नींद सोयेंगे।  

न खोने की ज्यादा चिंता होगी , 
न बहुत कुछ पाने का लालच , 
जो मिलेगा राहे -ए - ज़िन्दगी , 
उसी में हँसी ख़ुशी ज़िन्दगी जी लेंगे।  

करेंगे अपना काम सिद्दत से , 
काम से अपनी पहचान बनायेंगे , 
दुनिया बदल ले भले अपने उसूल , 
हम "जो सही है " उसी ऱाह चलेंगें।  
  

Tuesday, October 24, 2017

कैसे कहूं - ज़िंदा है हम

मन बेचैन ,
दिमाग में उथल पुथल
दौड़ता भागता तन ,
न इधर , न उधर
भविष्य की चिंता में ,
आज पिस रहा ,
बिताये अच्छे दिनों की याद ,
आँखों की कोरे नम 

हाय ! ये कैसा जीवन,   

कैसे कहूं - ज़िंदा है हम।

किसी दूसरे की परवाह नहीं ,
अपने संकटो से ही जूझ रहा मन ,
टिक टिक समय बीत रहा ,
न इधर के , न उधर के रहे हम। 

भावनाओ के लिए वक्त नहीं ,
कुंठा उठाये रखे है फन ,
जितना पास है उसमे संतोष नहीं ,
पता नहीं क्या चाहता है मन। 

हाय ! ये कैसा जीवन,   
कैसे कहूं - ज़िंदा है हम।

बनावटी हँसी अधरों में ,
नहीं पसीजता किसी की लाचारी पर मन ,
बाहर से जितना कठोर बनता ,
अंदर सारा खोखलापन। 

स्वार्थ हर जगह पैर पसारे ,
रिश्ते नाते निभा रहे बेमन ,
झूठी शान का बढ़ रहा चलन ,
लालच घर कर रहा ,
ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी की दुश्मन 

हाय ! ये कैसा जीवन। 
कैसे कहूं - ज़िंदा है हम।

Sunday, October 22, 2017

दिवाली के पटाखे



दिवाली के पटाखे , 
बहुत कुछ समझा और सिखा गए , 
तूफ़ान था इनके भीतर , 
भड़ाम से फूटकर , 
दुसरो को खुशियाँ दे गए।  

जो कल तक थे चमचमाते पैकेट के भीतर ,
आज  बस उनका जला हुए खोल बाकी , 
तितर बितर टुकड़े , 
उठाकर किसी ने , 
कूड़े के ढेर में सुपुर्द कर दिए।  

Thursday, October 12, 2017

मोमबत्ती


ये मोमबत्ती भी न बड़ा तंग करती है , 
जलने के बाद अपनी बचे हुए धाँगे और , 
पिघले मोम से जगह गन्दा कर देती है , 

किया क्या इसने ? 
अँधेरे में रौशनी देने के सिवाय , 
अपने को जलाया ही तो है , 
सब ताप सहन करने के बाद , 
नियति ही इसकी ऐसी थी , 
खुरच दो इसके सब निशाँ , 
कही भी कुछ रह  न जाये , 
जगह चाहिए बिलकुल साफ़, 
जब फिर अँधेरा होगा , 
जला लेंगे दूसरी मोमबत्ती , 
क्या कमी है हमारे पास।   

Wednesday, October 11, 2017

ज़िन्दगी

हर किसी के लिए ज़िन्दगी के मायने अलग ,
किसी के लिए चक्रव्यूह ,
किसी के लिए मृगतृष्णा ,
किसी के लिए काँटो का ताज ,
किसी के लिए फूलो की सेज ,
किसी के लिए संघर्ष गाथा ,
किसी के लिए भाग्य का खेल,
किसी के लिए अंतहीन दौड़ ,
किसी के लिए मोक्ष ,
किसी के लिए प्यार -मोहब्बत ,
किसी के लिए रंजिश का सफर ,
हर किसी के लिए ज़िन्दगी के मायने अलग।

गरीब के लिए दो वक्त की रोटी ,
अमीर के लिए ऐशो आराम का जीवन ,
प्रेमी के लिए प्रेयसी ,
प्रेयसी के लिए प्रेमी जीवन ,
रोगी के लिए स्वास्थ्य ,
निरोगी के लिए भरपेट भोजन ,
माँ के लिए उसके बच्चे जीवन ,
पिता  के लिए बच्चो का भविष्य जीवन ,
दोस्तों के लिए दोस्ती ,
दुश्मनो के लिए दुश्मनी ,
हर किसी के लिए ज़िन्दगी के मायने अलग,
ऐ ! ज़िन्दगी तेरे इतने रूपों को नमन। 

कलाकार के लिए रंगमंच ,
खिलाडी के लिए खेल ,
कवि के लिए कविता ,
लेखक के लिए कहानी ,
नेता के लिए कुर्सी ,
किसान के लिए फसल ,
छात्रों के लिए पढाई ,
बच्चो के लिए मौज मस्ती
नौकरीपेशा के लिए सैलरी ,
बेरोजगारो के लिए नौकरी ,
सैनिको के लिए देशभक्ति ,
एक ज़िन्दगी , कितने रंग ,
शायद इसलिए कहते है रंगीन ज़िन्दगी। 

कोई इसे क्षणभंगुर कहता ,
कोई ठोस धरातल ,
कोई नदी की संज्ञा देता ,
कोई कहता मरुस्थल। 
कोई कहता खूबसूरत ,
कोई कहता दलदल ,
कोई कहता आज़ादी ,
कोई कहता सफर।    
किसी के लिए जिम्मेदारियां ,
कोई अपने में ही मस्त मगन ,
ज़िन्दगी एक , रूप अनेक ,
ज़िन्दगी देने वाले तुझे शत शत नमन। 

मेरी नजर में बहती नदी है ज़िन्दगी ,
कही से शुरू होकर ,
कही दूर सागर में मिलना है ज़िन्दगी ,
इस सफर में कही चंचलता ,
कही ठहराव ,
कही तेज बहाव ,
कही गहराई ,
कही कंकड़ पत्थरो  में लुढ़कती ज़िन्दगी ,
कही पूजा योग्य ,
कही तिरस्कृत ,
कही उफान ,
कही शांतचित ,
लेकर अपने साथ कितने अनुभव ,
कुछ खट्टे , कुछ मीठे ,
सागर में मिलने से पहले ,

अविरल बहाव ही शायद है ज़िन्दगी।  

Monday, October 9, 2017

दिवाली के पटाखे और मिठाई

दीये बेचकर कुछ पैसे लेकर ,
वो मासूम अपने माँ से बोली ,
" माँ , आज दिवाली है ,
हम भी मनाते है ,
कुछ मिठाई और पटाखे हम भी लाते हैं। "

माँ ने उससे पैसे लिए और
हिसाब किताब करने लगी ,
और बोली ,
" सारे दीये तुझे तीन सौ रुपये में बेचने को बोला था ,
तू उन्हें दो सौ रुपये में ही बेच आयी ,
अब कहाँ से खरीदू पटाखे और मिठाई ?"
बेटी रुँआसी सी बोली ,
" अम्मा , सबने तय कीमत से कम बोली लगाई
 किसी ने दो  रूपये , किसी ने पाँच  रुपये कम कीमत चुकाई ,
इसलिए तीन सौ रुपये के दीये दो सौ रुपये में ही बेच पाई। "

माँ बोली ,
"  चल , कोई बात नहीं ,
डेढ़ सौ रुपये में घर चला लूंगी ,
पचास रुपये ले , भाई को साथ ले जा ,
जमकर लाना पटाखे और मिठाई। "

वो भाई का हाथ पकड़ बाजार चल दी ,
अब उसे मोलभाव करने की आज़ादी मिल गयी , 
बाजार में  खो सी गयी ,
चंद पटाखे और कुछ लड्डू लेकर ,
दस रुपये माँ को लौटाती बोली ,
" अम्मा , शुभ दीपावली। "

Thursday, October 5, 2017

टेक्नोलॉजी और इश्क

टेक्नोलॉजी ने कमाल कर दिया , 
आज के इश्क को कितना आसान कर दिया , 
कबूतर और चिट्ठियों के दौर को पीछे छोड़ दिया , 
मोबाइल ने सब काम आसान कर दिया।  

दूरियाँ सात समंदर की भी हैं तो क्या हुआ ?
व्हाट्सएप्प के वीडियो कॉल ने रूबरू कर दिया , 
फिर भी मिलना ही हैं तो ,  
मेट्रो , एयरोप्लेन , कार से कही भी  घंटो में पहुँच गया।  

अब न सताती याद किसी की , 
तुरंत सेल्फी खींची  और भेज दिया।  
उपहार देना हो गर कुछ तो , 
ऑनलाइन आर्डर देकर सीधा उसके घर पहुँचा दिया।  


गया वो जमाना जब छुप छुप कर मिलना होता था , 
शॉपिंग मॉलों के एयर कण्डीशनएड माहौल ने हल कर दिया , 
अब कोई नहीं डर फोटो या चिट्ठियां पकडे जाने का , 
एंड्राइड में  पासवर्ड ने सब कुछ छुपा लिया।  

टेक्नोलॉजी ने कमाल कर दिया , 
आज के इश्क को कितना आसान कर दिया , 
कबूतर और चिट्ठियों के दौर को पीछे छोड़ दिया , 
मोबाइल ने सब काम  आसान कर दिया।  

Tuesday, October 3, 2017

यादो का गलियारा


उन गलियों में जाना हुआ , 
जहाँ कभी हमारी सपनो की दुनिया बसती थी , 
उन पगडंडियों में फिर कदम पडे , 
जिन पर जगह जगह हमारे बनाये निशान अब भी पड़े थे।  

उस नदी के ऊपर पुल से गुजरना हुआ , 
जिस नदी को हम पैंट को घुटने तक मोड़कर हँसते पार करते थे , 
उस मैदान से रूबरू हुए , 
जिस मैदान पर हम कभी चौक्के - छक्के लगाते थे।  

उस शिवालय के आगे से गुजरना हुआ , 
जिसमे हम कभी घंटो बैठ भागवत सुना करते थे , 
उस चाचा से बात हुई , 
जिसके पेड़ो के फल हम चुराये करते थे।  

वो  चीड़ के पेड़ को भी देखना हुआ , 
जिसमे कभी हम खुरच कर अपना नाम खोद आये थे , 
नाम अभी भी लिखा हुआ था , 
मगर अक्षर अब बड़े हो चुके थे। 

वो पहाड़ की चोटी को चढ़ने की हिम्मत न हुई ,
जिसमे हम कभी न जाने दिन में कितनी बार चढ़ जाते थे ,
वो सीढ़ीनुमा खेत जो अब डराते है ,
कभी हम उनमे कूदम - कूद खेलते थे।  

नजरे  उन तमाम यादो को ढूँढ रही थी , 
जो कही न कही दिमाग में बहुत गहरी थी , 
लगा जैसे वक्त का पहिया रुक सा गया , 
मेरा बचपन , मेरा गाँव  मुझे फिर से मिल गया।