उन गलियों में जाना हुआ ,
जहाँ कभी हमारी सपनो की दुनिया बसती थी ,
उन पगडंडियों में फिर कदम पडे ,
जिन पर जगह जगह हमारे बनाये निशान अब भी पड़े थे।
उस नदी के ऊपर पुल से गुजरना हुआ ,
जिस नदी को हम पैंट को घुटने तक मोड़कर हँसते पार करते थे ,
उस मैदान से रूबरू हुए ,
जिस मैदान पर हम कभी चौक्के - छक्के लगाते थे।
उस शिवालय के आगे से गुजरना हुआ ,
जिसमे हम कभी घंटो बैठ भागवत सुना करते थे ,
उस चाचा से बात हुई ,
जिसके पेड़ो के फल हम चुराये करते थे।
वो चीड़ के पेड़ को भी देखना हुआ ,
जिसमे कभी हम खुरच कर अपना नाम खोद आये थे ,
नाम अभी भी लिखा हुआ था ,
मगर अक्षर अब बड़े हो चुके थे।
वो पहाड़ की चोटी को चढ़ने की हिम्मत न हुई ,
जिसमे हम कभी न जाने दिन में कितनी बार चढ़ जाते थे ,
वो सीढ़ीनुमा खेत जो अब डराते है ,
कभी हम उनमे कूदम - कूद खेलते थे।
वो पहाड़ की चोटी को चढ़ने की हिम्मत न हुई ,
जिसमे हम कभी न जाने दिन में कितनी बार चढ़ जाते थे ,
वो सीढ़ीनुमा खेत जो अब डराते है ,
कभी हम उनमे कूदम - कूद खेलते थे।
नजरे उन तमाम यादो को ढूँढ रही थी ,
जो कही न कही दिमाग में बहुत गहरी थी ,
लगा जैसे वक्त का पहिया रुक सा गया ,
मेरा बचपन , मेरा गाँव मुझे फिर से मिल गया।
Superb..............apne gaon , apne pahad jaate rahna chahiye.
ReplyDelete