Thursday, December 8, 2022

प्रयास

 उम्मीद तब तक मत छोड़ो , 

जब तक अंतिम प्रयास न हो जाये, 

और अंतिम प्रयास ऐसा करो , 

वो प्रयास का पर्याय हो जाय। 


फँसे हो कभी घुप्प अंधेरों में , 

कोई जुगनू ही सहारा हो जाये , 

हो हार निश्चित तब भी , 

एक पुरजोर कोशिश की जाय।  


दुःखों का भँवरजाल हो सामने , 

"खड़े हो ", इसी का जश्न मनाया जाये , 

सफलता - असफलता जो मिले राहों में , 

"स्वीकार कर" , आगे बढ़ा जाय।   


सफर बढ़ रहा रोज़ आगे , 

क्या फर्क पड़ता है - कौन आगे , कौन पीछे 

जहाँ भी ख़त्म हो  सफर अपना  , 

वहाँ एक " शिलालेख " गढ़ जाय।  

Tuesday, November 29, 2022

शबरी : धैर्य और प्रतीक्षा

  

नित बुहारती वो पथ ,

न जाने कब राम आ जायेंगे ,

चुन -चुन कर कन्दमूल ,

मेरे राम खायेंगे ,

सावन पर सावन बीते ,

कमर झुक सी गयी श्रमणा की ,

थका नहीं विश्वास मगर ,

गुरु की बात गाँठ बाँधी ,

आयेंगे , आयेंगे ,

मेरे राम आयेंगे ,

पथ पर नित फूल बिछाती ,

दर्शन को प्यासी वो ,

राम -राम ही भजती ,

इक दिन फिर वो ,

चमत्कार हो ही गया ,

जब देखी दो युवकों की परछाई ,

खुल गए भाग्य भीलनी के ,

रघुकुल तिलक सामने पाई ,

जन्म -जन्म की आस ,

देखो कैसे पूर्ण होने को आई ,

खुद चलकर राम आश्रम पधारे ,

कभी राम का मुख देखती ,

कभी बेरों की टोकरी ,

आँसू टप -टप गिरे आँखों से ,

इस धैर्य और प्रतीक्षा  की ,

खुद समय दे रहा था गवाही ,

भाव -विह्वल शबरी ,

देख राम निहाल हो गयी ,

आधे बेर खिलाये राम को ,

आधे बेर जमीन पर गिराई ,

अराध्य और भक्ति के ,

अदभुत मिलन पर प्रकृति मुस्काई ,

लाख -लाख आशीष दे ,

शबरी ने देखो -गति पाई ,

धैर्य जीता , प्रतीक्षा जीती ,

भगवान को कुटिया तक खींच लायी।

Thursday, November 24, 2022

आज

 

किसने देखा है आने वाला कल ?

कौन बदल सकता है बीता कल ?

आज ,जो अभी है - वही सामने है ,

जो है , बस यही है , यही है - सच। 

 

कल क्या हुआ था , इतिहास बन गया ,

कल क्या होगा ,  किसको है खबर,

जो हाथ में है , उसका शुक्र मना ,

कर्मों से आज अपना भाग्य जगा। 

 

किसको फुर्सत है यहाँ ,

तेरे संघर्ष पर चर्चा करने की ,

कहते थे लोग , कहते रहेंगे ,

लक्ष्य साध , और मुस्कराते जा। 

 

ये जो "आज" है , वही जादुई है ,

जो कर गुजरना है , यही तेरे हाथ है ,

भरोसा रख खुद पर , कर्मों का विधान है ,

आज सही तो फिर सफर आसान हैं। 

Friday, October 21, 2022

एक जोड़ी पैर

 

बायें पैर ने दायें पैर से शिकायत की , 

हर बार चलने के लिए तुम ही क्यों उठते हो ?

मैं भी तो शुरुवात कर सकता हूँ , 

मुझे हर बार तुम्हारे पीछे ही क्यों लगना पड़ता है ?

दायें पैर ने शांत स्वर में समझाते हुए कहा ,

" पगले , तुम्हारे ऊपर दिल का भार है , 

तुम्हारी ख्वाईश को पूरा करने के लिये , 

तुम्हे संकोच न रहे ,मैं पहल कर लेता हूँ, 

नाराजगी छोड़ , तैयार हो जा , 

चल , दोनों दिल को कही घुमा लाते है।  " 


Saturday, October 8, 2022

प्रथम प्रेम

 

प्रेम कैसे उपजा होगा ?

कौन होगा जिसने ,

सबसे पहले इजहार किया होगा ,

क्या कहा होगा उसने ?

या फिर सिर्फ आँखों से ,

इजहार किया होगा ,

क्या दूसरे ने स्वीकार किया होगा ?

झट से ,

या फिर इन्तजार कराया होगा ?

क्या विरोध किया होगा किसी ने ?

कैसे उन्होंने बताया होगा ,

दुसरो को ,

प्रेम क्या होता है ?

वह प्रेम जिसने फिर ,

सारी कायनात की ,

दिशा और दशा ,

दोनों बदल दी ,

प्रेम इतिहास के ,

शुरुवाती पन्ने

लिखे ही नहीं गये।

Friday, September 30, 2022

उस पार

 

नहीं , वो मर नहीं सकता ,

फफक -फफक वो रो पड़ी ,

गयी भी नहीं देखने ,

अंतिम बार उसका चेहरा ,

बंधनो में जकड़ी थी ,

याद था उसको वादा ,

जो वर्षों पहले उसने ,

किया था एक दिन ,

उसने भी दोहराया था ,

बीत गए थे जाने कितने वसंत ,

वादा मगर हमेशा ताजा रहा ,

उम्मीद पर अनगिनत दिन गुजर गए ,

साँझ हो गयी जीवन की ,

मगर वादा बूढ़ा हुआ ,

आज ऐसी अनहोनी कैसे हो गयी ,

वो कैसे जा सकता था ?

अब तो मिलने के लिए ,

शायद उसको भी ,

उस पार जाना ही होगा,

बस "धड़ाम " की हल्की आवाज हुई ,

उस पार शायद मिलन ,

जरूर हुआ होगा,

इस पार तो उनका प्रेम ,

बेड़ियों में ही जकड़ा रहा। 

Saturday, August 27, 2022

ये वक्त गुजर जायेगा।

 

मेरे पास एक अच्छी खबर है ,

और एक बुरी खबर है ,

बताओ पहले कौन सी सुनोगे ,

अच्छी खबर पहले सुनोगे ,

तो फिर बुरी खबर को टाल जाओगे ,

बुरी खबर सुनोगे तो ,

अच्छी खबर पर कहा ध्यान लगा पाओगे ,

ख़बरें दोनों सही और सच्ची है ,

बोलो , पहले कौन सी सुनोगे ?

ऐसा नहीं हो सकता क्या ,

दोनों को मिलाकर सुना दो ,

हो सकता है , तो सुनो ,

"ये वक्त गुजर जायेगा। "

Wednesday, August 17, 2022

हल्के दर्जे का कवि

 

किसी ने मुझसे कहा ,

तुम बहुत हल्के दर्जे के कवि हो ,

ऊपर से , हिन्दी में लिखते हो ,

तुर्रा ये , खुद को कवि कहते हो ,

तुम्हारी कवितायेँ साहित्य श्रेणी में नहीं आती ,

तुम्हारी हर कविता में कोई न कोई कमी है ,

प्रेम पर तुम्हारा  ज्ञान अधूरा है ,

सामयिक विषयों में समझ की कमी है ,

रस ,लय या अलंकार भी कोई चीज होती है ,

चंद पिरोये शब्दों से कोई कविता नहीं बनती है, 

तुकबंदी भी आपसे ढंग से नहीं होती है,

कलम की धार तुम्हारी कच्ची है ,

तुम्हारी लिखाई दिल को चुभती है ,

तुम्हारी लेखनी बस इक उम्मीद देती है ,

वास्तविकता के धरातल से परे होती है ,

तुम बस आवेश के वशीभूत लिख देते हो ,

शायद खुद के लिये ही लिखते हो ,

मैं , निरुत्तर , बस सुने जा रहा था ,

बस इतना सा बोल पाया ,

दिल की गहराइयों से बहुत -बहुत धन्यवाद ,

बस आप ही हो जो मुझे गंभीरता से पढ़ते हो।

Thursday, August 11, 2022

प्रेम गति

 

" मांगो , राधा -कुछ भी माँगो ,

मैं तुम्हे सब कुछ दे सकता हूँ ,"

द्वारकादीश बोले बूढ़ी राधा से ,

राधा एकदम निहार रही थी ,

द्वारकादीश में "कान्हा " ढूँढ रही थी ,

खोई हुई मग्न यादों में ,

" माँगो ,राधा , माँगो " से चेती थी ,

कृष्ण आप द्वारकादीश हो ,

जानती हूँ -सब दे सकते हो ,

मैं “द्वारकादीश” से कुछ नहीं चाहती ,

"कान्हा " बन कुछ दे सकते हो तो बोलो ,

बँसी पर क्या वही तान छेड़ सकते हो ?

कान्हा ने मुरली अधरों से लगायी ,

तान छेड़ी राधा सुध-बुध खो बैठी ,

कान्हा बंद चक्षु सुर छेड़ गए ,

स्वरलहरियों में राधा समाई ,

नेत्र खुले जब द्वारकादीश के ,

राधा कहीं नजर न आई ,

ध्यान गया जब बाँसुरी पर ,

हल्की बाँसुरी जरा भारी पाई ,

कृष्ण हौले से मुस्कराये ,

राधा -कृष्ण के प्रेम ने अंततः गति पायी। 

 

( ऐसा वर्णित है कि राधा वृद्धावस्था में कृष्ण से मिलने द्वारका गयी थी और वही उनके अलौकिक और दिव्य प्रेम का पटाक्षेप हुआ था , जो भौतिक न होकर आध्यात्मिक प्रेम था। )

 


Sunday, July 31, 2022

गजब

बड़ा गजब खेला चल रहा है ,
जिसे मौका मिले वो रेल रहा है ,
जहाँ देखो वहाँ अजब शोर हो रहा है ,
सियारों की बारात में शेर नाच रहा है ,
छीना झपटी का खुला खेल चल रहा है ,
बाजार इश्तहारों से अटा पड़ा है ,
नकली सामानों का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है ,
असली नेता , नकली नेता सब गड़बड़झाला है ,
घरों से नोटों का अम्बार निकल रहा है ,
सामाजिकता सिमट कर एक टुनटुने में आ गई ,
सोशल मीडिया का हर जगह बवाल चल रहा है ,
जनता की हाय कौन सुने यहाँ ,
कोई "भक्त " , कोई " चमचा " में तुल रहा है ,
असमंजस ही असमंजस है हर जगह ,
बस वो चौराहे पर बैठा पागल - दिल खोलकर हँस रहा है।   

Saturday, July 16, 2022

हवा का एक झोंका

आया हवा का एक झोंका ,

ज़िन्दगी किताब को झकझोर गया ,

एक एक पन्ना जैसे ,

खुदबखुद खुलने लगा।

 

किसी पन्ने में सिसकियाँ ,

किसी पन्ने से खुशियाँ झरने लगी ,

कही से बचपन झाँक रहा ,

कहीं लड़कपन ने अंगड़ाई ली।

 

कही दोस्ती की कसमे खाई ,

किसी कोने पर वो पहले प्यार की अंगड़ाई ,

कुछ फूल जो सूख चुके थे उसकी निशानी ,

किसी पन्ने पर  जुदाई।

 

मुड़ा हुआ वो पेज भी आया ,

जिस पर लिखी थी एक अधूरी कहानी ,

लौटकर आऊंगा कभी मुड़कर ,

सोचा था पूरी करूँगा वो कहानी।

 

साल दर साल वो लिखावट में अंतर ,

सपनो के पीछे हकीकत का वो अस्तर ,

कुछ पाने की खातिर कुछ छूटने का मंजर ,

                                                      उस हवा ने टटोल दिया मेरा मन मंतर।


Monday, June 27, 2022

सोहबत

 

सफर है ये ज़िन्दगी , कुछ कदम दे दे।

खोने -पाने का मसला नहीं , कुछ यादें दे दे।1। 

 

दूर निकल आया हूँ , वापसी का कोई हल दे दे। 

छूकर देख लिया सब , सच्चा कोई अर्थ दे दे।2।

 

भागते -भागते थक गया , थोड़ी छाँव में आराम दे दे । 

बहुत शोर है अंदर -बाहर , एक नींद सुकून की दे दे ।3। 

 

यूँ तो गुजरा नहीं वक्त अभी, एक नयी उम्मीद दे दे।

चलना तो अभी बहुत है ,  तू अपनी सोहबत दे दे ।4।

 

अब मुझे मोहब्बत नहीं , सोहबत दे दे।

इल्म अब इश्क का नहीं , जरा वक्त दे दे ।5। 

 

Thursday, May 26, 2022

बरगद

 

एक चौराहे का बरगद ,

सब देख रहा था ,

बरगद था , इसीलिये बचा था ,

समय का इक लम्बा दौर ,

उसके चारों ओर मढ़ा था ,

हर झूलती शाख उसकी ,

इतिहास की गवाह थी ,

हर जड़ पर जैसे उसके ,

शताब्दियाँ गढ़ी थी ,

हर दौर की निशानियाँ ,

उसके तनों में अंकित थी ,

वो बूढ़ा बरगद ढह जाना चाहता था ,

उसने हवाओं से मिन्नतें की थी ,

न जाने कितने जीवों का आसरा वो ,

उसे शिकायत सिर्फ इंसानो से थी ,

इंसानी चरित्र को वो रोज़ ,

बदलते देख रहा था,

जिस डाल पर बैठा वो ,

उसी को काटते देख रहा था,

अब वह अपनी जड़ें तक सूखा देना चाहता था ,

पता है उसको अब ,

उस जगह को भी खुदना है अब ,

जहाँ वो सहस्त्रों साल से खड़ा था ,

एक नयी सड़क गुजरनी है अब वहाँ से ,

बुलडोजरों की धड़धड़ाहट से ,

वो अब धीरे -धीरे सूख रहा था।


Saturday, May 21, 2022

विश्वास

 

गर इच्छा शक्ति मजबूत तो डर वाजिब नहीं।

मन के विश्वास के सामने कोई मुश्किल नहीं ।1।

 

आत्मबल ने लिखी है विजय की इबारते कई।

तप कर ही निकलता है हीरा खदानों से कहीं ।2।

 

मुश्किलें तो आयेंगी कदम दर कदम पथ पर। 

करे पार बाधाएँ जो विजेता कहलाता भी वहीं ।3।

 

परिस्थितयाँ जाँचती है , तोलती है , परखती है । 

गिरे , संभले , चले - जीवटता की पहचान यही ।4।

 

ज़िन्दगी सिर्फ इक बार मिली है , महसूस कर। 

सार्थक तभी जब पदचिन्हो पर चले कोई ।5। 

 

Thursday, May 12, 2022

शाम

 

हर ढलती शाम में ,

सूरज को निहारता हूँ ,

दूर , बहुत दूर ,

उसको ढलते देखता हूँ ,

अँधेरे के कोहरे को ,

धीरे -धीरे बढ़ते देखता हूँ ,

फिर सब ओर कालिमा ,

जुगनू जैसे चमकते ,

आसमां के सितारे देखता हूँ ,

जीवन कितना अद्भुत ,

संभावना भरा ,

रोशनी और अन्धकार ,

के दहलीज पर खड़ी ,

एक देह को ,

अंतर्मन की पुकार ,

पर अपना रास्ता चुनते ,

देखता हूँ।  

Monday, April 11, 2022

सच

 

मुझे "सच " लिखने में डर लगता है ,

क्यूँकि "सच" चीथड़े कर देता है झूठ के ,

नकाब हटा देता है चेहरों से ,

खोल देता है परत दर परत झूठ की ,

और सब " उजाला " कर देता हैं ,

लेकिन इस उजाले को देखने की ,

ताकत किसमे बची है अब ,

हमें तो अब झूठ में जीने में ,

मजा आने लगा है और ,

वही सच लगने लगा है ,

जो भी लिखना चाहता है "सच",

उसकी बातों पर किसको अब विश्वास है ,

न जाने क्यों फिर भी कुछ सिरफिरे ,

सच की तलाश में भटकते है ,

और फिर एक दिन गुमनाम ,

जीवन जीने को मजबूर होते हैं,

पता सबको हैं , अंत में " सच "

एक न एक दिन उभर ही आयेगा ,

अँधियारे को मात देकर ,

झक "उजाला " कर जायेगा ,

मगर इस अंतराल में ,

"झूठ " अपनी बाजी जीत जायेगा।