Friday, September 11, 2020

उद्धव और गोपियाँ

 


महाज्ञानी उद्धव पूछे ,

"तुम प्रेम कैसे कर सकती हो श्रीकृष्ण से ,

जब तुम्हे पता है वो हासिल नहीं  ,

कर लो तुम जितना जतन ,

 श्रीकृष्ण तुम्हारे कभी नहीं । "

 

एक गोपी बोली ,

" उद्धव जी , आपको किसने बोला

हमें प्रेम  करने के लिए कृष्ण चाहिए ,

हमने कृष्ण से कभी प्यार किया ही नहीं ,

कृष्ण तो भगवान् है ,

हम जानते है - वो हमें हासिल नहीं ,

हमने तो कान्हा से प्यार किया है ,

जो बाँसुरी बजाता था ,

हमारी पानी की मटकियाँ  फोड़ता था ,

और हमारे कपड़े चुराता था ,

हम तो द्वारका वाले श्री कृष्ण को जानते ही नहीं ,

हम तो माखनचोर से प्रेम करते है ,

तुम्हारे श्रीकृष्ण से नहीं। "

 

दूसरी सखी बोली ,

" कह देना उद्धव जी अपने श्रीकृष्ण से ,

भूल जाए हमें , हम द्वारका  कभी आएंगे नहीं ,

हम तो बृज की गलियाँ ही घूमेंगी ,

जहाँ फिरा करता था नन्द यशोदा चितचोर कहीं ,

मुरली अपनी यही छोड़ गया कान्हा हमारा ,

उसकी तान से झूमते है हम सभी ,

इन गलियों में उसका प्रेम अब भी बरसता है ,

तुम क्या जानो उद्धव जी ,

प्रेम एकतरफा भी सम्पूर्ण होता है,

और फिर प्रेम तो प्रेम है ,

भौतिकता से बहुत परे होता है,

साँसो में भरा होता है,

पाने , न पाने की चिंता से मुक्त ,

दिल में हमेशा जीवित रहता है। "

 

उद्धव जी अपना व्यावहारिक ज्ञान भूल गए ,

इस प्रेम के आगे नतमस्तक हो गए ,

प्रेम एक अबूझ पहेली ,

श्रीकृष्ण के सन्देश को समझ गए।

Monday, September 7, 2020

संघर्ष

किसी का भी संघर्ष किसी से कमतर नहीं ,

हर शख्श का जीवन किसी कहानी से कम नहीं,

जिजीविषा का पर्याय है हर कोई यहाँ ,

अपने अपने स्तर का विजेता हर कोई ।  

 

सफलता का मापदंड सबके लिए अलग अलग ,

एक तराजू से तोल सही नहीं ,

ज़िन्दगी का रास्ता सबके लिए अलग ,

जो अपनी क्षमताओं से जी गया , वही विजेता , वही सफल। 

 

किसी की किसी से प्रतियोगिता नहीं यहाँ ,

सबका मुकाम , सबकी मंजिल अलग ,

मुकद्दर और कर्मो का सामंजस्य है ,

जो संघर्ष करे , सफल वही , विजेता वही।