Wednesday, December 26, 2018

नवोदय तुझे प्रणाम




ऐ मेरे स्कूल तुझे शुक्रिया नहीं कहूंगा ,
क्यूंकि तुम मुझसे अलग कभी हुए ही नहीं ,
तुझे ही जीता हूँ मैं आज भी ,
मन तो तेरे आँगन छोड़ आया था तभी। 

तेरी आँगन की मिटटी की महक ,
आज भी याद है मुझे ,
तेरी दीवारों पर मेरे लिखे शब्द ,
पता है मेरी याद में छुपाये है कही। 

मेरी शैतानियों को याद कर ,
सिसकता है तेरा रोम रोम भी ,
मेरी खिलखिलहाट गूंजती है ,
तेरे गलियारे में आज भी। 

हाँ , ज़िन्दगी के सफर में बहुत आगे निकल गया हूँ ,
तेरे नाम की विरासत जो लिए चल रहा हूँ ,
बढूंगा और आगे बढूँगा ,
सीखा तेरे आँगन से ही। 

मगर , ये तुझे भी पता है ,
और मुझे भी ,
हम दोनों कभी न अलग हुए थे , न होंगे
बस तू मेरी यादों को संभाले रखना ,
मैं तेरे नाम का परचम लहराता हूँ कहीं। 

बस तेरे जर्रे जर्रे को प्रणाम करना चाहता हूँ ,
नमन हर कण कण को करता हूँ ,
एहसानमंद हूँ तेरा हर पल ,
बस खुद को ' नवोदयन ' करना चाहता हूँ। 


Wednesday, December 19, 2018

शिखर


वो यूँ ही शिखर पर नहीं पहुँचा होगा ,
कितना संघर्ष ,
कितना त्याग ,
कितने ताने ,
कितनी मेहनत ,
हर सीढ़ी पर अपना कलेजा रखा होगा ,
वो यूँ ही शिखर पर नहीं पहुंचा होगा। 

वो जज्बा ,
वो हिम्मत ,
वो जूनून ,
वो पागलपन ,
वो खुद पर विश्वास हर कदम रखा होगा ,
वो यूँ ही शिखर पर नहीं पहुंचा होगा। 

सीखने की ललक ,
हर हार से सबक ,
निराशा में आस की किरण,
हार में जीत की झलक,
हर परिस्थिति से पार पाया होगा ,  
वो यूँ ही शिखर पर नहीं पहुंचा होगा।  

Thursday, December 13, 2018

जीत



हारा नहीं तू अभी ,
वक्त अभी फिसला नहीं ,
हाँ, थोड़ा ताकत और लगानी पड़ेगी ,
अगर तुझे कोई गुरेज नहीं ,
वो देख , मंज़िल तुझसे मिलने के लिए ,
बाहें खोले है खड़ी। 

कौन आगे निकल गया ,
किसने क्या पा लिया
ये उनकी मेहनत और किस्मत ,
तूने भी मेहनत की ,
थोड़ा सा ही शायद रह गयी कमी। 

चल , उठ और फिर खड़ा हो ,
उम्र कोई बाधा नहीं ,
होंगी परिस्थितियां विपरीत भले ही ,
कर्मयोद्धा बन ,
लड़कर जीतना ही सही। 

याद रख इतिहास वो ही रचते है,
जो जज्बा और जूनून रखते है ,
कर्मो से अपने जो तूफ़ान उठाते है ,
बस वही याद रह जाते है। 



Monday, December 10, 2018

सुनो , आपसे कुछ कहना है



सुनो , आपसे कुछ कहना है
हाँ , हाँ , आपसे से ही ,
इधर उधर बगले मत झांको ,
तुम्हारे सिवाय और किसी से नहीं ,
आज और अभी कुछ कहना है। 

तुम जो इतना व्यस्त दिखा रहे हो खुद को ,
उतना तुम हो नहीं ,
जबरदस्ती की कोशिश मत करो ,
आज मुझसे पल्ला छुड़ाने की। 

सबके लिए समय है तुम्हारे पास ,
क्या मेरे लिए कुछ भी नहीं ,
चौबीस घंटे साथ रहता हूँ तुम्हारे ,
फिर भी तुम्हे मेरी कोई क़द्र नहीं। 

किसी दिन रूठ गया ना ,
बहुत पछताओगे ,
ये जो नौटंकी रोज करते हो ना ,
फिर कभी न कर पाओगे। 

दिल हूँ तुम्हारा ,
कभी मेरी भी सुन लिया करो ,
कभी कभी मुझसे भी ,
एकांत में मिल लिया करो। 

बहुत समय से हम एक दूसरे से  मिले नहीं ,
इसलिए तुम खुश कम और परेशान ज्यादा रहते हो ,
दिमाग के बहकावे में हर समय गुलाम से रहते हो ,
मिलो कभी  हम तुम्हे " खुद से " मिलवाते है।  

प्रश्न



अब स्वर्ग से नहीं उतरेंगे
फरिश्ते ,
और न पाताल से जन्मेंगे
राक्षस,
इसी पृथ्वी पर ,
धरती और आकाश के बीच
जन्मेंगे ,
पनपेंगे ,
और ,
नियति को पाएंगे ,
सब ,
इर्द गिर्द ,
मौजूद रहेंगे ,
हर वक्त ,
फरिश्ते ,
और राक्षस ।

नजर पैनी चाहिए ,
जो पहचान सके ,
कौन फरिश्ता
और कौन राक्षस ,
न रंग में भेद होगा ,
न फ़रिश्तो के पर होंगे ,
राक्षस अट्टहास नहीं करेंगे ,
बड़ी मुश्किल ,
पहचानने में ,
किसके अंदर छुपा क्या है ,
कौन छुपाये बैठा है खंजर ,
किसकी नीयत क्या है ?
किसी को नहीं खबर ,
मानुष के रूप में ,
फरिश्ता भी है ,
और राक्षस भी। 

तय नहीं है अब
श्वेत वस्त्र में फरिश्ते ही होंगे ,
काले कपड़ो में सिर्फ ,
राक्षस ही मिलेंगे ,
बदल गयी है दुनिया ,
बदल गया है समाज ,
खुद ही संभल कर ,
चलिए ,
खुद ही पहचानना होगा ,
कौन फरिश्ता ,
और
कौन राक्षस,
कौन दोस्त ,
और ,
कौन दुश्मन। 

हां , मुश्किल है थोड़ा ,
मगर असंभव नहीं ,
खुले रखिये अपने पाँचो इन्द्रियाँ ,
संकेत मिलेंगे वहीँ,
पहचान जायेंगे आप ,
कौन गलत  ,
और ,
कौन सही।


Wednesday, December 5, 2018

मुस्कराइये , आप ज़िंदा है


माना की अँधेरे बहुत है , 
मगर रोशनी के लिए तो , 
एक जुगनू ही बहुत है।  

माना की दुश्वारियाँ बहुत है , 
मगर मुस्कराने के लिए तो , 
एक बहाना ही बहुत है।  

माना की हारे बहुत बार है , 
मगर पीठ थपथपाने के लिए , 
एक कदम भी चले है तो बहुत है।  

माना की कोई साथ नहीं है , 
मगर हौंसला देने के लिए , 
जूनून और ज़िद्द ही बहुत है।  

माना की सारे दुश्मन है , 
मगर अब भी वो बचपन का दोस्त ,
जिसे तुम भूल गए हो , बहुत है।  

माना की रातों की नींद गायब है , 
मगर सोने के लिए , 
माँ की  थपकी की याद ही बहुत है।  

माना की ज़िन्दगी थोड़ा कठिन है , 
मगर स्वस्थ हो , 
कदम बढ़ाने के लिए यही बहुत है।  

Saturday, December 1, 2018

मेरे स्कूल की ईमारत



खंडहर हो गया बचपन ,
बस कुछ निशान बाकी है ,
नवनिर्माण के लिए देखो ,
एक इतिहास दफ़न हो गया। 

ये दीवारे जो कभी बोलती थी ,
ये गलियारा जो गुंजायमान था ,
इन खम्बो ने सिसकियाँ सूनी थी कभी ,
इन दीवारों की सेल्फो में किताबे सजी थी। 

जमींदोज हो गयी ये ईमारत ,
जो कभी हमारे लिए महल हुआ करती थी ,
जर्रे जर्रे पर लिखी हुई थी हमारे सपनो की कवायद ,
आज सुनसान अपने हालात पर रो रही थी। 

लेकिन ये तो शास्वत सत्य है ,
एक न एक दिन इसे ढहना ही था ,
नव निर्माण के लिए रास्ता देना ही था ,
एक इतिहास बनना ही था। 

शुक्रिया और नमन जर्रे जर्रे को ,
खुद ढहकर हमें बना दिया ,
हमारे सपनो को पूरा करते करते ,
देखो पत्थर भी गिरकर हमारे दिल में "घर " कर गया।


फोटो आभार - ओम , ज न वि भूतपूर्ण छात्र 

Thursday, November 22, 2018

मेरे दस "बब्बर " शेर


कुछ सबक ज़िन्दगी ने सिखाने थे ,
वो हर कदम पर परीक्षा लेती रही ,
हम भी दिलेर इतने ,
हर परीक्षा में पास होते रहे। 

लेती रह ज़िन्दगी
हर कदम पर इम्तेहान कई ,
तुझे भी पता है हार नहीं मानूंगा मै ,
तू भी तो थकेगी कहीं। 

उड़ चले परिंदे पंख लगते ही ,
पुराने घौंसले से अब कहाँ उन्हें मोह था ,
अब आ गया था मौसम नया ,
नया बेहतर घौंसला जो बसाना था।

तू अपनी फिक्र कर "आनन्द ",बाकि दुनिया मौज में है।
तेरी ही नजरो में खोट है शायद , सब जगह तो चैन है। 

कुछ किताबें रटकर जीवन परीक्षा में उतरे तो थे ,
मगर यहाँ तो हर प्रश्न का उत्तर किताबो से जुदा निकला। 

अच्छा हुआ की उन्होंने बेवफाई की ,
हम तो उन्ही को अपनी दुनिया मान बैठे थे ,
उतरा जब ये चश्मा ,
दुनिया में और भी कई रंग थे। 

रुखसती से पहले ये जरूर बता देना ज़िन्दगी ,
इतना दौड़ाया क्यों था ,
गुजर सकती थी जो रातें सुकून में ,
जगाया क्यों था। 

हम तो नियम से चल रहे थे ,
उसूलो को सच मान बैठे थे ,
हमें बड़ी देर से पता चला ,
नियम और उसूल हर एक के अपने अपने थे। 

अभी चर्चे न हुए तो क्या हुआ ,
दस्तूर जमाने का है
ज़िंदा रहते कोई पूछे , न पूछे
चले गए तो फोटो में हार जरूर है। 


१०
ये नौकरी है साहब , नौ "कर" भी देने है
बाकि जो बच जाये  , बस वही अपने है।    

Thursday, November 15, 2018

वो तुम्हारे साथ है।


जब सारे रास्ते बंद दिखे , 
उम्मीद की हर किरण धुले , 
जीवन एक बोझ सा लगे , 
तब एक हलकी सी दस्तक सीने में , 
आशा बनकर उभरे , 
तब समझ जाओ , 
वो तुम्हारे साथ है।  

जब हिम्मत टूटने लगे , 
हौंसला साथ छोड़ने लगे , 
सब कुछ बड़ा बेमानी सा लगने लगे , 
अचानक एक आँसू गिरकर , 
चमकने लगे , 
दिल थोड़ा सा हल्का लगने लगे , 
तब समझ जाओ , 
वो तुम्हारे साथ है।  

घुप्प अँधेरा हो , 
कहीं कुछ दिखाई न दे , 
सब अमावस की काली रात लगे , 
तब कही दूर एक टिमटिमाता जुगनू भी दिखे , 
तब समझ जाओ , 
वो तुम्हारे साथ है।  

जब सब साथ छोड़ दे , 
अकेला ये जहाँ लगने लगे , 
सारे रिश्ते नाते दूर के लगने लगे , 
तब आपको माँ का चेहरा  दिखे , 
तब समझ जाओ , 
वो तुम्हारे साथ है।

जब खुद के वजूद पर संदेह हो जाये ,
अपने होने का अर्थ समझ न आये ,
सबसे बुरा ख्याल मन में आये  ,
तब आपको किसी लाचार और मजबूर का चेहरा याद आये ,
तब समझ जाओ , वो ज़िन्दगी का दाता
आपके साथ है।    

Image source - google

Tuesday, November 13, 2018

ख्वाइशें और हकीकत


ख्वाईशो का समंदर टकरा गया इक दिन ,
हकीकतों की चट्टानों से ,
ऐसा मंथन हुआ दोनों का ,
दोनों में ठन गयी ,
थक गए जब दोनों , 
सुलह के रूप में ,
एक नदी की धार निकली ,
समंदर से पानी लेकर ,
चट्टानों के बीच से ,
अपना रास्ता बनाकर ,
वह सपाट मैदानों में बह निकली ,
स्वछंद और मदमस्त बहाव से ,
किनारो को मुस्कान देकर ,
वह जीवन सागर से मिलने चल दी। 

अब न उसपर ख्वाईशो का बोझ है  ,
हकीकत से  वास्ता जोड़ लिया है ,
अब तो उसे अपनी रौ में बहना है  ,
जो मिलना है  रास्ते में ,
अपने में समेटकर  तरना है। 

कितना सरल है जीवन का यूँ बहना ,
न जाने कठिन कैसे हो जाता है ,
फिर वही मंथन , फिर टकराव,
जीवन का बहाव थम सा जाता है।

ख्वाईशो और हकीकत में सामंजस्य रखिये ,
जीवन को सरल और बहने दीजिये ,
आपको भी जीवन जीने का मजा आएगा ,
जीवन भी अपना अर्थ पा जायेगा।

Thursday, November 1, 2018

शुभ और मंगलमय दीपावली



फिर
दिवाली
आयी है
खुशियों की
सौगात लायी है ,
हारेगा हर बार
तिमिर ,
ये सन्देश
लायी
है।
जगमग करते दीये , ये कहानी कहते है
रोशन रहे ज़िन्दगी , खुद जलकर प्रकाश भरते है ,
पूजा , पकवान से सुशोभित घर , दीप्तिमान हो उठता है मन ,
हर्षित -पुल्लकित सबका मन , हर घर बरसाए लक्ष्मी जी धन ,
बच्चे हर्षोल्लित , बड़ो का श्रंगार ,आतिशबाजी होती जोरदार ,
घर स्वागत के लिए तैयार ,खुशियों -आओ -खोल दिए द्वार ,
अमावस की काली रात को ,रोशनी जगमगाती है ,
दूर हटे अँधेरा , हर साल दिवाली आती है।

शुभ दिवाली।

Sunday, October 28, 2018

वास्तविकता


अब बस  इतना ही ज़िंदा है हम ,
की सिर्फ अपनी फिक्र कर सके ,
दुसरो की चिंता वो खुद करे ,
उनसे कोई लेना देना क्यों रखे हम।

ये मानव जीवन का उत्थान है या पतन ,
आधुनिकता के नाम पर भौंडापन ,
किसी का दिल अब दूसरे के लिए नहीं पसीजता ,
अपने काम से काम रखो - बार बार कहता है मन।

भीड़ में भी अकेला सा हो गया है ,
सहमा सहमा और डर से किस कदर मन ,
बात बात में नाक चढ़ रही है ,
कितना स्वार्थी हो गया है जीवन।

हर चीज  समेटने को आतुर ,
भाग रहा हर समय तन मन ,
आँखे उनींदी सी , बैचैन मस्तिष्क
थका हुआ शरीर , सिसकियाँ ले रहा जीवन।

भरोसा सब से उठ रहा ,
नाते -रिश्ते बोझ लगने लगे ,
तिलिस्मी सी दुनिया में ,
हम कैद होने लगे।

साँसे अब भी ले रहा है जीवन ,
हर सांस अब बनावटी सी क्यों लगे ,
कुछ तो घुल गया है हवाओ में ,
हर वक्त  घुटन में जीने क्यों लगे ?

वक्त अभी है ठहरा ,
कह रहा - चेत सके तो चेत ले ,
सदियाँ गवाह है ,

धरती वही रही , हमारेकर्म” सभ्यताएँ ले डूबे।

चित्र साभार - गूगल 

Tuesday, October 23, 2018

जरुरत



ज़िन्दगी वादा है तुझसे ,
ऐसा जियूँगा तुझे ,
की तू भी रश्क करेगी ,
जिस हाल में भी रखेगी तू ,
हर हाल में मुस्कराता मिलूँगा मैं।  

ले ले इम्तेहान कई ,
गुरेज नहीं अब कोई भी , 
एक ही धागे से लिपटे है हम दोनों ,
तेरी उठापटक से अनजान नहीं हूँ ,
बस तेरा मंतव्य समझने लगा हूँ मैं।   

मुझे तेरी जरुरत , 
तू भी मुझबिन अधूरी सी ,
चल " मैं " से "हम " हो जाते है , 
समाहित हो जाते है इस कदर ,
न तू कभी अलग दिखे और न मैं।