Tuesday, November 13, 2018

ख्वाइशें और हकीकत


ख्वाईशो का समंदर टकरा गया इक दिन ,
हकीकतों की चट्टानों से ,
ऐसा मंथन हुआ दोनों का ,
दोनों में ठन गयी ,
थक गए जब दोनों , 
सुलह के रूप में ,
एक नदी की धार निकली ,
समंदर से पानी लेकर ,
चट्टानों के बीच से ,
अपना रास्ता बनाकर ,
वह सपाट मैदानों में बह निकली ,
स्वछंद और मदमस्त बहाव से ,
किनारो को मुस्कान देकर ,
वह जीवन सागर से मिलने चल दी। 

अब न उसपर ख्वाईशो का बोझ है  ,
हकीकत से  वास्ता जोड़ लिया है ,
अब तो उसे अपनी रौ में बहना है  ,
जो मिलना है  रास्ते में ,
अपने में समेटकर  तरना है। 

कितना सरल है जीवन का यूँ बहना ,
न जाने कठिन कैसे हो जाता है ,
फिर वही मंथन , फिर टकराव,
जीवन का बहाव थम सा जाता है।

ख्वाईशो और हकीकत में सामंजस्य रखिये ,
जीवन को सरल और बहने दीजिये ,
आपको भी जीवन जीने का मजा आएगा ,
जीवन भी अपना अर्थ पा जायेगा।

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