Thursday, August 22, 2019

आओ , कृष्णा



मानव मूल्य बिखर गए है ,
जीवन पथ भटक गया है ,
सच पर हो गया है झूठ भारी ,
जन्म लो फिर कान्हा , संकट भारी। 

कंसो की हिम्मत बढ़ गयी है ,
दुर्योधनो की बाढ़ आयी ,
आँखे मूदे भीष्म कई ,
धृतराष्ट्रो को अब तक बात समझ नहीं आयी। 

अर्जुन भूल चूका है लड़ना ,
भीम का खून नहीं खोलता ,
शिशुपालो को कोई नहीं रोक रहा ,
शकुनियों का खेल जारी। 

प्रेम के पैमाने बदल गए है ,
स्वार्थ ने अपनी जगह ले ली ,
कर्म से मोहभंग हो रहा ,
धर्म पथ पर चलना भारी। 

आओ , कान्हा , जन्म लो
गीता को फिर से कहना जरुरी ,
सो गए है अर्जुन सब ,
उनको जगाना है जरुरी ,
विश्वास फिर से जगे सत्य, धर्म पर ,
एक और महाभारत  जरुरी। 

 वादा तुमने ही किया था गीता में ,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ,
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ,
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ,
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे,
अब निभाना जरुरी। 

Sunday, August 18, 2019

स्याही और कलम




स्याही ने कलम से पूछा , 
शब्द तो मुझसे उकरते है पन्ने पर ,
मगर बढ़ाई तेरी ही क्यों ? 
कलम  ने उत्तर दिया , 
तुझे अर्थपूर्ण आकार देता हूँ , 
खुद घिसकर  , 
वर्ना देख ले , 
एक बार कोरे पन्ने में यूँ ही बिखर कर।    

Tuesday, August 13, 2019

स्वतंत्रता की सीमा




स्वतंत्रता की भी एक सीमा है , 
जो बस एक सूत से बँधी है , 
महीन , 
नाजुक ,
कोमल , 
बस छूने भर से टूटती है।  

स्वतंत्रता है , 
अपने निर्णय ,
खुद अपना भाग्यविधाता बनने की , 
अपने कर्मो से , 
खुद का संसार रचने की।  

उस सीमा के बाहर , 
दूसरे की स्वतंत्रता शुरू होती है , 
जितनी बार , 
वो सूत टूटती है , 
उतनी बार स्वतंत्रता , 
अपना दम तोड़ती है।  

Saturday, August 10, 2019

सफर




यूँ तो चलना अकेले ही होता है ,
इस सफर में जिसे ,
हम ज़िन्दगी कहते है ,
मगर राहे - दोराहे पर ,
मिलते चले जाते है ,
कुछ साथी ,
चलते है कदम दर कदम ,
फिर कुछ छूट जाते है ,
और कुछ नए मिल जाते है ,
कुछ सबब दे जाते है ,
कुछ सबक ,
कुछ रास्ते सपाट से ,
कुछ में चुभते कंकड़ ,
कुछ खट्टी ,
कुछ मीठी यादो से ,
चलता रहता है सफर ,
तलाश में मंजिल की।