Wednesday, March 7, 2018

प्रार्थना



हे ! रचनाकार जगत के ,
नमन और अभिनन्दन , 
चराचर जगत के स्वामी , 
हाथ जोड़कर सादर वंदन।  

लोभ , माया , क्रोध , अहंकार से ,
चहुओर हो रहा क्रंदन ,
करने कब आओगे इसका हरण , 
कैसे मौन हो ? हे ! रघुनन्दन।  

ज्ञान पर अज्ञान भारी , 
शुभ नहीं है ये लक्षण , 
सिसक रही है जगत जननी , 
हो रहा रोज चीरहरण।  

सेवक भक्षक बन गए , 
भूल गए सब ईमान धर्म ,
झूठ की जय जयकार हो रही , 
सत्य तोड़ रहा है दम।  

तन्द्रा तोड़ो , सेज छोड़ो 
अवतरित हो अब भगवन ,
मूल्यों की स्थापना के लिए , 
छेडो फिर एक " महाभारत " का रण।