Monday, March 27, 2023

मौसम

 

मौसम भी आजकल गजब फिरकी ले रहा है ,

इंसानी फितरत को बराबर टक्कर दे रहा है ,

बस अभी एक कमी रह गयी है  फिर भी ,

मौसम फिर भी बदलने की पूर्वसूचना दे रहा है। 

 

गिरगिटों ने अब रंग बदलना छोड़ दिया है ,

इंसानों ने उनसे ज्यादा रँग बदलना सीख लिया है ,

आरोप है उनका - वो सुरक्षा के लिये रंग बदलते है ,

इंसान तो फायदे के लिये रंग बदल रहा है। 

 

साँपो ने भी दुहाई देनी शुरू कर दी है ,

उनके डसने का असर कम हो रहा है ,

इंसानी जुबान में कही ज्यादा विष है अब ,

बिना घाव किये ही तार -तार कर रहा है। 

 

मिट्टी  के लिये बबूल उगाना आसान है अब ,

उर्वरा शक्ति का तो सब नाश हो रहा है ,

जिस पानी को बचाना चाहिये बूँद -बूँद ,

वही पानी जहर बन पाताल रिस रहा है। 

 

शुद्ध हवा की चाह मन में , भटक रहा है ,

न जाने किसको -किसको कोस रहा है ,

जिम्मेदारी किसके मत्थे डाले हालातों की ,

खुद को पाक साफ़ घोषित कर रहा हैं। 

Thursday, March 9, 2023

इक पहाड़न

  

बुराँश के फूलों की पंखुड़ियों से ,

उसके सुर्ख गुलाबी गाल ,

उलझी सी लटों को एक कपडे से ,

बाँध रखी हो जैसे गंगा की धार ,

चंचल हिरणी सी उकाव -हुलार में ,

थिरकते -ठुमकते उसके पाँव ,

मेहनत के पसीने से ढुलकती ,

एक बूँद मोती सी चमकती माथे पर ,

चेहरे पर एक अलग मुस्कान ,

इक पहाड़न उतर रही पहाड़ से ,

लेकर सिर पर इक पहाड़ ,

पहाड़ो में और क्या आयेगा हिस्से ,

हर जगह तो है उसके लिए पहाड़। 

 

धार -धार गूँजते है उसके गीत ,

आँसू बहते उसके गधेरे -गाढ़ ,

उसकी आहट पहचानते रास्ते ,

डुंग -डाव को सुनाती मन की बात ,

फुर्र से उड़ा देती चिंताओं को ,

जैसे गिरे एक डुंग क्षिणी में ,

सूपे में भरकर छाँट लेती हिस्से के ,

कुछ सुकून के पल ,

छटक देती बाकी बेकार,

साँझ होते समेट लेती सब ,

अपने पहलु में - सारा घर संसार। 

 

इक पहाड़न मुझे रोज़ दिखती है ,

चढ़ते-उतरते अपने हिस्से का पहाड़ ,

पहाड़ को भी झुकते देखता हूँ ,

उसके हौंसले के आगे कई बार ,

वो पहाड़न मुस्करा कर समझाती ,

जीवन का एक अनकहा सार ,

जैसे ,जहाँ भी, कैसा -जीवन हो ,

उकाव -हुलार करते रहो पार। 


कुमाउँनी शब्द और अर्थ :  

उकाव - चढ़ाई , हुलार - उतराई , ढुंग डाव- पत्थर

 

Friday, March 3, 2023

कुरक्षेत्र

  

आमने -सामने खड़ी थी ,

दोनों तरफ सेना अपार ,

अस्त्र -शस्त्र से लैस ,

कुरु वंश के सब आधार।

 

एक तरफ पांडव संग द्वारकादीश ,

दूसरी तरफ कौरव संग देवव्रत " भीष्म " ,

सज्ज हुई दोनों सेनाएँ , तैयार करने रण ,

नहीं दिख रहा  दूर -दूर तक कर्ण।

 

समय की कैसी अजब लीला है ,

लीलाधर खुद हाँक रहे अर्जुन का रथ ,

एक जिद्द ने झोंक दिया सब ,

अब क्या अर्थ और क्या अनर्थ।

 

शकुनि बत्तीसी निपोरे ,

सपना हुआ उसका साकार ,

निर्बुद्धि दुर्योधन समझे ,

सेना उसकी अपार।

 

जमघट लगा योद्धाओं का ,

धुआँ -धुआँ सा फैला चारों ओर,

कुरुक्षेत्र का आसमां हुआ विकराल ,

अजब शांति थी दोनों ओर।

 

वीर एक से बढ़कर एक ,

सज्ज हुए मरने -मारने दोनों ओर ,

हाय विधाता ! युद्ध ही बचा अंतिम विकल्प ,

बहेंगी नदियाँ खून की अब ,चहुँओर।

 

कुरुक्षेत्र की भी क्या नियति है ?

उसको कलेजा रखना होगा ,

गिरेंगे जब महावीर उसकी छाती पर ,

न जाने कितनी बार कलेजा फटना होगा।

 

एक तरफ सात अक्षोहिणी सेना ,

दूसरी तरफ ग्यारह अक्षोहिणी धुरंधर ,

पांच योजन की भूमि पर ,

तय हुआ -होगा युद्ध भीषणतम।

 

वक्त भी ठहर सा गया ,

देख रहा सब आँखे फाड़ ,

जीत -हार की चिंता नहीं उसे ,

गवाह बनना है उसे इस बार।

 

कुरुक्षेत्र अपनी किस्मत को रोये ,

इस महासमर में बहेगी खून की धार ,

उसके माथे ही लिखा जायेगा ,

यही लड़ा गया महायुद्ध एक बार।

 

महज एक शंखध्वनि दूर ,

दोनों ओर खड़े मतवाले थे ,

कुरुवंश के दो धड़े -देखो ,

कुरुक्षेत्र में आ डटे थे।

 

युद्ध तो फिर युद्ध है ,

क्रोध मति सब हर लेता हैं ,

क्या धर्म -क्या अधर्म फिर ,

सब कुछ नोच लेता हैं।

 

फिर जब युद्ध ही मात्र विकल्प बचा हो ,

शक्ति ही शांति का द्वार खोलेगी ,

इस महायुद्ध के बाद तो न जाने ,

धरती भी कितने दिनों का शोक करेगी।

 

न जाने कितने बच्चे अनाथ होंगे ,

न जाने कितने सुहाग उजड़ेंगे ,

कहाँ , किसको ,कब अब फिक्र है ,

सज गया मैदान -महाभारत तय हैं।