Saturday, February 22, 2020

स्त्री प्रेम नहीं करती !


स्त्री प्रेम नहीं करती ,
सच है , स्त्री प्रेम नहीं करती ,
प्रेम उसको समझ नहीं आता ,
क्यूंकि प्रेम में जटिलता बहुत है ,
जो उसको सुहाता नहीं ,
फिर ,
स्त्री जब प्रेम में पड़ती है तो ,
वह "समर्पण " करती है ,
वह खुद को समर्पित करती है ,
अपने प्रेमी को ,
मगर समर्पण करने से पहले ,
वह परखती है ,
जांचती है ,
परीक्षा लेती है ,
और जब उसे लगता है ,
उसका मन गवाही देता है ,
तब वह प्रेम नहीं ,
"समर्पण " कर देती है ,
सब कुछ ,
एकाकार होने के लिए ,
अपने प्रेमी में बसने के लिए ,
इसीलिए वह ,
"समर्पण " करने से पहले ,
 वक्त लेती है,
"हाँ " कहने से पहले ,
वक्त लेती है ,
प्रेम उसके लिए ,
सिर्फ प्रेम नहीं होता ,
उसका संसार होता है ,
जहाँ उसकी मुस्कान ,
उसके दर्द , उसके आँसू
सब होते है। 

Sunday, February 9, 2020

ठूँठ



ठूँठ को देखकर ,
दया भी आयी और गर्व भी हुआ ,
सब कुछ दे दिया था उसने ,
फल , शाखाएं , छाया ,
मगर शायद और भी कुछ चाहिये था उससे ,
तना भी काट ले गया कोई ,
अब भी वो खड़ा है ,
कोई आएगा ,
तो ले जाये ,
इस अवशेष को भी ,
ताकि फिर शायद ,
उसके रिक्त स्थान पर ,
फिर उगे कोई नन्हा पौधा ,
पेड़ बन सके ,
या फिर ,
कोई सड़क बन सके ,
वो कोई बाधा न रहे ,
अब वो अतीत को याद ,
नहीं करना चाहता ,
क्यूंकि शायद अब नियति ,
उसकी यही थी,
बस उसका ये संतोष ,
उसकी पूँजी है ,
वो हर तरह से काम आया ,
नन्हे पौधे से लेकर ,
अंत तक ,
जितना हो सकता था - दिया ही ,
लिया शायद कुछ नहीं ,
सिवाय एक स्थान के ,
जहाँ वो खड़ा रहा सीना ताने ,
वर्षो वर्षो तक।

Sunday, February 2, 2020

रोज़ एक जीवन



डूबते सूरज के साथ जैसे ,
एक जीवन पूरा हो जाता है ,
तेरी रची महिमा  के आगे ,
सिर मेरा एक बार फिर झुक जाता है ,
फिर एक दिन का जीवन देने का तेरा शुक्रिया ,
रात को फिर अर्ध मृत्यु का आगोश छा जाता है ,
पहली किरण के साथ जब आँख खुलती है ,
तुझ पर विश्वास और अटल हो जाता है। 

फिर उम्मीदें , सपने जग जाते है ,
नवसंचार सामर्थ्य का नस नस में दौड़ जाता है ,
कदम खुद बखुद निकल पड़ते है ,
रात होने से पहले जैसे सब कुछ समेट लेना चाहता है,
हर भाव से जैसे जीवन गुजरता है ,
रोज़ , एक जीवन का आरम्भ और अंत हो जाता है।