Friday, January 19, 2018

लहर ( व्यंग्य )

बड़ी लहर है , 
कौन, किससे यहाँ कमतर है ,
मौके की तलाश में सब , 
न जाने कौन , कब सिकंदर है।  

बड़ी लहर है , 
सबके एक कीड़ा अंदर है , 
बिना हाथ पैर चलाये , 
काम हो जाये तो बेहतर है।  

बड़ी लहर है , 
सब नेता बनने पर तुले है , 
कोई आगे बढ़ जाये गर , 
उसकी टाँग खींचने में सब अड़े है।  

बड़ी लहर है , 
रोज़ नए नए मुद्दे उछलते है , 
बिना एक भी सुलझायें , 
सत्ता सत्ता खेल रहे है।  

बड़ी लहर है , 
महिलाएं सुरक्षित नहीं है , 
बच्चो का भविष्य खतरे में , 
उन्नति के आँकड़े रोज़ पेश हो रहे है।  

बड़ी लहर है , 
प्रदूषण की हर तरफ मार है , 
खुद की रक्षा के लिए , 
खुदा की सर्वश्रेष्ठ रचना एटम बम लिए तैयार है।  

Sunday, January 14, 2018

पुरानी डायरी

कुछ ढूंढते ढूंढते , 
मिली मुझे मेरी वह पुरानी डायरी , 
जिसे मैं शायद कब का भूल गया था , 
उसका कवर भी अब जैसे दम तोड गया था , 

हाथो से उस पर लगी धूल  झाड़ी , 
पहले पन्ना खोला , 
तो जैसे मुस्करा रहा था , 
कितने सालो के बाद साक्षात्कार , 
हो रहा था ,
पूछ रही थी शायद , 
कहाँ  थे " इतने साल " ? 

उस डायरी का मेरी ज़िन्दगी से बड़ा लगाव था , 
उसके हर पन्ने पर मेरा एक ख्वाब था , 
मेरी अल्हड़पन की ख्वाईशो का , 
वो पुलिंदा था , 
मेरी हसरतो का जैसे वो , 
पूरा चिटठा था।  

मेरी दोस्तों के हस्ताक्षरो से , 
किसी पन्ने पर वो डायरी सजी थी , 
मेरी अधपकी कविताओं के  , 
बोझ से वह मर रही थी।  

कुछ लैंडलाइन नंबर अब भी , 
उसमे चमक रहे थे , 
कुछ लोगो के पते , 
अब भी उसमे लिखे थे।  

कुछ पन्नो पर " गणित के सूत्र " ,
अब भी लिखे थे , 
कई पन्ने " हिंदी गानो " से , 
भरे थे।  

कुछ चिट्ठिया 'अन्तर्देशी पत्र ' की शक्ल में , 
पन्नो के बीच में दबी पड़ी थी , 
अंतिम पन्ने -मेरी पेंसिल से , 
बने चित्रों से अटे पड़े थे।  

किसी पन्ने में ख़ुशी के पल थे , 
किसी पन्ने में स्याह रंग थे , 
कोई पन्ना तो अब भी कोरा था , 
किसी पन्ने पर महान " प्रेरणादायी" विचार चमक रहे थे।    

एक पल जैसे सारा बीता बचपन जी गया , 
उन सुनहरी यादो में खो गया , 
जहाँ से चलकर अब मैं खड़ा था , 
उस डायरी के एक एक पन्ने पर अद्धभुत जीवन था।    

Monday, January 8, 2018

जनता जनार्दन, हाजिर हो !



लोकतंत्र  तुम्हारा बिना अधूरा , 
हर पांच साल में प्रमाण दो , 
लोकतंत्र के मतदान पर्व में , 
जनता जनार्दन हाजिर हो।  

चुनकर अपने प्रतिनिधि , 
अपनी रोटी पानी का जुगाड़ करो , 
देश को कुतर जायेंगे , 
जनता -तुम छोटी मोटी बातो में लगे रहो।  

कभी किसी बात पर बर्गलाएँगे , 
कभी समाज में डर फैलायेंगे , 
छोटी सी बात का बतंगड़ , 
मुद्दे की बात गटक जायेंगे। 

पाँच साल बाद हिसाब किताब नहीं देंगे ,
अगले पांच साल का घोषणा पत्र छपवायेंगे , 
जीत कर फिर घोषणा पत्र जलवायेंगे , 
जनता के , जनता से , जनता द्वारा ये प्रतिनिधि , 
 कुर्सी से पांच साल चिपक जायेंगे।  

फिर आयेगा चुनाव , बिगुल बजेगा 
लोकतंत्र का पर्व फिर सजेगा , 
मुनादी होगी बार बार , 
छोड़ छाड़ कर सब अपने काम , 
" जनता जनार्दन " हाजिर हो।  

आधी जनता वोट डालेगी , 
आधी उस दिन छुट्टी मनायेगी , 
वोट न डालने वाले फिर जंतर मंतर जायेंगे , 
सरकार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूकेंगे,
"जनता जनार्दन " हाजिर हो।  

(फोटो साभार - गूगल) 

Thursday, January 4, 2018

दिल्ली का दर्द


ये दिल्ली का मौसम ,
बहुत कुछ सिखाता है।

पहाड़ो में बर्फ गिरे ,
दिल्ली में हाड़ कंपा देता है।

राजस्थान में लू चले ,
यहाँ जीना मुहाल हो जाता है। 

दक्षिण में कुछ घटना घटे ,
जंतर मंतर भर जाता है।

पूरब की हर आँच का ,
सीधा असर इस पर होता है।

देश को चलाने का ,
यही से हर फैसला होता है।

रहते करोडो है यहाँ ,
मगर कोई इसको "अपना घर" नहीं कहता है।

रुसवाई को हर बार ,
 हँस के सह लेता है।

" दिल " हैं ना , समझकर भी सब कुछ ,
अपने "भारत " के लिए  धड़कता है।