Tuesday, March 26, 2019

" मैं "




मेरी साँस तुझसे ,
रहमते तुझसे ,
कण कण तुझसे ,
तेरी दी हुई ज़िन्दगी पर ,
फिर "मैं " कैसे ?

तू हँसाये ,
तू रुलाये ,
गिरु गर कभी तो ,
तू सँभाले ,
फिर " मैं " कहाँ टिके ?

तू आधार ,
तू निराकार ,
तू जगतव्यापि ,
तुझसे सारा संसार ,
फिर "मैं " का भ्रम कैसे ?

जब कभी " मैं " छाता है ,
मुझे तेरा ख्याल आता है ,
हे ! जग के स्वामी ,
“अहं” मेरा काफूर हो जाता है। 

Image Source - Google 

Friday, March 15, 2019

होली


बरसे फाग के रंग ऐसे ,
तन मन तर हो जाए  ,
मन का मैल सब ,
पानी में बह जाए । 

लाल रंग गुस्सा ले जाये ,
काला रंग दुखो के साथ बह जाए  ,
रंग चढ़े अंतर्मन पर ऐसा ,
जीवन रंगमय हो जाए । 

बरसे और जोर से बरसे ,
फाग के रंग सब बिखर जाए  ,
हर चेहरा ऐसा रँगे ,
सब भेद मिट जाए । 

काले से सफ़ेद मिले ,
लाल से हरा मिल जाए ,
बने एक ऐसा रंग फिर ,
सब बासन्ती हो जाए। 

आयी है होली फिर से ,
रंगो का फाग हो जाए ,
जब धुले सबके चेहरे ,
सब नकाब हट जाए। 

फोटो साभार - गूगल   

Wednesday, March 13, 2019

आओ , चुनाव -चुनाव खेलते है




तेरे हाथ गंदे ,
मेरे हाथ साफ़ ,
तेरे कुर्ते में दाग ,
मेरा कुर्ता साफ़। 

तेरा खानदान ऐसा ,
मेरा खानदान बेदाग़ ,
तेरे पास दस बँगले ,
मेरे पास सरकारी मकान। 

तू महाझूठा ,
मैं सच्चा,
तू मेरे लिए जहर उगल ,
मैं तुझे गालियाँ ।   

तू उलझाये रख जनता को किसी बात पर ,
मैं नया मुद्दा खोजता हूँ ,
तू जीत , या मैं जीतू ,
तू मेरा ध्यान रखना और मैं तेरा रखता हूँ। 

जनता का ध्यान कहीं,
असल मुद्दों पर न चला जाये ,
चल रोज़ नया बखेड़ा करते है ,
आओ , मिलकर चुनाव -चुनाव खेलते है। 

चित्र साभार - गूगल 

Sunday, March 10, 2019

आम चुनाव -2019



बिगुल बज गया चुनावी ,
जनता दरबार में ,
अब आयी नेताओ की बारी। 

सिंहासन खाली है दिल्ली का ,
तिकड़म सब भिड़ा रहे ,
ललचाई नजरे है सारी। 

लोकतंत्र का महापर्व ,
कुछ दिनों के लिए ही सही ,
जनता जनार्दन नेताओ पर भारी। 

जनता सचेत हो जाओ ,
इसी वोट पर टिकी है ,
अगले पांच साल की किस्मत हमारी। 

सोचो , विचारो
यूँ ही वोट जाया न करना ,
छोटी सी चूक -पड़ती है बहुत भारी। 

लोकतंत्र का महापर्व ,
"दिल्ली "सिंहासन सौंपने की तैयारी ,
सुनिश्चित करे अपनी भागीदारी। 

जनता से -जनता द्वारा ,
जनता के लिए ,
 " अच्छी सरकार " चुने - ये हम सबकी जिम्मेदारी।  


फोटो साभार - गूगल 

Friday, March 8, 2019

मैं और मेरी नौकरी ( व्यंग्य कविता )




जब तुम मेरे पास नहीं थी ,
मैं तुम्हारे होने के सपने देखता था ,
सोचता था अक्सर ,
तुम मिल जाओगी ,
तो मेरा जीवन सुधर जायेगा ,
ज़िन्दगी की तमाम खुशियाँ मेरे ,
दामन में आ बिखरेंगी ,
और जीवन कितना सुहाना हो जायेगा। 

तुम आयी ,
जैसे मेरे पंखो को परवाज लग गए ,
सपने मेरे जैसे हकीकत में बदल गए ,
इज्जत में ऐसी बढ़ोत्तरी हुई ,
हम भी क़ाबिलो की कतार में खड़े हो गए। 

मगर ,
धीरे धीरे न जाने क्यों तुमसे बेरुखी सी होने लगी ,
न जाने क्यों रोज चिंता की लकीरें माथे पर पड़ने लगी ,
उस मय्यसर की चाहत धीमी पड़ने लगी ,
अपने को रोज़ एक कैदखाने में बंद सा पाने लगा ,
रोज़ एक ही ढर्रे पर चलने से मन उकताने लगा। 

फिर ,
दिमाग में एक अलग फ़ितूर सा छाने लगा ,
हरदम अपने को ठगा सा महसूस होने लगा ,
समय तुम्हारे साथ कुछ ज्यादा गुजरने लगा ,
एक डर सा हरदम साया बनकर रहने लगा ,
"तुम बनी रहो " हर तिकड़म करने लगा। 

परिणाम ,
तुम्हे साथ लेकर चलना मजबूरी बन गयी ,
"तुम्हारे न होने" की सोचकर भी रूह घबराने लगी ,
घर-बार , रिश्ते -नाते सब दूर होने लग गए ,
समय की कमी अब हरदम सताने लगी ,
खुद को साबित करने की  ,
हर रोज़ एक नयी " जंग " होने लगी। 

अब ,
बने रहें दोनों हर हाल में ,
मैं तो तेरा बिना अधूरा ,
तेरी चाहत में खड़े है लोग कई ,
मन , बेमन - अब कोई मायने नहीं रखता मेरे लिए ,
"नौकरी " तू बनी रहना - यही प्रार्थना मेरी।   

Sunday, March 3, 2019

शिव


शिव शक्ति  , 
शिव आदि  , 
शिव ही अंत हैं।  

शिव आरंभ , 
शिव भक्ति  ,
शिव ही क्षमा है।  

शिव हुंकार , 
शिव तांडव , 
शिव ही संहार है।  

शिव प्रेम , 
शिव शांति , 
शिव ही आधार है।  

शिव अजन्मा , 
शिव अनंत , 
शिव ही ओंकार है। 

शिव अर्धनारीश्वर , 
शिव दयालु , 
शिव ही गँगा प्रवाह है।  

शिव नीलकंठ, 
शिव अमृत , 
शिव ही वरदान है।  

शिव डमरू , 
शिव त्रिशूल , 
शिव ही महाकाल है।