Thursday, December 17, 2020

2020

 जनवरी में देखे सपने दिसंबर आते हवा हो गये। 

ऐसे करते करते न जाने कितने साल गुजर गये।।

 

हसरते परवान चढ़ती रही हकीकत ने कदम रोक लिये।

हर साल की भाँति इस साल के भी दिन यूँ ही गुजर गये।।

 

कुछ यूँ गुजरा यह साल दहशत में सिमट गये। 

बचते बचाते कुछ अपने फिर भी गुजर गये ।।

 

दुआ रहमत प्रार्थना आशीष करते रह गये।

मास्क मुँह सैनिटाइजर हाथ मलते रह गये।।

 

कोसे किसको कसूर किसका ढूँढ़ते रह गये।

इन्तेजार -ऐ - वैक्सीन में  सब दिन गुजर गये।।

Tuesday, December 15, 2020

अब लौट कर मत आना 2020 मानवता के काल में।

                                                       कैद कर दिए पाँव , पसरा दिया सन्नाटा

भय से त्रस्त प्राण ,  मुँह पर मास्क की छाँव ,

लौट कर मत आना 2020 मानवता के काल में। 

 

संशय , असमंजस , बेरोजगारी , लाचारी

एक वायरस के आतंक से थम गयी दुनिया सारी ,

लौट कर मत आना 2020 मानवता के काल में।

 

त्राहि त्राहि मची चहुँओर , मानवता पर संकट भारी

सीख लिया जो सबक सीखना था , अब टीके पर नजर सारी ,

अब लौट कर मत आना 2020 मानवता के काल में।

 

भ्र्म अब टूट गया , घमंड पीछे छूट गया

प्रकृति के ऊपर नहीं सारा अधिकार हमारा ,

अब लौट कर मत आना 2020 मानवता के काल में।

 

अब जाते जाते अवसान कर जाना ,

संशय और भय सब हर जाना , प्राण फूँक जाना  ,

एक गुजारिश -अब लौट कर मत आना 2020 मानवता के काल में।

Wednesday, December 9, 2020

अंतिम बैंच


वो कक्षा की अंतिम पँक्ति के बैंच ,

सबको ही लुभाते थे ,

आज़ादी थी वहाँ , किस्से तमाम बनते थे।

 

जब पढ़ाया जा रहा होता था ,

इतिहास का कोई महत्वपूर्ण पाठ ,

आँखे उनीदी सी हो जाती थी।

 

जब सुलझाया जा रहा होता था ,

गणित का कोई सवाल ,

आँखे बाहर मैदान में गड़ी होती थी।

 

जब विज्ञान शिक्षिका बताती थी ,

न्यूटन के नियम ,

वहाँ से सब पर नजर जाती थी।

 

जब अंग्रेजी के शिक्षक ,

बारी बारी से पढ़ने को कहते थे कोई लेसन ,

अंतिम बेंच तक आते आते लेसन ख़त्म हो जाता था।

 

किस्सागोई के तमाम हिस्से ,

इन्ही बेंचो में बनते थे ,

बदलाव के विचार यही पनपते थे।

 

वह अंतिम बेंच , महज एक बेंच नहीं थी

क्रांति स्थल था ,

खाली समय में सबका वही अड्डा था।

 

शोध करो तो पता लगता है ,

अंतिम बेंच पर बैठने वाले निठ्ठले , नकारा या कमजोर नहीं थे ,

असल में , दुनिया बदलने वाले यही बच्चे थे ।

सफर

 

ऐ ज़िन्दगी !

तेरे साथ चलते चलते एक दिन ,

मैं भी थक जाऊंगा ,

तुम आगे बढ़ते रहोगे , मैं हट जाऊँगा ,

फिर तुम्हारे साथ कोई नया होगा ,

शायद मुझसे बेहतर होगा ,

हो जिक्र कभी सफर का ,

बस तुम मुस्करा के कह देना ,

छोड़ आया हूँ पीछे किसी को ,

तुम्हारे सवाल का उत्तर देने से पहले ,

वो याद आ गया। 

Wednesday, November 18, 2020

माँ

 


न जाने क्यों लोग कहते है ,

तू चली गयी है माँ ,

मगर मैं तो न मानूँ ,

मेरी रूह और हर साँस में बसी है तू माँ !

 

न जाने क्यों लोग कहते है ,

तू मिट्टी में मिल गयी है माँ ,

मैं तो तुझसे ही बना हूँ ,

जब तक मैं , तू ज़िंदा है माँ। 

 

न जाने लोग क्यों कहते है ,

अब तेरी आवाज नहीं सुनाई देगी माँ ,

मेरे हर शब्द में तो तू ही ,

गूँजती है माँ। 

 

न जाने क्यों लोग कहते है ,

अब तू कभी नहीं दिखेगी ,

लेकिन मैं तो तेरी छाया ,

जब तक मैं , तेरा अक्स मुझमे माँ। 

 

झूठ कहते है लोग,

तेरे जाने के बारे में ,

मेरे रोम रोम में ,

हमेशा ज़िंदा रहेगी तू माँ।

 

 शायद लोगो के लिए तू सिर्फ ,

एक नाशवान इंसान थी माँ ,

मगर हमारे लिए तो तू ,

भगवान से बढ़कर थी ,है और रहेगी माँ।  

 


Friday, October 30, 2020

सब ठीक हो जायेगा

 कितना विश्वास ,

कितनी आशा ,

कितने सपनो का आगाज ,

कितनी उम्मीदों का सूत्रपात ,

कोई जब आकर कह दे हौले से ,

"सब ठीक हो जायेगा। "

 

पथरीली सी जीवन की भूमि पर ,

आशा और उम्मीद उर्वरा है ,

कर्मो का हल है ,

और पुरुषार्थ फसल है,

जीवन के अविरल प्रवाह का ,

यही गूढ़ मंत्र है।  

 

हर रोज़ कितना संघर्ष ,

मगर , उम्मीद कायम है ,

जीवन पथ पर रोज़ एक हौंसला है ,

"सब ठीक हो जायेगा "

जीवन पथ पर चलते रहने का ,

तिलिस्मी मूल मंत्र है। 

Friday, September 11, 2020

उद्धव और गोपियाँ

 


महाज्ञानी उद्धव पूछे ,

"तुम प्रेम कैसे कर सकती हो श्रीकृष्ण से ,

जब तुम्हे पता है वो हासिल नहीं  ,

कर लो तुम जितना जतन ,

 श्रीकृष्ण तुम्हारे कभी नहीं । "

 

एक गोपी बोली ,

" उद्धव जी , आपको किसने बोला

हमें प्रेम  करने के लिए कृष्ण चाहिए ,

हमने कृष्ण से कभी प्यार किया ही नहीं ,

कृष्ण तो भगवान् है ,

हम जानते है - वो हमें हासिल नहीं ,

हमने तो कान्हा से प्यार किया है ,

जो बाँसुरी बजाता था ,

हमारी पानी की मटकियाँ  फोड़ता था ,

और हमारे कपड़े चुराता था ,

हम तो द्वारका वाले श्री कृष्ण को जानते ही नहीं ,

हम तो माखनचोर से प्रेम करते है ,

तुम्हारे श्रीकृष्ण से नहीं। "

 

दूसरी सखी बोली ,

" कह देना उद्धव जी अपने श्रीकृष्ण से ,

भूल जाए हमें , हम द्वारका  कभी आएंगे नहीं ,

हम तो बृज की गलियाँ ही घूमेंगी ,

जहाँ फिरा करता था नन्द यशोदा चितचोर कहीं ,

मुरली अपनी यही छोड़ गया कान्हा हमारा ,

उसकी तान से झूमते है हम सभी ,

इन गलियों में उसका प्रेम अब भी बरसता है ,

तुम क्या जानो उद्धव जी ,

प्रेम एकतरफा भी सम्पूर्ण होता है,

और फिर प्रेम तो प्रेम है ,

भौतिकता से बहुत परे होता है,

साँसो में भरा होता है,

पाने , न पाने की चिंता से मुक्त ,

दिल में हमेशा जीवित रहता है। "

 

उद्धव जी अपना व्यावहारिक ज्ञान भूल गए ,

इस प्रेम के आगे नतमस्तक हो गए ,

प्रेम एक अबूझ पहेली ,

श्रीकृष्ण के सन्देश को समझ गए।

Monday, September 7, 2020

संघर्ष

किसी का भी संघर्ष किसी से कमतर नहीं ,

हर शख्श का जीवन किसी कहानी से कम नहीं,

जिजीविषा का पर्याय है हर कोई यहाँ ,

अपने अपने स्तर का विजेता हर कोई ।  

 

सफलता का मापदंड सबके लिए अलग अलग ,

एक तराजू से तोल सही नहीं ,

ज़िन्दगी का रास्ता सबके लिए अलग ,

जो अपनी क्षमताओं से जी गया , वही विजेता , वही सफल। 

 

किसी की किसी से प्रतियोगिता नहीं यहाँ ,

सबका मुकाम , सबकी मंजिल अलग ,

मुकद्दर और कर्मो का सामंजस्य है ,

जो संघर्ष करे , सफल वही , विजेता वही।  



Monday, August 17, 2020

प्रकृति

                                                      क्या कभी आपने देखा है किसी पहाड़ की ओट से ,

उगते सूरज को ?

महसूस किया किरणों की मखमली ऊष्मा को ?

क्या कभी आपने देखा है समंदर में डूबते सूरज को ?

जैसे नहा रहा हो ,

और महसूस किया है धीरे धीरे बढ़ती शीतलता को ?

क्या कभी गुजरे है किसी जंगल से ?

सुनी है आवाज हवा और पेड़ो की ?

जैसे आपस में बतियाते हो ,

किसी बहते नदी में पैर डाले है ,

वो छुवन क्या अब भी ताजा है ?

क्या कभी भागे हो उस रंगबिरंगी तितली के पीछे ?

जो तुम्हारी आहट से उड़कर भागी है ,

क्या भीगे हो कभी बारिश की बूँदो से ?

क्या कभी हाथ फैलाकर अपने चेहरे को उठाकर ?

महसूस किया है बूँदो के चुम्बन को ,

क्या कभी कोई फल सीधा पेड़ से तोड़कर खाया है  ?

और महसूस किया है उस डाली के कम होते वजन को ,

उसको फिर थोड़ा ऊपर उठते  हँसते हुए ,

कभी महसूस की है मिटटी की वो सौंधी सुगंध ?

जब बारिश की पहली बूँद गिरी उसपर ,

क्या साक्षी बने हो किसी बीज के ?

नवांकुर फूटने से पौधा बनने तक,

क्या देखा है किसी चिड़िया का घौंसला ?

एक एक तिनके से गुँथा हुआ कितना सुन्दर ,

क्या कभी चढ़े हो गाँव के उस टीले पर ?

और आवाज लगायी हो किसी को जी भर कर ,

क्या देखी है आपने बादलो की आसमाँ में होड़?

और उनसे छनकर आती जरा सी धूप। 

 

जितने "हाँ " उतना प्रकृति के नजदीक तुम ,

जितने  "ना " इत्तु सा प्रकृति के करीब तुम। 

Monday, August 3, 2020

लक्ष्य

लक्ष्य कैसा हो ?

समयबद्ध ,

नियमबद्ध ,

अनुशासनबद्ध ,

विशिष्ट ,

प्रेरक ,

और मंगलमय हो। 

 

लक्ष्य साधन से पहले ,

योजना ,

साधना ,

समर्पण ,

कर्मतप,

एकाग्रता

और

एकनिष्ठता हो। 

 

लक्ष्य साध्य कैसे हो ?

घुमते चक्र में बँधी मछली ,(साधना )

नीचे पानी में छाया देख, ( एकाग्रता )

धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा , (विश्वास)

एक तीर से , (कर्मतप )

चक्षु भेदन जैसा हो। ( एकनिष्ठता )


Thursday, July 16, 2020

छौउव




उस धार में छौउव  है ,
वहाँ मत जाना ,
झपान लग जायेगा ,
फिर उससे पीछा छुड़ाना ,
बहुत मुश्किल ,
लग जाता है तो ,
अजीब हरकते करवाता है ,
डर से कोई नहीं जाता ,
उस धार पर ,
बीहड़ हो चुका है अब ,
कहते है ,
उस धार से बहुत सुन्दर दिखता है ,
हिमालय ,
घाटी ,
बहती नदी ,
फैला जंगल,
और किसी ने बताया होगा ,
अभी तो सालो से ,
कोई नहीं गया उधर। 

इसी डर ने ,
शायद बचा रखा है ,
उस धार को अब तक ,
वर्ना ,
अभी तक उस धार पर ,
चल चुकी होती कुल्हाड़ियाँ  ,
कट चूका होता जंगल ,
कंक्रीट के पेड़ उग आते ,
और सब कुछ बंजर,
जरूर कोई प्रकृति प्रेमी होगा ,
जिसने फैलाया है ये डर ,
उसी को लगा होगा ,
धार का पहला छऊव। 
...................................................

कुमाउँनी शब्द और हिंदी अर्थ

छौउव  - भूत , प्रेत ;झपान - प्रेत वशीकरण;धार - पहाड़ की चोटी