Friday, February 25, 2022

युद्ध

   कुछ सनक ,

कुछ महत्वाकांक्षायें

धकेल देती है ,

मानवता को ,

युद्ध की तरफ ,

और कुछ गिद्ध ,

ताक में रहते है ,

अपना फायदा ,

सोचकर ,

हारने वाला ,

पछताता है ,

और जीतने वाला ,

सोचता है ,

क्या मिला उसे ,

एक भूमि का टुकड़ा छोड़कर ,

युद्ध की परिणीति ,

शोक से ही होती है ,

दोनों तरफ ,

हुक्मरान पीठ ठोकते ,

टीस जनता पर,

जो चाहती रही हमेशा ,

गुजर जाये उम्र ,

शांति और सुकून पर।

 

रौंद दिये जाते है ,

घरौंदे ,

खेत -खलिहान ,

रक्त बिखर जाता है ,

सरेआम सड़क पर ,

बिखर जाती है मानवता ,

दिल के टुकड़े ,

बिखर जाते है इधर -उधर ,

मिटा दिए जाते है ,

हर निशाँ इंसानियत के ,

कुचल जाती है भावनाएँ ,

लोहे के पहियों पर ,

बारूद बिखर जाता है ,

मिट्टी पर ,

जो उगलती थी ,

अनाज -लहलहा कर ,

कितने सपने चकनाचूर ,

कितनी औलादें अनाथ ,

कितनी कीमत चुकाओगे ,

सिर्फ एक युद्ध लड़कर।

 

Friday, February 4, 2022

बिसात

 

लिखता हूँ, मिटाता हूँ ,

हर्फ़ -दर -हर्फ़ जोड़ता हूँ ,

ज्वार जज्बातों का उतरे ,

कागज़ काले करता हूँ। 

 

लिखने को यूँ तो बहुत है ,

विषयों की कोई कमी नहीं है ,

हर बार, मगर , दिल को छलता हूँ ,

हाँ , सच लिखने से डरता हूँ। 

 

मायूसियाँ , दर्द और दुःख बहुत है ,

उसकी बयानगी से क्या फायदा ,

गढ़ता हूँ इक नया शब्दजाल ,

यही मेरे पास , इक उम्मीद देता हूँ। 

 

सबका अपना -अपना संघर्ष हैं ,

उम्मीदों का एक पहाड़ ,

जगा रहें पथ पर, इक विश्वास ,

शब्दों का मरहम देता हूँ। 

 

वक्त की बिसात है , हम सब मोहरे ,

परिस्थितयों का मोहताज नहीं ,

जो ,जहाँ , जैसा मिले ,

स्वीकार कर , आगे बढ़ता हूँ।