Sunday, February 2, 2020

रोज़ एक जीवन



डूबते सूरज के साथ जैसे ,
एक जीवन पूरा हो जाता है ,
तेरी रची महिमा  के आगे ,
सिर मेरा एक बार फिर झुक जाता है ,
फिर एक दिन का जीवन देने का तेरा शुक्रिया ,
रात को फिर अर्ध मृत्यु का आगोश छा जाता है ,
पहली किरण के साथ जब आँख खुलती है ,
तुझ पर विश्वास और अटल हो जाता है। 

फिर उम्मीदें , सपने जग जाते है ,
नवसंचार सामर्थ्य का नस नस में दौड़ जाता है ,
कदम खुद बखुद निकल पड़ते है ,
रात होने से पहले जैसे सब कुछ समेट लेना चाहता है,
हर भाव से जैसे जीवन गुजरता है ,
रोज़ , एक जीवन का आरम्भ और अंत हो जाता है। 

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