Sunday, June 23, 2019

मेरे दस "शेर"


1
अच्छा है ,  दिमाग को भूलने की बीमारी है
सोचो , सब याद रहता तो न जाने क्या होता। 

2
कुछ मसले , यूँ ही हल नहीं होते। 
एक ही समय में , दोनों को "मैं " नहीं " हम " होना पड़ता है। 

 3
बदलते दौर में  इश्क की बुनियाद , हिल सी गयी है ,
रूहानी न होकर अब , जिस्म पर टिक गयी है। 

4
उड़ेंगे वही जिनके पंख होंगे ,
चाहने भर से आसमां नहीं नापा जाता। 

5
किसने कहा "वो " नहीं सुनता ,
दिल से आवाज कब लगाई थी।

6
मत मुस्करा किसी की लाचारी पर ,
वक्त ने पढ़ाया है पाठ कइयो को। 

 7
जो खाते थे कसमें हर हाल में साथ निभाने की ,
ग़ुरबत के दिन क्या आये , निकल लिए। 

8
सुना था तेरा शहर बड़ा संजीदा है ,
एक चौराहे से अभी अभी बचकर लौटा हूँ मैं। 

9
किताबी बातों को सच मान लेते तो ,
न जाने कैसे जीते इस जहाँ में। 

10
"सच" बोलते है ,
इसीलिए बहुतो को खटकते है। 

3 comments:

  1. बेहतरीन और वक्त के माकूल शाइरी ...

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  2. Excellent Mehra Sahab :)

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