घर के आँगन में बैठी वो बूढ़ी अम्मा ,
एक नजर घर पर , एक आँगन पर ,
धुँधली आँखों से निहार रही ,
दो बूँदे आँखों की झुर्रियों से रिसाती हुई ,
अतीत और वर्तमान के बीच में झूलती सी ,
अचानक से ठिठक सी गयी ,
जब उसने दिखा ,
एक टूटा हुआ आँगन में बिछा पत्थर ,
बुढ़ाते गले से रुँधाती सी आवाज में ,
अपने पोते को पुकारा ,
पोता आवाज सुनकर दौड़ा ,
अम्मा के पास पहुँचा ,
अम्मा ने उससे जरा लाल मिटटी और गोबर मँगवाया ,
करीने से लीप दिया वो टूटा पत्थर ,
जैसे उसने भर दिया ,
अपनी उदासी और उद्देख के सब कारण।
कुमाउनी शब्द
उद्देख - निराशा और हताशा
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