Wednesday, October 3, 2018

लोकतंत्र



घोषणा तो होती है ,
जनता की सरकार बनेगी ,
मगर ,
बनने के बाद ,
जनता से ,
सरकार से  क्यों अलग हो जाती है ?

कुछ तो झोल है ,
उस कुर्सी में ,
बैठते ही ,
नीयत क्यों बदल जाती है ?

वो वादे ,
वो इरादे ,
न जाने कहाँ काफूर हो जाते है ,
जनता की सरकार ,
फिर जनता को ही क्यों गरियाते है ?

कुछ तो खामी है ,
लोकतंत्र में ,
जरूर कही कोई छुपा मंत्र है ,
चोर दरवाजे से ,
इतने सारे गिरगिट कैसे घुस जाते है ?

हम अपना देखते है ,
तुम अपना देख लो ,
इस देखा देखि में ,
पांच साल निकल जाते है। 

1 comment:

  1. कुछ तो खामी है ,
    लोकतंत्र में ,
    जरूर कही कोई छुपा मंत्र है ,
    चोर दरवाजे से ,
    इतने सारे गिरगिट कैसे घुस जाते है ?

    Bitter Truth

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