Friday, January 11, 2019

अभिलाषा



जब सांझ आये जीवन की भगवन , 
बस इतनी कृपा हो , 
फक्र कर सकूं , सीना चौड़ा 
जीवन पर अपने गर्व हो।  

याद करूँ अपने जीवन पथ को , 
गर्व की अनुभूति हो , 
कर्मो के मेरे जीवन पथ  पर , 
कही कोई सिसकी न हो।  

याद करे अगर लोग तो , 
उनकी मधुर स्मृतियो में हो , 
ठेस पहुँचायी हो गर किसी को , 
वो भी भुलाने लायक हो।  

बंद मुट्ठी बाँधे जन्मा था , 
खाली हाथ ही जाना है , 
जीवनपथ का पथिक निरंतर , 
तुझ पर कभी संशय न हो।  

क्या हारा , क्या जीता 
क्या खोया , क्या पाया 
जीवन इससे उन्मुक्त , 
अपने जीवन पथ पर गर्व हो।

जीवन की उस साँझ में ,
शांति  और सुकून हो , 
जीवन जो दिया तूने , 
"भरपूर जीये"- तसल्ली हो। 

छायाचित्र आभार - गूगल 

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