Monday, March 22, 2021

मेरा यार अब शहर हो रहा है

 

अंदर से अकेला बाहर शोर से घिरा

दिल में कुछ सुकून की तलाश ,

बेहताशा भीड़ में भाग रहा है ,

धीरे धीरे ही सही निखर रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।  

 

लेकर हसरतो का पुलिंदा वो ,

बहती नदी सा थम रहा है ,

आजाद फिजायें दम घुट रहा है,

कदम दर कदम बढ़ रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।

 

हैं कुछ शुरुवाती चिन्ताएँ ,

सबब, धीरे धीरे ढल रहा है ,

फ़ीके से रँगो में उसके ,

चटकीला रंग चढ़ रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।

 

भूल कर वो अब पुरानी यादें ,

एक नयी यात्रा पर निकला है ,

इक छोटे से कुँए से अब ,

कश्ती लेकर समंदर में उतर रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है।

 

लौटना तो चाहता है इस बियाबाँ से ,

गिरफ्त से इसके अब छूटना मुश्किल है,

दोराहे पर खड़ी ज़िन्दगी,

आदी होकर हवाले हो रहा है ,

मेरा यार अब शहर हो रहा है। 


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