Monday, February 3, 2025

जीवन मूल्य

 

गुजर रहे है हम उस दौर से ,

सब कुछ धीरे -धीरे बदल रहा ,

नए मानक स्थापित हो रहे है,

पीछे बहुत कुछ छूट रहा।

 

पीछे जो छूट रहा है ,

उसमे कुछ सँभालने लायक भी है ,

मगर दौड़ इतनी भयंकर ,

सँभालने का वक्त किसको मिल रहा।

 

परिवार दरक रहा ,विश्वास हिल रहा ,

धैर्य हिचकोलों में फँसा हुआ ,

आस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह है,

ये कौन दिशा और दशा तय कर रहा।

 

प्रेम -स्वार्थ की बलि चढ़ रहा ,

अहं सिर चढ़ बोल रहा ,

बेवजह चिंताएं शरीर नाश कर रही ,

जो है हाथ में , वो भी खो रहा।

 

बेशक नए मूल्य गढ़ने चाहिये ,

परिवर्तन समय की दरकार भी है ,

मगर जिन मूल्यों पर खड़ा है जीवन , 

उनको सहेजना भी जरुरी है।

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